-खेल अनुदान के नाम पर तीन साल बाद आया मात्र 16700 रुपए का बजट

-साढ़े पांच रुपए प्रति स्कूल आया खेल अनुदान, वितरण करना तक पड़ गया महंगा

BAREILLY: शिक्षा विभाग खेल जैसे अति महत्वपूर्ण विषय के साथ लगातार खेल कर रहा है। स्कूलों को निर्देश तो दिए गए हैं कि खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करायी जाएं, लेकिन इसके लिए फाइनेंशियल सपोर्ट के नाम पर विभाग कुछ नहीं भेजता। पिछले सेशन में चार साल बाद शासन ने 16700 रुपए स्पोर्ट्स ग्रांट जारी की। इतनी राशि अगर सभी 2097 स्कूलों को भेजी जाती है तो हर स्कूल को सिर्फ खेल अनुदान में सिर्फ साढ़े पांच रुपए मिलेंगे।

सरकारी अनुदान के सहारे खेल

बेसिक शिक्षा विभाग के अनुसार वर्ष 2010 से पहले खेल अनुदान के नाम पर विभाग अधिकतम 20 हजार रुपए भेजता रहा। लेकिन उस समय आरटीई लागू नहीं थी, जिसके चलते छात्रों से एक रुपए पर मंथ स्पोर्ट फीस वसूली जाती थी। लेकिन 2010 के बाद मुफ्त व अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा अधिनियम लागू होने के बाद छात्रों से ली जाने वाली राशि बंद हो गई। इसके बाद 2010 से 2013 तक विभाग ने कोई अनुदान ही नहीं दिया।

साढ़े पांच रुपए में खेल

पिछले साल लंबे इंतजार के बाद अनुदान आया जो सिर्फ 16700 रुपए था। अगर ये राशि सभी स्कूलों को भेजी जाए तो एक स्कूल के खाते में सिर्फ 5.60 रुपए ही आएंगे। इसलिए इस राशि को डीएम की अध्यक्षता वाली समिति ने जिले के 16 समग्र गांवों को बांट दिया। हर स्कूल को 1100 रुपए की राशि भेज दी गई।

कैसे हो प्रतियोगिता का आयोजन

बेसिक स्कूलों में स्कूल, ब्लॉक, तहसील व जिला स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित कराने का प्रावधान है। लेकिन खेल-कूद प्रतियोगिता स्कूल आखिर किस बजट से आयोजित कराएं।

खेल शिक्षक से महरूम प्राइमरी स्कूल

एक तरफ सौ से कम छात्र संख्या वाले स्कूल खेल शिक्षा से महरूम हैं। वहीं दूसरी ओर प्राइमरी स्कूलों में खेल शिक्षक रखने का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में 2097 प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले करीब ढाई लाख छात्र खेल शिक्षा से पूरी तरह महरूम रह जाते हैं। ऐसे में ये छात्र जब 6 क्लास में आते हैं तो उनका खेल के प्रति रुझान ही नहीं होता। जिसकी वजह से बच्चों के मानसिक व शरीरिक विकास पर तो फर्क पड़ता ही है । वहीं खेल में करियर बनाने वाले छात्र भी कम ही निकल पाते हैं।

कई सालों से हम मांग कर रहे हैं कि शासन स्कूल वाइज खेल अनुदान भेजे, लेकिन विभाग सिर्फ एक मुश्त रकम भेज देती हैं, जिसका वितरण करना भी मुश्किल हो जाता है।

आरपी विश्वकर्मा , स्काउट टीचर