-बिहार के बिजनेसमैन को मिलनी थी 500 करोड़ की सब्सिडी, जो अभी तक नहीं मिली

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क्कन्ञ्जहृन्: बिहार सरकार की उद्योग नीति 2016 में कई ऐसे प्रावधान थे जिससे उद्योग जगत को गति मिलने की उम्मीद थी। लेकिन सरकार सिर्फ लाभ की घोषणा कर पीछे हट गई। परिणाम यह हुआ कि सरकारी वादे को ध्यान में रखकर उद्योग तो लगा दिए गए लेकिन कोई लाभ ही नहीं मिल रहा। इसमें उद्योग जगत से जुड़े वैसे लोग शामिल हैं जिन्होंने सितंबर, 2016 से अब तक उद्योग लगाने में जुटे हैं। बीआईए के अनुसार पूरे बिहार में ऐसे लोगों की संख्या करीब तीन हजार से अधिक होगी।

यह है मुख्य समस्या

अभी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वैट और जीएसटी का टैक्स शुरू के दस साल तक सरकार रीम्बर्स करेगी। लेकिन इसे लेकर उद्योग विभाग मौन है। जबकि इंडस्ट्रियल पॉलिसी सितंबर, 2016 से ही लागू कर दिया गया है। इस बारे में बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के वाइस प्रेसीडेंट संजय भरतिया का कहना है कि यह सबसे बड़ी बाधा है। इससे उद्योग जगत को नुकसान हो रहा है। अब तक 500 करोड़ रुपए उद्योगों के लिए रीम्बर्स करना लंबित है।

कैसे पाएंगे 15 प्रतिशत का लक्ष्य

इंडस्ट्रियल पॉलिसी 2016 के अंतर्गत यह विजन है कि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से उद्योग का विकास करना है। लेकिन अब तक बिहार में इंडस्ट्रीज का बेस्ट टाइम 2005-6 से 2014-15 के बीच भी अधिकतम वार्षिक विकास दर 10 प्रतिशत रहा। जबकि फिलहाल यह 6 प्रतिशत से भी कम हो गया है। ऐसे में इंडस्ट्रियल ग्रोथ का यह विजन कागजी नजर आता है। क्योंकि यह लक्ष्य से

काफी दूर है।

उद्योग को घाटे से निकालना जरूरी

बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के पूर्व सीनियर वीवी नीशीथ जायसवाल ने कहा कि उद्योग नीति 2016 अच्छी है। लेकिन इसका पूरा-पूरा क्रियान्वयन होना चाहिए। ताकि लाभ सभी उद्योग को मिले और इसमें जो उद्योग के विकास का लक्ष्य रखा गया है जिसे प्राप्त कर उद्योग जगत को घाटे से निकालना जरूरी है।

हमें उम्मीद है कि सरकार इस मामले में टैक्स आदि बेनिफिट की स्कीम को क्रियान्वित करेगी। दो साल से इसका इंतजार है।

-केपीएस केशरी, प्रेसीडेंट बीआईए

पॉलिसी लागू है लेकिन समस्या यह है कि इसके लिए जीएसटी पर मिलने वाली रिम्बर्समेंट नहीं मिल रहा है। नए इंस्ट्रियल यूनिट हतोत्साहित हैं।

-संजय भरतिया, वाइस प्रेसीडेंट बीआईए