- पांच साल में लापता हुए 40 बच्चे

- ऑपरेशन मुस्कान में खोजे जा रहे लापता बच्चे

GORAKHPUR : 'मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू, मुद्दतों मां ने अपना दुपट्टा नहीं धोया'

मशहूर शायर मुन्नवर राणा ने इन लाइनों के माध्यम से अपने प्रति उनकी मां के प्रेम को बताया था, लेकिन इस जिले में सैकड़ों मांएं ऐसी हैं जो अपने कलेजे के टुकड़ों को मुद्दतों से देख तक नहीं पाई है। उनकी छोटी से छोटी चीजों को सहेज के इस आस में बैठी हैं कि एक दिन उनका लाल आएगा और मैं यह सब उसे दूंगी। अपने बेटे की मुस्कान देखने और रोते समय आंसू को पोंछने के लिए उनका आंचल छटपटा रहा है। लेकिन उनकी पीड़ा कोई नहीं समझ रहा है.अपने बच्चे की उम्र का जब कोई बच्चा वो देखती हैं, अपने बेटे के खाने-पीने और सोने की फिक्रकर रोने लगती हैं। लेकिन वो दुनिया की सबसे बेबस मां हैं, कुछ नहीं कर सकतीं केवल रो सकती हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक मां की पीड़ा को समझ लिया। राज्य सरकार को जरूरी निर्देश दिए, जिस पर प्रदेश सरकार ने आपरेशन मुस्कान चलाया है। इस अभियान के तहत मासूमों की घर छोड़ने की वजहों, शहर के होटलों तथा गैरसरकारी प्रतिष्ठानों में काम करने वालों बच्चों के बारे में पता किया जा रहा है। प्रदेश भर में चलाए जा रहे इस अभियान के दौरान जिन बच्चों के परिजनों का पता चल जाएगा उन्हें उनके घर पहुंचाने का संकल्प है। अब देखना यह की सरकारी सिस्टम किस हद तक इस कार्य में सफल होता।

केस 1

शाहपुर एरिया के चौहान टोला मोहनापुर निवासी स्व। प्रभुनाथ चौहान का सोलह वर्षीय पुत्र सतीश चौहान 19 जून से लापता है। मां-बाप की मौत होने के बाद भाई अजीत चौहान ही उसकी देखभाल करता था। जब से छोटा भाई गायब है। वह रात दिन उसकी की तलाश में लगा है लेकिन कहीं भी उसका पता नहीं चला। छोटे भाई के लापता होने का गम आये दिन उसे सता रहा है। अजीत ने बताया कि मेरे पिता रेलवे में नौकरी करते थे अचानक वह बीमार हो गए और उनकी मौत हो गयी। इसके बाद मां ने भी हम लोगों का साथ छोड़ दिया। पिता के स्थान पर रेलवे में नौकरी लगी। इसके बाद छोटे भाई की सारी जिम्मेदारी मेरे ही कंधे पर आ गयी। उसकी हर जरूरत की चीजों को पूरा करता रहा 19 जून से वह गायब है।

केस 2

राजघाट एरिया के चकरा अव्वल निवासी रमाकांत की बेटी अंजनी वर्ष 2012 में अचानक गायब हो गयी। इसकी पूरी तफ्तीश के लिए आई नेक्स्ट रिपोर्टर रमाकांत के घर पहुंचा। यहा पत्‍‌नी चंद्रावती थी। जब गायब हुई बच्ची के बारे में उससे सवाल जवाब किया गया तो वह रो पड़ी। उनका कहना था कि बेटी के गुम हुए पांच साल हो गए हैं। नात, रिश्तेदार और जानने वालों के यहां ढूढ़ा गया शाम का समय था सभी लोग घर में व्यस्त थे। इसी दौरान वह घर से निकली उसके बाद से ही पता नहीं चला। रात भर परिवार के लोग उसको खोजने में लगे रहे फिर भी वह नहीं मिली। थकहार कर उसकी गुमशुदगी राजघाट थाने में दर्ज करायी गयी। इतना ही नहीं प्रचार प्रसार भी कराया गया। अभी भी उसकी याद आती है लेकिन सबकुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया हूं। तब से उसके पिता अक्सर बीमार रहते हैं। तीन बेटी और तीन बेटों में अंजनी सबसे छोटी थी। चंद्रावती मजदूरी करके अपने पूरे परिवार को भरण पोषण करती है।

भयानक अंधेरे की गिरफ्त में पहुंच जाते हैं मासूम

खुद गुस्सा होकर या दोस्तों के बहकावे में घर से दूर हुए बच्चों को लगता है कि बाहर सब कुछ उनके अनुसार होगा। वे बेरोकटोक आराम की जिंदगी जिएंगे, लेकिन बचपने में वे खुद को भयानक अंधेरे में पहुंचा देते है। जहां से ज्यादातर बच्चे क भी निकल नहीं पाते। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने बच्चों के घर छोड़ने की वजहों को जानने की कोशिश की तो ये बातें सामने आई।

- घर में डांट या खाने-पीने का अभाव

- शहरों की चमक-दमक में फंस जाते हैं बच्चे

- मोबाइल या फेसबुक फ्रेंड के चक्कर में घर छोड़ती किशोरियां

बच्चे अपने डिस्ट्रिक्ट से भागकर दूर चले जाते हैं। ज्यादातर बच्चे स्टेट बदल देते हैं, इसलिए उन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है। पिछले महीने चाइल्ड लाइन से 64 बच्चों को उनके परिवार से मिलाया। इन बच्चों में से ज्यादातर बिहार-झारखंड के थे।

विरेंद्र कुमार, चाइल्ड लाइन

बच्चों के घर से भागने की वजह उनका ध्यान नहीं दिया जाना या कभी कभी जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया जाना होता है। घर में उपेक्षा का शिकार होकर बच्चे घर से चले जात हैं वहीं कुछ मामले ऐसे भी होते हैं कि जिद न पूरी होने के कारण बच्चे घर छोड देते हैं। एग्जाम में फेल होने का डर भी बच्चों के घर छोड़ने की एक बड़ी वजह होती है।

डा। सीपी मल्ल, मनोचिकित्सक

बच्चों के घर छोड़ने का बड़ा कारण फैमिली का एटमॉसफियर होता है। उसमें माता पिता का व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। ज्यदातार मामलों में बच्चे के प्रति पिता का व्यवहार अच्छा नहीं पाया गया है। ऐसे में मामले डिस्टर्ब फैमिली में ज्यादा देखे जाते हैं।

डा। धनंजय कुमार, प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग, डीडीयूजीयू