श्री गौड़ीय मठ एवं मिशन के शताब्दी समारोह में आध्यात्मिक संगोष्ठी

ALLAHABAD: श्री गौड़ीय मठ एवं मिशन के शताब्दी समारोह पर दो दिवसीय आध्यात्मिक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी के दूसरे दिन की शुरुआत गौड़ीय मिशन के ब्रम्हचारी गणों के द्वारा हरिनाम संकीर्तन से किया गया। इसके बाद अयोध्या से आए पूज्य स्वामी शशिधराचार्य जी महाराज ने दीप प्रज्जवलित कर समारोह का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर धर्म सम्मेलन मुख्यत: श्री चैतन्य महाप्रभु की रूप शिक्षा का वैशिष्ट्य पर आधारित रहा। मुख्य विषय पर प्रकाश डालते हुए मिशन के सेवा सचिव श्रीपद भक्तिसुंदर संयासी श्री महाराज ने बताया कि श्री चैतन्य महाप्रभु ने पांच वर्ष पूर्व इसी प्रयाग नगरी के दशाश्वमेध घाट पर दस दिनों तक अपने शिष्य श्री रूप गोस्वामी को ज्ञाप उपदेश दिया। जिन्होंने आगे चलकर गौड़ीय मिशन की प्रयाग शाखा का नाम श्री रूप गौड़ीय मठ रखा।

अहंकार को त्यागे मनुष्य

अध्यात्मिक संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए नवद्वीप पश्चिम बंगाल से आए श्री पाद भक्तिस्नात सज्जन महाराज ने बताया कि कृष्ण रस के सागर है। उन्हें सिर्फ प्रेम के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसका अर्थ है कि भगवान श्री कृष्ण सिर्फ प्रेम पिपासु है। मनुष्य को अपने अंदर के अहंकार को त्याग कर पूरे समर्पण भाव से भगवान को प्रेम करना चाहिए। जिस प्रकार गोपियों ने भगवान के प्रति समर्पित थी। गोपियों के मन में किसी भी प्रकार का स्वार्थ व अभियान नहीं था। इसी का परिणाम था कि भगवान गोपियों को प्रेम रूप में प्राप्त हुए। इस दौरान अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। मीडिया प्रभारी राजेश पाण्डेय ने बताया कि उक्त सम्मेलन में बंगाल स्थित मठ शाखा आचार्य भी अपने शिष्यों के साथ शामिल हुए। समारोह का संचालन जयदीप गांगुली ने किया।