तितली की शक्ल में बने हैदराबाद हाउस में 36 कमरे हैं और यह पिछले 64 सालों से भारत आने वाले करीब-करीब हर राष्ट्राध्यक्ष की मेज़बानी करता आया है। लेकिन इस बार हिलेरी क्लिंटन के साथ जो प्रतिनिधिमंडल आया है उसके लिए हैदराबाद के पूर्व निज़ाम का यह राजमहल छोटा पड़ गया।

हिलेरी इस बार अपने साथ 25 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल लाई हैं। इतना बड़ा प्रतिनिधिमंडल आम तौर से राष्ट्रपति, राजा और प्रधानमंत्री लाते हैं।

हैदराबाद में हुई मुलाकात और बातचीत में भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के अलावा भारत की तरफ़ से भी 25 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। नतीजा यह रहा कि इस बातचीत के लिए हैदराबाद हाउस में उपलब्ध सबसे बड़ी मेज़ भी छोटी पड़ गई। इस मेज़ पर दोनों तरफ़ 15-15 लोग ही बैठ सकते हैं।

दोनों तरफ़ के 11-11 लोगों को मुख्य मेज़ पर बैठने का मौका ही नहीं मिला। इन 22 लोगों को मेज़ के पीछे लगी अतिरिक्त कुर्सियों पर बैठाया गया, लेकिन दिक्कत यह रही कि इन कुर्सियों में न तो सुनने के कोई यंत्र लगे थे और न ही लिखने और फ़ाइल रखने की कोई जगह थी।

छोटी पड़ गई मेज़

हैदराबाद हाउस पर नज़र रखने वालों का कहना है कि भारत सोवियत संघ संबंधों के अच्छे दिनों के दौरान भी इतना बड़ा प्रतिनिधिमंडल यहाँ कभी नहीं आया जितना कि हिलेरी इस बार अपने साथ लाई हैं।

वैसे रूस अमरीका, ब्रिटेन और कई अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपने भारत दौरे पर काफ़ी बड़े प्रतिनिधिमंडल लाते हैं लेकिन द्विपक्षीय बातचीत के लिए इन्हें कई हिस्सों में बाँट दिया जाता है और यह ज़रूरी नहीं कि वह हैदराबाद हाउस में ही यह आपस में एक दूसरे से मिलें। हैदराबाद हाउस के 36 कमरे छोटे दलों की मुलाकातों के लिए ही पर्याप्त हैं।

हिलेरी के दौरे के लिए हैदराबाद हाउस इसलिए भी छोटा पड़ा क्योंकि यहाँ के मुख्य बैंक्वेट हॉल की मेज़ पर सिर्फ़ 40 अतिथि ही एक साथ भोजन कर सकते हैं। भारत और अमरीका के प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों की संख्या ही 52 है, इसलिए 12 अतिरिक्त लोगों के खाने का इंतज़ाम बग़ल के डाइनिंग रूम में किया गया।

आम तौर से इस मौके पर भ्रमण कर रहे महत्वपूर्ण व्यक्तियों की रुचि को देखते हुए सरकार से बाहर के कुछ लोगों को भी खाने पर बुलाया जाता है। लेकिन चूँकि दोनों दलों के लोगों की संख्या ही इतनी ज़्यादा थी इसलिए सरकार से बाहर के किसी व्यक्ति को न्योता नहीं भेजा गया। भारतीय विदेश मंत्री द्वारा दिए गए इस भोज को वर्किंग लंच में परिवर्तित कर दिया गया।

भारत को ही अकेले यह परेशानी नहीं झेलनी पड़ी है। पिछली बार जब अमरीका ने दोनों देशों के बाच रणनीतिक बातचीत की मेज़बानी की थी तो उनको भी इसी तरह की समस्या से दो चार होना पड़ा था और मेज़ छोटी होने के कारण कुछ प्रतिनिधियों को बगल के कमरे में खाना खिलाया गया था।

एक समय पर यह भी सोचा गया कि इस भोज को किसी पाँच सितारा होटल में आयोजित किया जाए लेकिन साउथ ब्लॉक के परंपरावादियों ने उसका विरोध किया और इसलिए भी यह विचार त्याग दिया गया कि इसमें बहुत पैसे ख़र्च होंगे।

International News inextlive from World News Desk