-एकल विद्यालय अभियान के तहत 'चलो जलाएं दीप वहां जहां अभी भी अंधेरा है' की हुई शुरुआत

-500 बच्चों की मदद से तैयार किए गए 75 हजार दिवाली के दीप

देश के विभिन्न शहरों के अलावा यूएस व साउथ इस्ट एशिया में दीये की डिमांड

ajeet.singh@inext.co.in

ALLAHABAD: 'चलो जलाएं दीप वहां, जहां अभी भी अंधेरा है' यह किसी कविता का हिस्सा नहीं बल्कि उन मासूम बच्चों का ध्येय है जो अपने घरों के साथ साथ दूसरे के घरों में भी रोशनी फैला रहें है। इस उदेश्य को लेकर एकल विद्यालय अभियान निरंतर आगे बढ़ा रहा है। मंडल स्तर के करीब एक हजार स्कूल के पौच सौ बच्चे इस अभियान का हिस्सा बने है। तीन महीने एकल दीप के नाम से शुरू हुआ यह अभियान देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहा है। खास बात यह है कि इस अभियान को सपोर्ट करने में विदेशों में रह रहें भारतीयों ने भी इससे जुड़ कर मजबूती प्रदान की है।

तीन माह पहले अभियान की शुरुआत

एकल विद्यालय अभियान की अध्यक्ष नीना सिंह बताती है कि दी-प्रयाग चैप्टर ऑफ एकल विद्यालय फाउंडेशन द्वारा सर्वप्रथम एजुकेशन से जुड़े अभियान को शुरू किया गया था। जहां इस अभियान के तहत ऐसे परिवार के बच्चों को जोड़ा गया, जो अपने बच्चों को एजुकेशन के फील्ड में आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते है। उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले वह दिल्ली गई थी। वहां मार्केट में कुछ ऐसे आइटम दिखे, जिसे देख उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने विद्यालय के बच्चों को संगठित कर एक नए अभियान की शुरुआत की जाए। जहां अन्य सदस्यों के साथ मिलकर एकल दीप अभियान की शुरुआत आज से तीन माह पहले की गई थी।

बच्चों की कड़ी मेहनत लाई रंग

इस अभियान को एक बड़ा रूप देने वाली सेक्रेट्री कीर्ति टंडन बताती है कि इसमें मंडल स्तर पर संचालित होने वाले एक हजार ग्रामीण स्कूल के पांच सौ बच्चों को सिलेक्ट किया गया। उन्हें प्रॉपर प्रशिक्षण देने के लिए पचास से अधिक आचार्य का खासतौर पर वर्कशाप कराया गया। जिसके बाद उन्होंने अपने सानिध्य में पांच से पन्द्रह साल तक के बच्चों को दीप बनाने का टिप्स दिया। तीन महीने तक चले इस प्रोग्राम के तहत बच्चों ने 75 हजार दीवाली के दीये बनाए।

बच्चों को स्वावलंबी बनाना है मकसद

खास बात यह है कि ग्लोबल फोरम के जरिए इन दीपों की मार्केट अपने देश के अलावा अन्य देशों जैसे यूएस, साउथ इस्ट एशिया में काफी डिमांड है। एक पैकेट में सात दीये है। जिसकी कीमत ढाई सौ रुपए है। इससे होने वाली आय को बच्चों की फीस में लगाई जाएगी। इस अभियान से बच्चों को जोड़ने का मकसद बच्चों को स्वालंबी बनाना है।