Social change है जरूरी
कदमा में रहने वाली पूनम साहू ने कहा कि आज के दौर में महिलाओं के लिए सोशल सिक्योरिटी सबसे अहम चीज है। घर से ऑफिस या मार्केट जाने तक में ही आपको कई जगह फŽितयों का शिकार होना पड़ता है। ऐसे फŽितयां मारने वाले तो दोषी होते ही हैं पर उनसे भी बड़े दोषी होते हैं वो लोग जो ये सब देखकर भी अनदेखा करते हैं। इसी नतीजा है कि छेड़छाड़ करने वालों को पŽिलक का खौफ ही नहीं रह गया है।

Acts में होने चाहिए कुछ बदलाव
सोनारी में रहने वाली अनामिका का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्भया कांड के दोषियों को सुनाई गई सजा काबिले तारीफ है। पर मेन कल्प्रिट विनोद को 16 साल का होने के चलते जुवेनाइल एक्ट के तहत केवल तीन साल की सजा सुनाये जाने का फैसला कहीं-न-कहीं संविधान और समाज की हार है। वह कहती हैं कि जब गल्र्स को 16 साल की उम्र में शादी के लायक बताए जाने का फैसला लिया जा सकता है तो 16 साल में रेप जैसा हीनियस क्राइम करने वाले को जुवेनाइल कैसे कंसीडर किया जा सकता है?  ऐसे में तो लोगों का मनोबल और भी बढ़ेगा।

Girls को खुद ही उठानी होगी अपने हक के लिए आवाज
बिष्टुपुर में रहने वाली मोनिका का मानना है कि जब तक गल्र्स खुद अपने अधिकारों और लिबर्टी के लिए आवाज नहीं उठाएंगी तब तक समाज के कान में जूं नहीं रेंगेगा। अगर आपके साथ कोई भी छेड़छाड़ की घटना होती है, तो दबें नहीं बल्कि आवाज उठाएं। इसकी पुलिस से भी शिकायत करें। कुछ गल्र्स इस बात से डरती हैं कि इससे उनकी और उनके फैमिली की बदनामी होगी। उनका यही डर छेड़छाड़ करने वालों की ताकत बन जाता है। इसे बदलने की जरूरत है।

लोगों को बदलनी होगी सोच
अगर महिलाओं को सोसाइटी में एक हेल्दी एटमॉस्फियर प्रोवाइड कराना है तो इसके लिए लोगों को सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी। ये कहना है सिटी की मनदीप। मनदीप कहती हैं कि महिलाओं को लेकर पुरुषों के दिमाग में एक कमजोर और सेक्स सिम्बल की जो इमेज बनी रहती है। इसे बदलने की जरूरत है। ये लोगों की गिरी हुई मेंटैलिटी का ही नतीजा है कि आज पांच-छह साल की छोटी-छोटी बच्चियों तक के साथ ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

बनने चाहिए कुछ strict rules
छेड़छाड़ करने वालों के लिए एडमिनिस्ट्रेशन को कुछ ऐसे रूल्स बनाने चाहिए कि किसी भी महिला के साथ छेड़खानी करने से पहले ये लोग सौ बार सोचें। ये कहना है सोनारी की गुरप्रीत का। उनका मानना है कि अगर प्रशासन चाह ले तो किसी भी तरह के क्राइम के रेसियो को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वैसे तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्भया कांड के दोषियों को फांसी की सजा सुना कर एक एक्जाम्पल सेट किया गया है। पर इस तरह के बदलाव की देश के हर कोने में जरूरत है।

बात लोगों के नजरिये की है
सोनारी में रहने वाली अंचल कहती हैं कि अगर समाज में बदलाव हो रहा है तो क्या इस बदलाव का साक्षी बनने का हक केवल लडक़ों को है? ट्रेंड बदल रहा है तो केवल लडक़े अपना पहनावा चेंज कर सकते हैं, लड़कियां नहीं। ये तो कोई बात नहीं हुई। कई लोगों का मानना है कि लड़कियों का पहनावा ऐसे इंसिडेंट्स को बढ़ावा देता है, अरे अगर यही बात है तो ऐसे इंसिडेंट्स 5-6 साल की बच्चियों के साथ क्यूं हो रहे हैं। गल्र्स को अपना पहनावा चेंज करने की जरूरत नहीं बल्कि लोगों को नजरिया चेंज करने की आवश्यकता है।

Report by :jamshedpur@inext.co.in