24 अक्टूबर को मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा, अश्रि्वनी नक्षत्र सुबह 9:23 बजे से होगा शुरू

-चन्द्रमा का दर्शन अनंत सुख देने वाला होता है, शरीर के रोग एवं चर्म रोग दूर होते हैं

BAREILLY :

आश्रि्वन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पड़ने वाली शरद पूर्णिमा इस बार 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा पर पूरे वर्ष में चन्द्रमा अपनी षोडश कलाओं का होता है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा ने बताया कि धर्मशास्त्रों में इस दिन 'कोजागरी व्रत' किया जाता है। इसी को 'कौमुदी व्रत' भी कहते हैं।

आयुर्वेद की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण

24 अक्टूबर को प्रात: 09:23 बजे बाद आश्रि्वनी नक्षत्र आरम्भ होकर पूरी रात्रि रहेगा। शरद पूर्णिमा के दिन से ही व्रत एवं कार्तिक स्नान आरम्भ हो जाएगा। शरद पूर्णिमा की जितनी महत्ता ज्योतिष और आयुर्वेद में है, उतनी ही प्रेम रस से ओत-प्रोत समाज में है, शरद पूर्णिमा ज्योतिष एवं आयुर्वेद की दृष्टि से तब अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है जबकि पूर्ण चन्द्रमा का आश्रि्वनी नक्षत्र में दर्शन हो। पूर्णिमा की रात अश्रि्वनी नक्षत्र पर चन्द्रमा का दर्शन अनंत सुख देने वाला होता है। इससे शरीर के रोग एवं चर्म रोग दूर होते हैं। मनोविकार और मनोरोगियों के लिए यह चन्द्रमा अति स्वास्थ्य वर्धक होता है, नेत्र रोग वाले व्यक्तियों को इस चन्द्रमा के चन्द्रबिम्ब का दर्शन नेत्र संजीवन के समान होता है। इस रात नेत्र रोग वाले व्यक्तियों को केवल चन्द्रमा की चांदनी में ही सुई में (100 बार) धागा पिरोना चाहिए इससे नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। इसी प्रकार जो व्यक्ति हृदय रोग एवं फेफड़ोंके रोग से ग्रसित हों उन्हें भी अमृतमयी चन्द्रमा की चांदनी में रखी खीर के सेवन से प्रचुर लाभ मिलता है। चन्द्रमा के आश्रि्वनी नक्षत्र मे आने पर ही खीर को चांदनी में रखना चाहिए क्योंकि अश्रि्वनी नक्षत्र के देवता अश्रि्वनी कुमार हैं, जो देवताओं के चिकित्सक हैं इसलिए अश्रि्वनी नक्षत्र औषधीय गुणों से भरपूर है। इस पूर्णिमा को खीर का प्रसाद रात में ग्रहण किया जाता है इस पूर्णिमा को रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व है। इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कोजागरी का अर्थ है कि कौन जाग रहा है। पुराणों के अनुसार इस दिन लक्ष्मी जी भ्रमण पर निकलती हैं किस पर कृपा करें यह ढूंढती है। जो जाग रहा होता है उसे लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है। कहावत भी है जो जागत है सो पावत है जो सोवत है वह खोवत है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने महारास लीला सम्पन्न की थी। आयुर्वेद के दृष्टिकोण से भी इस दिन विभिन्न औषधियां मिलाकर खीर का निर्माण किया जाता है और उसे रात्रि में चन्द्रमा के प्रकाश में रखकर उसका वितरण किया जाता है। इससे अनेक रोगों की सहज ही चिकित्सा हो जाती है।

कैसे करें पूजा

इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुन्दर आभूषण से सुशोभित करके आह्वान, आसन, आचमन, वस्त्र, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। गाय के दूध से बनी खीर अ‌र्द्ध रात्रि के समय भगवान को अर्पण करना चाहिए। खीर को खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका प्रसाद बांटना चाहिए। पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनना चाहिए। एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश पर तिलक करके गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनना चाहिए, लोटे के जल का रात्रि को चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देना चाहिए। मान्यता भी है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती हैं। इस दिन इन्द्र एवं माता लक्ष्मी की पूजा करके श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ एवं माँ लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए, रात्रिकाल में घी के 108 दीपक जलाकर घर के विभिन्न स्थानों पर रखना चाहिए। शरद पूर्णिमा का व्रत और उत्सव भौतिक कामनाओं की पूर्ति के साथ ही संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है।