साथ ही यह सोशल मीडिया को इंडिपेंडेंट बनाता है क्योंकि यह संचार के माध्यम पर लोगों की पहुंच उपलब्ध कराता है. नार्वे की साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनीवर्सिटी पॉलिटिकल साइंटिस्ट एंद्रा डि सोयसा ने कहा,"गूगल के मार्केटिंग मैनेजर सोशल मीडिया के बिना प्रदर्शनकारियों को नहीं जुटा पाते." दिसम्बर 2010 में ट्यूनीशिया में हुए आंदोलन के बाद बाकी अरब देशों में आंदोलन की लहर फैल गई.

इंटरनेट के जरिए रिवोल्यूशन

ट्यूनीशिया के आंदोलन के बाद जनवरी 2011 में यहां के राष्ट्रपति जिने अल अबीदीन बेन अली को पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद यमन, लीबिया और मिस्र में विरोध प्रदर्शन हुए और मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक को सत्ता त्यागनी पड़ी.डि सोयसा ने कहा कि अरब देशों और उत्तरी अफ्रीका में चल रही इस क्रांति के बीज इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता समाप्त होने के बाद ही पड़ गए थे.

टेलीविजन ह्यूमनराइट्स के लिए बुरा है

डि सोयसा ने कहा, "टेलीविजन ह्यूमनराइट्स के लिए बुरा है क्योंकि सरकारें इसके जरिए प्रोपेगंडा फैलाती हैं जबकि इंटरनेट और मोबाइल फोन का इससे विपरीत असर है. सोशल मीडिया इन सबसे अलग है क्योंकि यह लोगों को संचार के माध्यम पर पहुंच की स्वतंत्रता प्रदान करता है." इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ह्यूमन राइट्स में लिखे एक लेख 'द ब्लॉग वर्सेज बिग ब्रदर' में सोयसा ने कहा, "प्रशासन इस बात की निगरानी नहीं कर सकता कि लोग इंटरनेट पर क्या पढ़ या देख रहे हैं और इससे समाज पारदर्शी बनता है." डि सोयसा ने लिखा है कि बीबीसी और सीएनएन जैसे संगठनों को प्रत्यक्षदर्शियों ने अपने मोबाइल फोन से खींचे गए चित्र भेजे.