ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा अब न्यूयॉर्क में शांति वार्ता

तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा से दोनों मुल्कों में अमन चैन कायम करने का रास्ता तलाश रहे थे और तत्कालीन पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ कारगिल रच रहे थे. इस बार अपने तीसरे कार्यकाल में जब नवाज शरीफ ने 29 सितंबर को न्यूयार्क में अपने भारतीय समकक्ष मनमोहन सिंह से शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की कोशिश की तो वर्तमान जनरल परवेज कयानी ने केरन का चक्रव्यूह रच दिया.

जनरल बनते ही सीजफायर तोड़ने का रीवाज

जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाक सेना की कमान संभालते ही सीमा पर सीजफायर तोड़ना शुरू कर दिया. उनकी इस हरकत से तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ की भारत के साथ चल रही शांति वार्ता को नुकसान पहुंचा. इतना ही नहीं इधर भारत के तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा के लिए दिल्ली से गए. दोनों मुल्कों को लगा अब अमन चैन की बेला आ गई है लेकिन जनरल मुशर्रफ के कारगिल ने इस शांतिवार्ता की पीठ में छुरा भोंक दिया. दरअसल पाक सेना दोनों देशों में शांति चाहती ही नहीं. आज भी पाक सेना इसी मानसिकता से काम कर रही है. यही वजह है कि न्यूयॉर्क में शांति वार्ता को जनरल कयानी ने पलीता दिखा दिया.

शांति में भारतीय सेना सुस्त पाक सेना चुस्त

भारतीय सेना कभी भी इतिहास से सीख नहीं लेती. शांति की जरा सी भनक लगी नहीं कि वह सुस्त हो जाती है. कारगिल के टाइम ठंड में भारतीय सेना चोटियों से नीचे आ गई. लाहौर बस सेवा चल ही रही थी. उसे लगा उन दुर्गम चोटियों पर कौन आएगा. लेकिन पाक सेना ने आतंकियों के साथ मिल कर उन चोटियों पर कब्जा कर लिया. इसी तरह इस बार भी ट्रांसफर-पास्टिंग के दौरान केरन सेक्टर में तैनात कुंमाऊं रेजिमेंट के बदले गोरखा रेजिमेंट वहां आई तो उन्होंने यहां कुछ दुर्गम चौकियों पर अपनी तैनाती नहीं की. इत्तफाक से इस बार भी पाक पीएम नवाज अपने भारतीय समकक्ष के साथ न्यूयॉर्क में शांति बहाली की कोशिश कर रहे थे. इधर पाक सेना आतंकियों के साथ मिलकर घुसपैठ कर केरन की इन चौकियों पर अपना कब्जा जमा रही थी. कारगिल से सीख लेकर इस बार शांति वार्ता के दौरान भारतीय सेना

को एक्स्ट्रा मुस्तैद रहना चाहिए था.

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