Cycle ने बनाया सफर आसान
19 साल की नंदिता आज गाती है, क्रिकेट खेलती है, फुटबॉल की ट्रेनिंग लेकर बड़े इंवेंट्स में पार्टिसिपेट करने की तैयारी भी चल रही है, लेकिन हमेशा से सबकुछ ऐसा नहीं था। पैदा होते ही माता-पिता ने उसे छोड़ दिया, वह करीब सात-आठ दिन की थी तब उसे कदमा स्थित ऑर्फेनेज शिशु निकेतन का सहारा मिला। शिशु निकेतन की एडमिनिस्ट्रेटिव सेक्रेटरी कंचन सिंह ने बताया कि उसका मेंटल डेवलपमेंट आम बच्चों की तरह नहीं था इसलिए उसके सामने कई परेशानियां थीं। लेकिन नंदिता ने हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़ती रही।

यूं हुआ cycle से नाता
नंदिता का साइकिल से नाता 2007 में बना। शिशु निकेतन की एडमिनिस्ट्रेटिव सेक्रेटरी के अनुसार नंदिता के शौक को देखते हुए उसे एक साइकिल खरीद कर दिया गया। फिर क्या है जब भी मौका मिलता नंदिता साइकिल लेकर निकल पड़ती। नंदिता ने बताया कि साइकिल चलाते वक्त कई बार सडक़ों पर गिरी, चोटें आईं, साइकिल का साथ नहीं छोड़ा।

शिखर तक का सफर
साइक्लिंग के प्रति नंदिता का शौक दिन-ब-दिन बढ़ता गया। इसी दौरान स्पेशल ओलंपिक के कोच अवतार सिंह की नजर उस पर पड़ी। साइक्लिंग के प्रति उसका इंटरेस्ट देखते हुए अवतार सिंह ने उसे टीम में शामिल करने का फैसला किया और उसकी ट्रेनिंग स्टार्ट की। अवतार सिंह ने कहा कि मेंटली चैलेंज्ड होने की वजह से उसकी ट्रेनिंग काफी टफ थी। 2009 से लेकर 2011 तक लंबी ट्रेनिंग के बाद अवतार सिंह ने नंदिता को चैैंपियन के रूप में ढाला।


Gold medal किया अपने नाम
स्टेट और नेशनल लेवल पर साइक्लिंग प्रतियोगिताएं जीतने के बाद नंदिता को 2011 में एथेंस में होने वाले स्पेशल ओलंपिक वल्र्ड समर गेम्स में जाने का मौका मिला। यहां शानदार प्रदर्शन करते हुए दुनियाभर से आए प्रतिभागियों को पीछे छोड़ नंदिता ने 500 मीटर टाइम ट्रायल और 5 किलोमीटर टाइम ट्रायल में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। लेकिन एथेंस में जीत की खुशी मिलने से पहले नंदिता की आंखों में आंसू भी आए। अवतार सिंह ने बताया कि साइक्लिंग के एक किलोमीटर टाइम ट्रायल में फोर्थ रैैंक मिलने पर नंदिता रोने लगी, वो यहां सब को गोल्ड मेडल देने का वादा कर के गई थी, आखिरकार उसने अपना वादा पूरा किया।

Cycle का रहा अहम role
नंदिता आज किसी नॉर्मल बच्चे की तरह बिहेव करती है, ऑर्फेनेज में स्क्रीन प्रिंटिंग का काम भी कर देती है। अवतार सिंह कहते हैं कि इसमें साइकिल का अहम रोल रहा। साइकिल चलाने से उसके मन में सेल्फ कांफिडेंस आया। ट्रेनिंग के दौरान उसने कई चीजें सीखीं। जिससे उसे नॉर्मल होने में काफी हेल्प मिली। स्पेशल ओलंपिक भारत की नेशनल ट्रेनर सुखदीप कौर ने बताया कि इस जीत से नंदिता के मन में भी ये विश्वास जगा की वो भी कुछ कर सकती है। यह विश्वास उसे हमेशा आगे बढऩे में मदद करेगा।

आज भी है cycle से प्यार  
नंदिता को आज भी साइकिल से बेहद लगाव है। साइकिल का उसकी लाइफ में इंपोर्टेंट रोल है। नंदिता ने बताया कि अभी भी वो ट्रेनिंग के लिए जाने या दूसरे कामों के लिए साइकिल का इस्तेमाल करती है। इसके अलावा जब भी मौका मिलता है साइक्लिंग करती है।


साइक्लिंग करना मुझे बेहद पसंद है। शुरुआत में साइकिल चलाते वक्त कई बार गिरी पर हमेशा उठकर चल  देती थी।
-नंदिता, साइकलिस्ट


नंदिता एक बेहतरीन साइकलिस्ट है। एथेंस में गोल्ड मेडल जीतकर उसने ये साबित भी किया है। साइक्लिंग ने उसे आत्म विश्वास दिया है।
-अवतार सिंह, रिजनल ट्रेनर (एशिया-पैसिफिक कंट्रीज), स्पेशल ओलंपिक भारत

नंदिता को साइक्लिंग बेहद पसंद है। उसके डेवलपमेंट में साइक्लिंग का अहम रोल है। साइकिल से उसमें विश्वास जगा है कि वो भी कुछ कर सकती है।
-सुखदीप कौर,  नेशनल ट्रेनर, स्पेशल ओलंपिक भारत

Report by : abhijit.pandey@inext.co.in