- माड्यूल पर नेपाल से गोरखपुर तक रखी जा रही थी निगाह

- एटीएस ने गोरखपुर में बिछाया था जाल पहले से जाल

- पकड़े गए आतंकियों ने ली थी अफगानिस्तान में ट्रेनिंग

GORAKHPUR: आतंकियों की नर्सरी अब बदल गई। कभी पाकिस्तान आतंकियों का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब इसे अफगास्तिान में तालिबान पाल पोस रहा है। इंडियन मुजाहिदीन और तालिबानी आतंकियों के हाथ मिलाने के बाद आतंकियों की नई पौध तैयार हो रही है। इन आतंकियों को ट्रेनिंग दी जा रही है। हाल ही में गोरखपुर में पकड़े गए दो आतंकियों को अफगानिस्तान में ट्रेनिंग दी गई थी। एटीएस की टीम पिछले कई दिनों से माड्यूल का सुराग तलाशने में लगी थी। इसके लिए एटीएस की एक टीम नेपाल भी गई थी।

आ‌र्म्स तस्कर से जुड़े है तार

दोनों आतंकियों की गिरफ्तारी की पटकथा कई दिनों पहले से ही लिखी जा रही थी। इसका उदाहरण कुछ दिन पहले चौरीचौरा एरिया में पकड़े गए आ‌र्म्स तस्कर बॉबी की गिरफ्तारी है। सूत्रों के माने तो आ‌र्म्स तस्कर बॉबी की गिरफ्तारी एटीएस के चलते हुई थी, हालांकि एटीएस की कार्रवाई को गुप्त रखते हुए उसे पुलिस के हवाले कर दिया था। उसके पास से बड़े पैमाने पर आ‌र्म्स बरामद हुए थे। हुमांयूपुर निवासी बॉबी ने नेपाल और फैजाबाद में आ‌र्म्स की तस्करी की बात स्वीकार की थी।

यासीन भटकल से मिला था इनपुट

इंडियन मुजाहिदीन का चीफ यासीन भटकल ख्8 अगस्त ख्0क्फ् को पटना में हुई नरेन्द्र मोदी की रैली के बाद नेपाल से पकड़ा गया था। यूपी एटीएस ने भी यासीन से पूछताछ की। सूत्रों के मुताबिक हाल ही में गोरखपुर से पकड़े गए दोनों आतंकियों अब्दुल वलीद और ओवैस की गतिविधियों की जानकारी यासीन भटकल से पूछताछ के दौरान मिली थी। भटकल से इस सूचना के बाद एटीएस एक्टिव मोड में आ गई थी। दोनों आतंकी पाकिस्तानी नागरिक बताए जाते हैं।

गोरखपुर को बनाया सेंटर प्वाइंट

आतंकियों की कॉल डिटेल्स जब निकाल गई तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। एटीएस सूत्रों की मानें तो कॉल डिटेल्स से पता चला था कि आतंकियों ने इंडिया में इंट्री के लिए नेपाल के रास्ते गोरखपुर को टारगेट किया था। उनका मानना था कि गोरखपुर सबसे सेफ और सॉफ्ट टारगेट है। इसके पीछे उनका मानना था कि वारदात को अंजाम देने के बाद बॉर्डर एरिया क्रास करने में उन्हें कम से कम टाइम लगेगा। संभवत इसलिए गोरखपुर को चुना गया था, क्योंकि गोरखपुर ही एक सेंटर है जहां ढाई से तीन घंटे में बार्डर एरिया छोड़ा जा सकता है। कॉल्स डिटेल्स में 'जी' पुर और 'के' पुर का नाम की भी बात आई थी। 'के' पुर का मतलब संभवत कानपुर से था, लेकिन कानपुर से नेपाल तक पहुंचने में सात से आठ घंटे तक का समय लगता है। आशंका है कि इसी को ध्यान में रखते हुए 'जी' पुर यानी गोरखपुर को चुना गया।

लोकल है स्लीपर मॉड्यूल

गिरफ्तार आतंकियों को गोरखपुर में ही बाइक, लैपटॉप और सिम कार्ड उपलब्ध कराया जाना था। यह बात खुफिया एजेंसी के अधिकारियों का भी मानना है। हालांकि अभी तक लोकल पुलिस और एटीएस टीम ने स्लीपर मॉड्यूल पर शिकंजा नहीं कसा है। एक दशक पहले तक सिमी का नेटवर्क गोरखपुर में सेफ जोन जाता था। गोरखपुर के साथ-साथ सिद्धार्थ नगर में भी सिमी की एक्टिविटी काफी तेज थी, लेकिन सिमी के एक बड़े कार्यकर्ता की गिरफ्तारी के बाद उनका नेटवर्क ध्वस्त हो गया। इसके बाद सिमी से जुड़े कई मेम्बर्स आइएम के स्लीपर मॉड्यूल के लिए काम करने लगे। माना जा रहा है कि गिरफ्तार आतंकियों के मददगार यही स्लीपर मॉड्यूल हो सकते हैं। सूत्रों की मानें तो इस स्लीपर मॉड्यूल में एक शख्स नेपाल से जुड़ा है जबकि दूसरा सिटी से हो सकता है।