- क्योंकि इनके छिलके कीटनाशक को सोख लेते हैं

-लिहाजा, धोने के बाद भी कम नहीं होता है कीटनाशक का असर

BAREILLY

बैगन का भरता और शिमला मिर्च की सब्जी बड़े स्वाद से खाने वालों के लिए यह शोध जोर का झटका है। इनके माध्यम से वह स्लो पॉयजन खा रहे हैं। क्योंकि यह सब्जियां कीटनाशक दवाओं को आसानी से सोख लेती हैं, जो कई बार अच्छी तरह धोने के बाद भी नहीं निकलता है। साथ ही पकने के बाद भी कीटनाशक दवाओं का असर रहता है। इन सब्जियों के लगातार प्रयोग से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।

बीसीबी ने िकया शोध

बरेली कॉलेज बरेली के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ। आलोक खरे ने बैगन और शिमला मिर्च पर कीटनाशक दवाओं के असर पर शोध किया। वर्षो की कड़ी मेहनत के बाद निष्कर्ष पर पहुंचे कि बैगन व शिमला मिर्च अन्य सब्जियों के मुकाबले अधिक जहरीली होती हैं, क्योंकि इनकी बाहरी सतह आसानी से पेस्टीसाइड सोख लेती हैं। वहीं लोग बिना छीले ही खा लेता है। इससे यह पेस्टीसाइड सीधे पेट में पहुंच जाता है। जबकि अन्य सब्जियों के छिलके उतार देने से कीटनाशक दवाओं का असर काफी हद तक कम हो जाता है।

तीन तरह के होते हैं कीटनाशक

प्रोफेसर ने बताया कि तीन तरह के पेस्टीसाइड होते हैं। हैवी मेटल बेस पेस्टीसाइड, इन ऑर्गेनिक और ऑर्गेनिक पेस्टीसाइट .हैवी मेटल बेस पेस्टीसाइड सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। अधिकांश कीटनाशक बनाने वाली कंपनियां इसमें कॉपर, मरकरी, निकिल, क्रोवियम रासायनिक तत्वों का प्रयोग करती हैं। इनका एक्सपोजर होने से कैंसर जैसी बीमारी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

15 साल तक रहता है असर

उन्होंने बताया कि किसान फसल को बचाने के लिए साल में छह बार स्प्रे करता है, जिसे जमीन सोख लेती है। इन कीटनाशक दवाओं का असर 15 साल तक रहता है।

किसान भी बढ़ाता है खतरा

किसान अवेयर नहीं हैं। इसलिए वह कीटनाशक दवाओं का मानक के अनुसार प्रयोग नहीं करते हैं। वह अधिक मात्रा में छिड़काव करते हैं। किसानों के अवेयर होने से इसके असर को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

1892 में बना पहला कीटनाशक

प्रोफेसर ने बताया कि विश्व में पहला कीटनाशक 1892 में बोर्डिक्स मिक्चर बनाया गया। इसके बाद से कीटनाशक दवाओं को बनाने की होड़ सी शुरू हो गई।

वर्जन

शोध में पता चला कि बैगन और शिमला मिर्च कीटनाशक दवाओं को सोख लेती हैं, जिनका असर कई दिनों तक रहता है। अच्छी तरह धोने और पकाने के बाद भी कीटनाशक नहीं निकलता है।

डॉ। आलोक खरे, एसोसिएट प्रोफेसर