बड़े काम की चीज

चीफ गेस्ट के रूप में उपस्थित एनबीआरआई के डॉ। डीके उप्रेती ने बताया कि लाइकेन पॉल्यूशन के स्मार्ट सेंसर होते हैं। जहां पर प्रदूषण ज्यादा होता है वहां इनकी प्रजातियां नहीं उगती। वहीं ये इंडिकेटर भी हैं। इनको स्टडी कर यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि एंवॉयरमेंट में प्रदूषण वाले कौन से केमिकल्स मौजूद हैं और उनकी मात्रा कितनी है। पीएएच और आर्सनिक जैसे खतरनाक केमिकल्स की स्टडी में इनसे काफी मदद मिलती है।

Serious diseases का इलाज

एनबीआरआई के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ। संजीवा नायका ने बताया कि इनको आम भाषा में जड़ीबूटी भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि लाइकेन की कई प्रजातियां फेफड़े, हड्डियों के फ्रैक्चर, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के इलाज में यूज की जाती हैं। उन्होंने बताया यूपी में अभी 135 प्रजातियां मौजूद हैं। जबकि 35 डिस्ट्रिक्ट्स में खोज और रिसर्च करना बाकी है। सेमिनार में स्पेसिमेन के रूप में ऐसी कई प्रजातियों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।

स्टूडेंट्स ने जानीं techniques

सेमिनार का इनॉग्रेशन एंवॉयरमेंटल साइंस के हेड डॉ। एपी सिंह, प्रिंसिपल डॉ। आरपी सिंह और मौजूद साइंटिस्ट्स ने किया। इस दौरान दो टेक्निकल सेशन ऑर्गनाइज किए गए। इसमें डॉ। राजेश बाजपेयी ने प्राचीन इमारतों में उगने वाली लाइकेन की विविधता, डॉ। वर्तिका शुक्ला ने लाइकेन और पर्यावरण प्रदूषण पर, डॉ। लोकेश ने बच्चों को लाइकेन को पहचाने की टेक्नीक्स के बारे में बताया। इस ऑकेजन पर पार्टिसिपेट करने वाले स्टूडेंट्स को पुरस्कृत भी किया गया।

NBRI की पहल

अब बीसीबी के एंवॉयरमेंटल साइंस के स्टूडेंट्स एनबीआरआई के रिसर्च प्रोजेक्ट्स को असिस्ट करेंगे। सीनियर साइंटिस्ट डॉ। डीके उप्रेती ने बताया कि यहां से हर वर्ष दो स्टूडेंट्स एनबीआरआई के रिसर्च प्रोजेक्ट्स के लिए शामिल किए जाएंगे। वे सीनियर्स के साथ रिसर्च करेंगे। यही नहीं जो इक्विपमेंट्स एनबीआरआई में आउटडेटेड हो जाएंगे, उन्हें बरेली कॉलेज को यूज करने के लिए सौंप दिया जाएगा।