रिपोर्टों में एक वरिष्ठ आव्रजन अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि इन मौलवियों को मस्जिदों में प्रचार करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे टूरिस्ट वीज़ा पर श्रीलंका आए थे।

इस अधिकारी का ये भी कहना था कि कुछ स्थानीय मुसलमानों ने शिक़ायत की थी कि ये मौलवी इस्लाम के उदारवादी रूप के बारे में नहीं सिखा रहे थे। बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, मालदीव और अरब देशों से आए इन मौलवियों को 31 जनवरी तक वापस जाना होगा।

चरमपंथी नहीं

श्रीलंका के आव्रजन प्रमुख चुलानंदा पेरेरा ने एएफ़पी समाचार एजेंसी को बताया, "इन मौलवियों ने आव्रजन क़ानूनों का उल्लंघन किया है। टूरिस्ट वीज़ा छुट्टी मनाने या दोस्तों या परिवार से मिलने के लिए होता है, न कि इस्लाम के प्रचार के लिए." पेरेरा का कहना था कि ये मौलवी अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन तबलीग़ी जमात के हैं जो श्रीलंका और इस क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है।

बीबीसी को एक मुस्लिम सूत्र ने बताया कि ये संगठन प्रचारकों के गुट को इबादत के स्थानों पर भेजता है और मुसलमानों को अपने धर्म को ज़्यादा समय देने और ज़्यादा धार्मिक जीवन जीने के लिए कहता है। लेकिन सूत्र ने इस विचार को ख़ारिज कर दिया कि ये एक चरमपंथी गुट है।

इस बीच श्रीलंकाई सरकार के मुस्लिम सदस्यों ने इन मौलवियों के निष्कासन के बारे में चिंता जताई है। ऐसी उम्मीद है कि वे निष्कासन के कदम को स्थगित करने के लिए सोमवार को अधिकारियों से मुलाक़ात करेंगे। श्रीलंका में सिंहला और तमिलों के बाद मुस्लिम तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है।

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