--कंप्यूटर से लेकर सोहराई पेंटिंग की ट्रेनिंग के बाद अब फिजियोथेरेपी की ट्रेनिंग

--बाल कैदियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए अनोखी पहल

RANCHI (12 June): बाल बंदियों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए सरकार नये प्रयोग कर रही है। उन्हें रोजगार प्रदान करने की मुहिम में अब डुमरदग्गा स्थित बाल सुधार गृह के बाल बंदियों को फिजियोथेरेपी की ट्रेनिंग दी जा रही है। जाने-अनजाने अपराध की दुनिया में कदम रखनेवाले बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की यह जिम्मेदारी झालसा निभा रही है। राजधानी के डुमरदग्गा स्थित बाल सुधार गृह में हुनरमंद बाल कैदियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए अनोखी पहल की जा रही है।

पेंटिंग की भी ट्रेनिंग

बाल सुधार गृह में कंप्यूटर और सोहराय पेंटिंग की ट्रेनिंग ले चुके बच्चों का अतीत भले ही अपराध से जुड़ा हुआ हो, मगर आज ये बच्चे समाज की मुख्यधारा से जुड़ने जा रहे हैं। एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल ने राजधानी के डुमरदग्गा स्थित बाल सुधार गृह जाकर न्यायिक कायरें और निजी संस्थानों में होनेवाले काम में इन्हें वर्क बेस्ड पेंमेट के आधार पर काम में लगाने की बात कही थी। जस्टिस पटेल ने पुनर्वास पर जोर दिया, जिससे बाल सुधार गृह से निकलने के बाद ये बच्चे हुनरमंद होकर समाज की मुख्यधारा में लौट सकें।

वापस लाना चुनौती

डुमरदग्गा स्थित इस बाल सुधार गृह में वर्तमान में 65 बच्चे बंद हैं। इनकी आपराधिक प्रवृत्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों यहां से चार बच्चे फरार हो गए थे। इनके माइंडसेट में बदलाव करते हुए इन्हें अपराध की दुनिया से हटाकर शैक्षणिक माहौल में लाने का प्रयास किया जा रहा है, जो एक चुनौती बनी हुई है।

समाज कल्याण विभाग का यहयोग

समाज कल्याण विभाग के सहयोग से झालसा द्वारा की जा रही इस अनोखी पहल से जल्द ही ये बच्चे हुनरमंद होकर स्वावलंबी हो जाएंगे। झालसा के इस प्रयास ने उन मासूमों को नई जिंदगी प्रदान की है, जिन्होंने जाने-अनजाने में अपराध की दुनिया में कदम रख दिया है। बहरहाल हुनरमंद बनते ये बच्चे नि:संदेह कल के भविष्य हैं, जिसे संवारने के लिए समाज को भी आगे आना होगा।

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बच्चे तो बच्चे हैं, भले उनके रास्ते बदल गए हैं और वे लोग अपराध की दुनिया में प्रवेश कर गए हैं। ऐसे बच्चों को फिर से वापस सभ्य समाज में लाने की मुहिम एक चुनौती है। झालसा का पूरा प्रयास है कि बच्चों की आंतरिक क्षमता को डेवलप कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जाए।

मनीषा रानी

अधिवक्ता, झालसा