- भारत भीम स्व। जनार्दन सिंह मेमोरियल सीनियर स्टेट रेसलिंग चैंपियनशिप में पहुंचे बजरंग पुनिया ने शेयर की बात

- इंडिया के एकलौते रेसलर जिन्होंने पाई है व‌र्ल्ड नंबर वन रैंकिंग

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GORAKHPUR: टैक्टिस, प्रैक्टिस और कोशिश मेडल दिलाती है। अगर इसमें से किसी भी चीज में कमी आती है, तो मेडल हाथ से दूर भाग सकता है। खिलाडि़यों को टैक्टिस पर खास ध्यान देने की जरूरत है। इसमें सिर्फ अपनी टैक्टिस पर ही नहीं, बल्कि अपने अगेंस्ट में आने वाले रेसलर्स की इन बारीकियों पर भी ध्यान होना चाहिए। वह किस तरह से लड़ता है? उसकी क्या कमियां हैं? कहां गलती करके प्वॉइंट गंवा रहा है? अगर हमने उसकी कमजोरी ढूंढ ली, तो निश्चित ही सफलता हमारे कदम चूमेगी। यह मानना है दुनिया के नंबर वन रेसलर का तमगा हासिल करने वाले हरियाणा के लाल बजरंग पुनिया का। वह गोरखपुर में भारत भीम स्व। जनार्दन सिंह मेमोरियल सीनियर स्टेट रेसलिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे। बजरंग ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से खास बातचीत में बताया कि अब उनका ध्यान इस नंबर वन पोजीशन को मेनटेन करने पर है, जिसके लिए वह दिन-रात लगातार मेहनत कर रहे हैं।

यू-ट्यूब से लेते हैं सीख

फ्री स्टाइल रेसलिंग लड़ने वाले बजरंग को जॉर्जियन कोच शार्को बेनिडिटिस ट्रेन कर रहे हैं, जो योगेश्वर दत्त के भी कोच रहे हैं। लेकिन इवेंट की टैक्टिस और बारीकियों से अपडेट करने के लिए वह मोबाइल भी भरपूर इस्तेमाल करते हैं। बजरंग की मानें तो खाली वक्त में वह यू-ट्यूब पर अपने अपोनेंट की रिकॉर्ड वीडियो देखा करते हैं, जिससे उन्हें उनकी मजबूती और खामियां पता चलती हैं। वह इसके अकॉर्डिग ही अपनी फाइट प्लान करते हैं। इतना ही नहीं, वह अपनी फाइट की वीडियो भी जरूर देखते हैं, जिससे उन्हें अपनी कमजोरियां पता चलती रहें और उस सेगमेंट पर मेहनत की जा सके। उन्होंने बताया कि गेम्स के दौरान यह मोबाइल खतरनाक हो सकता है, इसलिए वह इवेंट करीब आते ही इससे दूर हो जाते हैं, जिससे कि पूरा ध्यान खेल पर लगाया जा सके।

मेहनत से पीछे न भागें खिलाड़ी

पुनिया ने कहा कि खिलाडि़यों को अगर सही मायने में मेडल लाने की ख्वाहिश है, तो वह मेहनत से बिल्कुल न कतराएं। जितना हो सके, वह अपने गेम पर ध्यान दें और इसके लिए वक्त दें। उन्होंने कहा कि अगर यंग जनरेशन का कोई खिलाड़ी रेसलिंग की फील्ड में आना चाहता है, तो वह 7-8 साल की उम्र से शुरुआत कर सकता है। पहले तो कहीं भी खेल की सुविधाएं नहीं थीं, अब बहुत जगह प्रैक्टिस के लिए मैट्स भी आ चुकी हैं, जिससे वह शुरू से ही नेशनल और इंटरनेशनल लेवल को ध्यान में रखकर तैयारी कर सकता है और सीनियर कैटेगरी में पहुंचने के बाद देश के लिए मेडल ला सकता है।

चूक से मिली सीख

बजरंग ने अपने पास्ट एक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी गलतियों से काफी सीख ली है। 2015 में वह चंद प्वॉइंट्स से हार गए, जिसकी वजह से उनका मेडल दूर हो गया, लेकिन इस नाकामी से बजाए निराश होने के उन्होंने इस इवेंट में की गई अपनी गलतियों को सुधारा और इसके बाद लगातार कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते गए। इसका ही नतीजा है कि सार साल में एक दर्जन से ज्यादा मेडल हासिल किए और ओलंपिक में लगातार तीन मेडल हासिल किए।

होनी चाहिए खेल नीति

दुनिया के नंबर वन रेसलिंग खिलाड़ी का तमगा हासिल करने वाले पुनिया ने बताया कि हर स्टेट में खेल नीति का होना काफी जरूरी है। हरियाणा में काफी बदलाव आया है। सरकार ने गांव-गांव में मैट दिए हैं, जिससे कि वहां के खिलाड़ी शुरू से ही बेहतर प्रैक्टिस कर सकें। मैं तो मिट्टी में प्रैक्टिस करता था, लेकिन अब बदलाव आया है। कोई बड़ा टूर्नामेंट होता है, तो वह मैट पर होता है। शुरू में थोड़ी प्रॉब्लम होती थी, लेकिन अब सरकार बढ़ावा दे रही है। खेलो इंडिया नए बच्चों के लिए सुनहरा मौका है। सरकार की मदद से वह खुद को ओलंपिक के लिए तैयार कर सकते हैं। जहां भी सुविधाएं मिलेंगी, मेडल अपने आप आने लगेगा।

स्कूल को करना होगा इंतजाम

इन दिनों स्कूल में भी स्पो‌र्ट्स को लेकर काफी बूम आया है। स्कूल लेवल पर हो रहे कॉम्प्टीशन और उसके रिजल्ट से बच्चों में इंटरेस्ट बढ़ रहा है। एक बात यह जरूरी है कि हर खेल के लिए स्कूल्स में एक्सपर्ट कोच होना जरूरी है। स्कूल को चाहिए कि वह स्पो‌र्ट्स में इंटरेस्ट रखने वाले स्टूडेंट्स के लिए अच्छी व्यवस्थाएं करें। खासतौर पर गांव के बच्चों के लिए व्यवस्था होना जरूरी है। क्योंकि जो भी स्कूली कॉम्प्टीशन हो रहे हैं, उसमें स्कूली बच्चों का पार्टिसिपेशन ज्यादा होता है और उन्हीं के खाते में मेडल भी आते हैं।

प्रो-लीग से खिलाडि़यों को फायदा

प्रो-लीग के बारे में पूछे सवाल के जवाब में पुनिया ने कहा कि प्रो लीग आने के बाद रेसलिंग में काफी बदलाव आया है। इसकी वजह से खिलाडि़यों को गलती सुधारने का मौका मिला है। इंटरनेशनल रेसलर्स से लड़ने का मौका मिलता है। अब हर वेट कैटेगरी में गेम होते हैं और मेडल दिया जाता है, यह काफी फायदेमंद है। नई रेसलिंग टेक्नीक के बारे में बात करते हुए पुनिया ने कहा कि इसमें सबसे ज्यादा दिमाग लगता है। सेकेंड्स में फैसले हो जाते हैं, इसलिए खिलाडि़यों की एक्टिवनेस बढ़ती है। खिलाडि़यों के ऊपर अब फिल्म बन रही है, यह जरूर बननी चाहिए। मूवी देखकर लोगों का रुझान बढ़ता है और खेल की तरफ अट्रैक्ट होते हैं।

फैमिली का मिला पूरा सपोर्ट

जीरो से शिखर तक पहुंचने की बात शेयर करते हुए पुनिया ने कहा कि उन्हें हर कदम फैमिली का सपोर्ट मिला है। जब बच्चा कहे ये चाहिए, माता-पिता बिना कुछ सोचे-समझे अपना सबकुछ दांव पर लगाकर बच्चों की मदद करते हैं। मेरे परिवार को स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। मेरे पास भी नौकरी नहीं थी और इसकी तलाश में भटक रहा था। फैमिली और दोस्तों का सपोर्ट मिला और इच्छा शक्ति मजबूत हुई। इसके बाद कड़ी मेहनत की और सोनीपत में जाकर पहलवानी करने लगा। मेहनत रंग लाई और आज मुझे किसी भी चीज की कमी नहीं है। मेरा सबसे यही कहना है कि ज्यादा से ज्यादा मेहनत करें, खिलाड़ी अपने माता-पिता का सम्मान करें, हार से निराश न हों और जी-जान से मेहनत करें, उन्हें कामयाबी जरूर मिलेगी।

कॅरियर एक नजर

अर्जुन अवॉर्ड - 2015

व‌र्ल्ड चैंनियनशिप - ब्रॉन्ज (2013), सिल्वर (2018)

एशियन गेम्स - गोल्ड (2018), सिल्वर (2014)

कॉमनवेल्थ गेम्स - गोल्ड (2018), सिल्वर (2014)

एशियन चैंपियनशिप - ब्रॉन्ज (2013), सिल्वर (2014), गोल्ड (2017), ब्रॉन्ज (2018)

व‌र्ल्ड अंडर-23 चैंपियनशिप - सिल्वर (2017)

कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप - गोल्ड (2016), गोल्ड (2017)

एशियन इनडोर मार्शियल आ‌र्ट्स गेम्स - गोल्ड (2017)