राजेन्द्र ने पुलिस ट्रेनिंग सीतापुर में पूरी की थी। उनकी पहली पोस्टिंग इलाहाबाद में 2001 में हुई। दो साल की नौकरी पूरी होने के बाद कौशाम्बी भेज दिया गया। वर्किंग स्टाइल के चलते वह ऑफिसर्स के चहेते रहे और वहां भी कई थानों का इंडीपेंडेंट चार्ज संभाला। लेकिन ज्यादा दिनो तक वहां टिक नहीं सके। छह महीने बाद ही फिर से इलाहाबाद पोस्ट कर दिए गए.
खतरों से कभी डरते नहीं थे
जिले में दूसरी बार आने के बाद राजेन्द्र एक साल तक कई थानों में एसओ रहे। इसके बाद उनका ट्रांसफर फतेहपुर कर दिया गया। फतेहपुर में भी वह ज्यादा दिन नहीं टिके और 2012 में तीसरी बार इलाहाबाद पोस्टिंग पर आए। इस बार पहली तैनाती कर्नलगंज थाने की कटरा चौकी प्रभारी के पद पर मिली। इस दौरान कटरा में ही स्टूडेंट लीडर अच्युतानंद उर्फ सुमित शुक्ला की धर पकड़ को लेकर सीधे भिड़ंत हो गई। सुमित ने पुलिस टीम पर गोली चला दी। राजेन्द्र द्विवेदी तो बच गए थे लेकिन गोली कर्नलगंज थाने में पोस्टेड एक कांस्टेबल को छूते हुए निकल गई। 26 जुलाई की इस घटना के बाद फ्राइडे को उनका सामना एक बार फिर बदमाशों से हुआ था.
वर्किंग स्टाइल कुछ अलग थी
इस वर्किंग स्टाइल के चलते कुछ दिन बाद ही उन्हें एसओ घूरपुर बना दिया गया। यहां से चंद महीने बाद ही वह एसओ बारा बनाकर भेज दिए गए। 13 साल के कॅरियर में ज्यादातर समय वह थानों के स्वतंत्र चार्ज में रहे.
2001 में आए थे इलाहाबाद
राजेन्द्र ने पुलिस ट्रेनिंग सीतापुर में पूरी की थी। उनकी पहली पोस्टिंग इलाहाबाद में 2001 में हुई। दो साल की नौकरी पूरी होने के बाद कौशाम्बी भेज दिया गया। वर्किंग स्टाइल के चलते वह ऑफिसर्स के चहेते रहे और वहां भी कई थानों का इंडीपेंडेंट चार्ज संभाला। लेकिन ज्यादा दिनो तक वहां टिक नहीं सके। छह महीने बाद ही फिर से इलाहाबाद पोस्ट कर दिए गए.
खतरों से कभी डरते नहीं थे
जिले में दूसरी बार आने के बाद राजेन्द्र एक साल तक कई थानों में एसओ रहे। इसके बाद उनका ट्रांसफर फतेहपुर कर दिया गया। फतेहपुर में भी वह ज्यादा दिन नहीं टिके और 2012 में तीसरी बार इलाहाबाद पोस्टिंग पर आए। इस बार पहली तैनाती कर्नलगंज थाने की कटरा चौकी प्रभारी के पद पर मिली। इस दौरान कटरा में ही स्टूडेंट लीडर अच्युतानंद उर्फ सुमित शुक्ला की धर पकड़ को लेकर सीधे भिड़ंत हो गई। सुमित ने पुलिस टीम पर गोली चला दी। राजेन्द्र द्विवेदी तो बच गए थे लेकिन गोली कर्नलगंज थाने में पोस्टेड एक कांस्टेबल को छूते हुए निकल गई। 26 जुलाई की इस घटना के बाद फ्राइडे को उनका सामना एक बार फिर बदमाशों से हुआ था।
वर्किंग स्टाइल कुछ अलग थी
इस वर्किंग स्टाइल के चलते कुछ दिन बाद ही उन्हें एसओ घूरपुर बना दिया गया। यहां से चंद महीने बाद ही वह एसओ बारा बनाकर भेज दिए गए। 13 साल के कॅरियर में ज्यादातर समय वह थानों के स्वतंत्र चार्ज में रहे.
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