- सोमवार को अमावस्या का योग हो तो गंगा स्नान और दान का मिलता है विशेष फल

BAREILLY :

सोमवती अमावस्या कई खास योग और पुण्य नक्षत्र के बीच मनाई जाएगी.10 वर्ष बाद बैसाख में सर्वाथ सिद्धि योग और अश्वनि नक्षत्र का संयोग बन रहा है। जो शुभ कार्यो के लिए विशेष फलदायी रहेगा। सोमवती अमावस्या का महत्व सुहागिनों के लिए अधिक है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं। राजीव शर्मा के अनुसार एक राशि पर उपरिअधो भाव से सूर्य-चन्द्रमा का संबंध जिस काल में होता है वह अमावस्या तिथि कहलाती है। अमावस्या पर गंगा स्नान से विशेष पुण्य मिलता है।

पीपल के मूल में होता है विष्णु का प्रतीक

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोमवार को यदि अमावस्या का योग हो तो स्नान, दान एवं श्राद्ध का विशेष फल मिलता है। इस दिन पितृों के निमत्त श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध का विशेष फल मिलता है। इस दिन पितृों के लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान, विधिवत पीपल पूजन व परिक्रमा की जाए इसका फल पितृों को अर्पण किया जाए, तो पितृ तृप्त होकर कर्ता को पुण्य मिलता है। इस दिन पितृों को मोक्ष हेतु नांदी श्राद्ध किया जाए तो पतृ अवश्य मुक्ति प्राप्त कर जातक समृद्धि, संतति से परिपूर्ण करते हैं। सोमवती अमावस्या को स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए पीपल वृक्ष के मूल को विष्णु का प्रतीक मानकर उसकी 108 बार परिक्रमा करती है।

महिलाएं सुहाग की रक्षा की करती है कामना

शास्त्रों की मान्यता है कि जो स्त्री अपने सुहाग की रक्षा की कामना करती है वह पीपल वृक्ष मूल में विष्णु की प्रतिमा बनाकर शास्त्र सम्मत विधि से पूजन करे। पीपल के वृक्ष में सभी देवों का वास होना माना जाता है। पुराण के सृष्टि खंड में पीपल वृक्ष को स्पर्श करने से पापों को क्षय तथ लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। प्रदक्षिणा करने से आयु बढ़ती है। पीपल के वृक्ष के मूल में विष्णु और तने में शिव तथा अग्र भाग में ब्रह्मा विराजमान रहते हैं। ग्रंथो के अनुसार रविवार के दिन पीपल के नीचे एक मुखी हनुमत कवच के पाठ करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। सोमवती अमावस्या वाले दिन पीपल के वृक्ष के नमन से एक हजार गौ के दान का फल मिलता है।

पूजन विधि

पीपल पर दूध मिश्रित जल चढ़ाए, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए नमन करें। इसके बाद दाएं घी तथा बाएं तेल का दीपक जलाएं। घी के दीपक के नीचे चने की दाल रखें तथा तेल के दीपक के नीचे काले उड़द तथा काले दिल रखें। इसके बाद पीपल वृक्ष को विष्णुमय समझकर षोडशोपचार विधि से पूजन करें। इसके बाद परिक्रमा आरम्भ कर पीपल पर थोड़ा जल छिड़ कर फूल चढ़ाएं। बाद में कच्चा सूत पीपल पर लपेंटे तथा परिक्रमा करते हुए मंत्र 'ऊं नमो: भगवते वासुदेवाय' बोलते हुए परिक्रमा करें।