-20 साल थियेटर से जुड़ा रहा, एक्टिंग, सिंगिंग व स्क्रिप्ट राइटिंग की

-टैलेंट तो गॉड-गिफ्टेड मिला लेकिन लोगों को समझने में देर लगी

PATNA : आप मुझे आवारा कह सकते हैं। मेरी आवारागर्दी की कई कहानियां हैं, पर वो गलत नहीं है। आप उसे पॉजिटिव लें, मैंने अपनी आवारागर्दी थियेटर से लेकर फिल्मों तक में गुजार कर किया है। इसमें लाइफ के वाइब्रेशन और हर टेस्ट को मैंने हर लम्हे में जीकर एक संसार पाया है। इसमें हमेशा कुछ नया करने का लालच बना रहता है। मैं भले ही गीत लिखता हूं। ऐसे जिसमें पॉलिटिकल क्लास को मिर्ची सी लगती हो, पर भाई मैं एक नॉन-पॉलिटिकल आदमी हूं। जहां लोग हर चीज में रोमांस ढूंढ़ते हैं और पूछते हैं कि आपने वो कर लिया और ये भी कर लिया। ये सब कैसे? आई एम गॉड गिफ्टेड। शायद इस लिए मैं कई चीजें एक साथ कर लेता हूं। एक्टर, डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर, सिंगर, म्यूजिक कंपोजर पीयूष मिश्रा ने अपना परिचय कुछ इसी अंदाज में दिया। मौका था पटना लिटरेचर फेस्टिवल का, गुलाल को अपनी लैंड मार्क फिल्म बताने वाले पीयूष ने अपने फैन्स और दीवानों से दिल खोलकर बात की।

गुलजार की गूंज, पीयूष की गायकी को दिल से लगाया

पटनाइट्स भी सुबह से शाम तक की पूरी तैयारी करके आए थे। जब लिटरेचर के बोझ से दब जाते थे, तो हॉल से बाहर निकलते ही अपने पसंद के साहित्यकार, कलाकार से बातें करते। अंदर एनाउंसमेंट के साथ ही अपने फेवरेट को सुनने के लिए चले जाते। पीयूष मिश्रा की गायकी दिलों के जितनी अंदर पहुंची पाई, गुलजार की बातें उतनी ही गहराई तक घर कर गई। वहीं क्0भ् साल के रामाज्ञा राम ने अपनी भोजपुरी गायकी से ऐसा समां बांधा कि भिखारी ठाकुर को जीवंत कर दिया।

साहित्यकार-पत्रकार व इतिहास की जुगलबंदी

पटना लिटरेचर फेस्टिवल में एक साथ साहित्य, पत्रकार और इतिहासकार की जुगलबंदी देखने को मिली। साहित्य अधिक बोझल न हो, इसके विभिन्न रूपों को बेहतर तरीके से परोसा गया। कविता, गजल, कहानी, कंवर्सेशन, मूवी, नाटक गायकी सबका अरेंजमेंट था। पटना म्यूजियम के बुद्धा लॉन और ऑडिटोरियम दर्शकों से खचाखच भरी थी। सब एक-दूसरे को सुनने के बाद उस पर अपनी बेबाक राय देना भी नहीं भूलते थे।