-कथक साम्राज्ञी सितारा देवी का मुंबई में गुरुवार को होगा अंतिम संस्कार

-अंतिम दर्शन को बनारस से नैहर की चुनरी लेकर जा रहे हैं भतीजे कृष्ण मोहन व पौत्र विशाल कृष्ण

VARANASI: माथे पर बड़ी सी बिंदी सजाये और बड़ी बड़ी आंखों से टपकते कथक नृत्य के अनंत भाव अब नहीं दिखेंगे। मंच पर आंधी की तरह आना और अपने नृत्य की अनंत गहराइयों से लोगों को रोमांचित कर तूफान की तरह चले जाना भी अब नहीं होगा। जी हां, यह सच है कथक साम्राज्ञी सितारा देवी के दुनिया से विदा लेने के साथ ही यह सब बीते दिनों की बातें हो गयीं। 9ब् साल की उम्र में मुंबई के एक हॉस्पिटल में कथक साम्राज्ञी का निधन हो गया। बनारस उनका मायका था। साज श्रृंगार से विशेष लगाव रखने वाली सितारा देवी अंतिम बार सजेंगी। बेटी को अंतिम विदायी देने की वेदना में डूबी नैहर की चुनरी से उनका अंतिम श्रृंगार होगा।

कबीरचौरा में बीता था बचपन

महज क्फ् साल की उम्र में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को अपने नृत्य से प्रभावित कर देने वाली सितारा देवी का बचपन इसी बनारस के कबीरचौरा की गलियों में बीता था। तीन बहनों और पांच भाइयों में तीसरे नंबर की सितारा देवी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए उनके भतीजे मोहन कृष्ण और पौत्र विशाल कृष्ण परंपरा का निर्वाह करते हुए बनारस से नैहर की चुनरी लेकर मुंबई जायेंगे। गुरुवार को मुंबई में उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा।

कथक उनके रोम रोम में था

विशाल कृष्ण बताते हैं कि कथक उनके रोम रोम में था। मेरी गुरु थीं। उनका सिखाना हर वक्त चलता रहता था। कुछ नया याद आया कि नहीं तुंरत बताने लगती थीं। मैंने उनके साथ अंतिम बार फरवरी में पुणे में हुए एक घराना डांस फेस्टिवल में परफॉर्म किया था। उम्र के इस पड़ाव पर उनका परफॉर्मेस गजब का रहा। ऑडियंस के सामने उन्होंने कहा था कि एक बार पुरानी सितारा की तरह नाचना चाहती हैं फिर चाहे उसके बाद भगवान मुझे उठा ले। बनारस में उनके भाई का घर है। परंपरा के अनुसार उनके अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए हम मायके की चुनरी लेकर मुंबई जा रहे हैं।

बनारस से गजब का था जुड़ाव

सितारा देवी के पिता पं। सुखदेव महाराज जब कोलकाता से बनारस आये तब उनकी उम्र तीन या चार साल की रही होगी। उसके बाद वे करीब क्क् साल की उम्र तक बनारस में रहीं। इन छह सात सालों में बनारस ने उन्हें मोह लिया। उनके भाई दुर्गाप्रसाद मिश्र के बेटे मोहन कृष्ण बताते हैं कि मुंबई जाने के बाद भी उनका अक्सर बनारस आना जाना होता था। गंगा जी से उनका विशेष लगाव था। जब भी आती गंगा जी जरूर जातीं। खास यह रहा कि बनारस उनका मायका था लेकिन यहां आने के बाद शहर में जब भी निकली सिर पर पल्लू डालकर ही निकलीं।

बड़ी बहन को खोया है मैंने

सितारा देवी के निधन से मर्माहत ठुमरी साम्राज्ञी पद्मविभूषण गिरिजा देवी ने कहा कि 'बनारस जब भी आवें तो हम लोगन का मिलब होय। सचमुच कथक क सितारा रहलिन जौन आज टूट गयेल.' शायद अब दूसरी सितारा नहीं पैदा होगी। ताल की साम्राज्ञी थी सितारा देवी। नृत्य-संगीत की दुनिया ने एक अद्भुत सितारा खो दिया है।

बनारस ने खोया है सितारा

सितारा देवी के निधन से दुखी पद्मभूषण पं। छन्नू लाल मिश्रा ने कहा कि वह मुझसे उम्र में बड़ी थीं इसके बावजूद भइया कहती थीं। मैं उन्हें दीदी कहता था। मैंने उनके साथ मुंबई में कई बार स्टेज परफॉर्मेस दिया है। तीन बहनें थीं और तीनों किसी न किसी विद्या में पारंगत थीं। उनके निधन से बनारस ने एक सितारा खो दिया है।

ट्रेन में देखा था भूत

विशाल बताते हैं कि दादी बुआ को ट्रेन के सफर से बहुत परहेज था। या यूं कहें कि उन्हें डर लगता था। एक बार मैंने उनसे पूछा कि ट्रेन में सफर से क्यों इतना डरती हैं। इसका कारण उन्होंने ट्रेन में एक बार भूत का दिखना बताया। सचमुच जब मुझे यह वाकया बता रही थीं उनकी आंखों में डर के भाव तैर रहे थे।

श्रृंगार से था विशेष प्रेम

सितारा देवी को श्रृंगार से विशेष लगाव था। उनके श्रृंगार प्रेम से जुड़ी एक घटना के बारे में विशाल बताते हैं कि एक बार बुआ दादी उस्ताद जाकिर हुसैन की पत्नी टॉली को डांस सिखा रही थीं। उसी दौरान वो गिर गयी और पैर फ्रैक्चर हो गया। तुरंत एंबुलेंस बुलाया गया। दर्द से कराह रही थीं लेकिन जब उन्हें स्ट्रेचर पर सुलाने लगे तो उन्होंने जोर से आवाज लगायी टॉली मेरा मेकअब बॉक्स ले आओ। हॉस्पिटल में लोग मुझे पहचानेंगे कैसे कि मैं ही सितारा देवी हूं।

ख्0 किलो का होता था लहंगा

उम्र कभी भी सितारा देवी के आगे नहीं चली। हमेशा सितारा देवी उम्र से दो कदम आगे ही रहीं। अपने शुरुआती दिनों में स्टेज पर उतरते समय उनका जो ड्रेस था वही 80 साल की उम्र में भी रहा। विशाल बताते हैं कि उनके लहंगे का वेट क्भ् से ख्0 किलो के बीच रहता था। इतने भारी लहंगे को पहनने के बावजूद उनमें फुर्ती देखने लायक होती थी।