पिताजी का खांसना मतलब घर में पिन ड्रॉप साइलेंस

पिताजी को घर में बच्चों का शोर बिलकुल पसंद नहीं था। वे देर शाम ऑफिस से लौटते तो बिना पूछे बच्चे अपने होमवर्क पूरा होने का प्रमाण उनके सामने टेबल पर रख देते कपड़े बदलते-बदलते वे सरसरी तौर पर देख कर हुंह कहते और बच्चे अपना बस्ता समेट लेते। फ्रेश होने के बाद वे आधा घंटा दूरदर्शन पर न्यूज देखते फिर उनका खाना लग जाता। उनके खाने और सोने से पहले किताब पढ़ने के बीच बच्चे अपनी पसंद के सीरियल देख सकते थे। चैनल बदलने को लेकर कभी शोर मचा तो वे सिर्फ एक बार जोर से खांस देते थे कि घर में पिन ड्रॉप साइलेंस पसर जाता था। उनके बेडरूम की लाइट ऑफ होने का मतलब गुड नाइट बोले तो घर की सारी बत्तियां बंद हो जानी चाहिए। पिताजी जब बच्चों से ऐसे संवाद करते थे तो आप समझ ही सकते हैं कि सात-आठ साल के बसंत को पिताजी से बात करने के लिए कितनी हिम्मत जुटानी थी।

बसंत ने पूछा क्या पिताजी घर से बाहर निकल गए

लेकिन बसंत ने सोच लिया था। शनिवार रात से उसने हिम्मत जुटानी शुरू कर दी थी। सोचते-सोचते रात में उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह उठते ही पिताजी के सामने जा खड़ा हुआ। आज वह अलसाया नहीं लग रहा था। एकदम फ्रेश, जैसे रात में सोया ही ना हो। पिताजी अखबार पढ़ रहे थे। कुछ क्षण बाद जब उन्होंने सामने बसंत को देखा तो आश्चर्य मिश्रित गुस्से से उसकी ओर देखा। बसंत ने अपनी आजादी में मां-बाप, टीचर सहित अन्य लोगों की टोकाटाकी का सिलसिलेवार जिक्र करना शुरू कर दिया। उसके विद्रोही तेवर देखकर पिताजी गुस्से से तमतमा उठे। उनकी तानाशाही प्रवृत्ति ने उबाल भरा लेकिन तुरंत ठंडा भी हो गया। और दिन होता तो वे एक तमाचा रसीद कर उसके सिर से आजादी का सारा नशा उतार देते। लेकिन वे उसे आश्चर्य से देखते हुए अखबार एक किनारे रखते हुए उठे और बिना कुछ कहे बाहर चले गए।

पिताजी के हाथ पतंग देखकर सब हैरान

वापस आए तो उनके हाथ में लटाई और पतंग थी। सवाल पूछने पर बसंत को जितना डर नहीं लगा था पिताजी के हाथ पतंग देखकर वह सहम गया। पिताजी ने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे छत पर ले गए। पिता का ऐसा व्यवहार देखकर वह सदमे जैसी स्थिति में था। लेकिन जल्दी ही बालमन चंचल हो गया और उसने लपक कर लटाई पकड़ ली। छत पर जाकर पिताजी ने कन्ना बांधा और पतंग उड़ाने लगे। बसंत ने कहा पिताजी पतंग और ऊंचा उड़ाइए। पिताजी ने लटाई से ढील दी। उसने कहा और ऊंचा। लेकिन सद्दी खत्म हो चुकी थी। सो पतंग उससे ऊंची नहीं जा सकती थी। लेकिन बसंत पतंग ऊंचा करने पर अड़ गया। पिताजी ने पतंग की सद्दी तोड़ दी। ये क्या! पतंग ऊंचा जाने जाने की बजाए धीरे-धीरे नीचे आ गई। बसंत ने कौतूहल से पूछा ये कैसे हो गया? पिताजी ने प्यार से समझाया बेटा तुम्हारे सवाल का यही जवाब है। ये लोगों की टोकाटाकी जो है इसी से लोग संभलते हैं। बुराइयों से दूर रहते हैं और जीवन में कामयाबी की ऊंचाइयों को प्राप्त करते हैं। टोकाटाकी या खींचतान बंद हो जाए तो जिंदगी कटी पतंग जैसी हो जाती है। इसके बाद बसंत को पिताजी ने गोद में उठाकर गले लगा लिया।