-1957 एक्सपीडिशन टीम के डा। नेगी रूपकुंड के रहस्य पर बेबाक बोले

-डीएनए एनालाइज कर नर कंकाल की मिस्ट्री से उठ सकता है पर्दा

DEHRADUN : सैकड़ों वर्ष पुराना रहस्य अब भी बरकरार है। इस मिस्ट्री से अब तक पर्दा क्यों नहीं उठ पाया, क्या दुनिया में ऐसी कोई तकनीक नहीं है, जिसके जरिए इस हिस्ट्री की मिस्ट्री को विश्व के सामने रखा जा सके? क्यों न वहां मौजूद अधिक संख्या में स्केलेटन (कंकालों) को इकट्ठा किया जाए और उसके बाद उस पर व‌र्ल्ड कॉपरेशन से स्टडी की जाए। नहीं तो यह रहस्य अनवरत रहस्य बनकर ही न रह जाए।

सामने आए थे तमाम तर्क

यह फिक्र जाने-माने उस एंथ्रोपोलॉजिस्ट की है, जो करीब क्9भ्7 के दौरान चमोली के रूपकुंड से गई लखनऊ युनिवर्सिटी की एक्सपीडिशन टीम में मेंबर थे। सीनियर एंथ्रोपोलॉजिस्ट रह चुके और इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय के पूर्व डायरेक्टर डा। आरएस नेगी ने आई नेक्स्ट से बातचीत में कहा है कि करीब भ्7 साल पहले वे एक टीम के साथ वहां पहुंचे थे। तमाम तथ्य सामने आए। लोक गाथाओं व तमाम मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग तर्क सामने आए। यह बात सामने जरूर आई कि आठवीं शताब्दी यानी क्क्00-क्ख्00 वर्ष पुराने ये कंकाल हैं। हालांकि उस वक्त रेडियो कार्बन की जांच परख नहीं थी। इसके बाद ख्007 में नेशनल जियोग्राफिक की टीम ने यह मिस्ट्री सॉल्व करने का दावा किया, लेकिन इसमें भी स्पष्ट जानकारी नहीं है। कोई पब्लिकेशंस नहीं है। कुल मिलाकर अब तक इस रहस्य को कोई भी अधिकृत डॉक्यूमेंट्स व पब्लिकेशंस मौजूद नहीं हैं। जाहिर है कि अब तक रूपकुंड की मिस्ट्री केवल मिस्ट्री ही बनकर रह गई है।

क्0 फीट तक कंकालों की लंबाई

डा। आरएस नेगी कहते हैं कि भ्7 साल पहले जब वे टीम के साथ वहां गए थे तो एक खास किस्म के स्केलेटन नजर आए। इनकी हाइट भी करीब क्0 फिट की आंकी गई। बाद में पता चला कि महाराष्ट्र में भी कुछ इस तरह की स्केलेटन मिलते हैं, लेकिन सीमित मात्रा में। जबकि रूपकुंड में ऐसे कंकाल की तादाद ज्यादा है। डा। नेगी कहते हैं कि इस रहस्य से पर्दा उठने के लिए डीएनए एनालाइज होना चाहिए। इसके लिए अधिक मात्रा में कंकाल कलेक्ट हों, तालाब के नीचे कितने कंकाल ैं कि नहीं यह जानना जरूरी है।

कुछ तिब्बती समुदाय के

अब इस रहस्य पर पता लग पाना किसी चुनौती से कम नहीं है। वजह, कंकाल छितर-बितर हो चुके हैं। वे कहते हैं कि बताया जाता है कि कन्नौज का राजा लाव-लश्कर के साथ रूपकुंड पहुंचा था। उस वक्त स्टडी में यह भी पता चला कि ये तिब्बतियन भी हो सकते हैं। रूपकुंड के पास दो ग्राउंड मौजूद हैं। इस तरफ हुणियांथौड़ और रूपकुंड के उस तरफ हुणियाथान। मतलब साफ है कि तिब्बती समुदाय का यह रूट था और वे इन दो स्थानों पर विश्राम किया करते थे। वैसे भी तिब्बतियों को उस इलाके में हुणिया ही कहते हैं। उसके बाद वहां से रास्ता मलारहोते हुए नीति के लिए जाता है।

नेशनल जियोग्राफिक ने किया था अप्रोच

ख्007 में विलियम सेक्स के लीडरशिप में नेशनल जियोग्राफिक की टीम ने एंथ्रोपोलॉजिस्ट डा। नेगी को रूपकुंड जाने के लिए अप्रोच किया था, लेकिन वे नहीं गए। डा। नेगी का कहना है कि इस रहस्य पर स्टेट गवर्नमेंट को अप्रोच करना चाहिए, जो भविष्य के लिए न केवल मील का पत्थर साबित हो सकेगा, बल्कि रहस्य भी खुल सकेगा.

रूपकुंड के कुछ हाइलाइट्स

-क्म्000 फीट ऊंचाई पर है, जहां नर कंकाल आज भी नजर आते हैं।

-आज तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया।

-कंकालों की लंबाई करीब क्0 फीट तक आंकी गई है।

-रेडियो कार्बन अवशेष को क्क्-क्ख्00 वर्ष पुराने बताते हैं।

-कंकाल के अलावा वस्त्र, जूते, शंख, घंटियां, रुद्राक्ष, डमरु, बर्तन, छतोलियां के अवशेष मिलते हैं।

-लोकगाथाओं के मुताबिक कन्नौज के राजा यशोधवल, बच्चों, राजपरिवार व साथियों के साथ यहां पहुंचे। जिन्हें नंदा राज जात की मर्यादाओं की जानकारी नहीं थी। नतीजतन, सबको देवी के प्रकोप का भाजन होना पड़ा।

-कुछ कश्मीर के वीर सेनापति जोरावर सिंह के अवशेष बताते हैं। जो तिब्बत विजय के बाद लौट रहे थे, लेकिन जोरावर सिंह की समाधि तो तिब्बत के तकलाकोट में बनी हुई है।

-नंदा राजजात के दौरान राज परिवार के द्वारा रूपकुंड पर पितरों का तर्पण दर्शाता है कि ये अवशेष किसी राज परिवार से संबंधित है।

-कहा तो यह भी जाता है कि क्ब्वीं सदी में कन्नौज के राजा जसधवल सेना के साथ जात में आया था। अय्याश प्रवृति के राजा ने रूपकुंड से पहले नर्तकियों को नचा दिया। इसीलिए यहां का नाम पातर नचौणियां भी हैं। ये सभी नर्तकियां बादल में शिला में बदल गई।