- जीएसटी की मार से बचने के लिए 2 हजार व्यापारियों ने नहीं कराया रजिस्ट्रेशन

BAREILLY:

निजी स्कूलों की महंगी फीस की मार झेल रहे अभिभावकों पर जीएसटी की वजह से दोहरी मार पड़ी है। किताबों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन कलर व पिक्चर वाली किताबों पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगने से किताबें काफी महंगी हो गई हैं। इसी तरह नोटबुक, ड्रेस, पेन, राइटिंग बोर्ड और जूते पर जीएसटी ने अभिभावकों की कमर ही तोड़ दी है। ऊपर से अनरजिस्टर्ड दुकानें बिना रसीद के स्टेशनरी बेच कर व्यापार करने का नजरिया ही बदल दिया है। जो कि रजिस्टर्ड व्यापारियों के व्यापार में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। साथ ही सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा हैं।

बिना रसीद खरीद रहे स्टेशनरी

स्टेशनरी के अलग-अलग आइटम्स पर 5, 12, 18 और 28 परसेंट तक जीएसटी है। मजे की बात यह है कि स्टेपलर पर 18 परसेंट तो उसके पिन पर 28 परसेंट जीएसटी है। जो कि व्यापारियों और कस्टमर्स के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। जीएसटी में स्टेशनरी महंगी होने से अभिभावकों का रूझान बिना रसीद के स्टेशनरी खरीदने की ओर बढ़ा है। क्योंकि, इससे वह टैक्स से बच जाते हैं। जिससे उन्हें स्टेशनरी काफी सस्ती पड़ती है।

अनरजिस्टर्ड व्यापारी करते हैं खेल

बरेली में स्टेशनरी के छोटे, बड़े करीब 2200 दुकानें हैं। लेकिन इनमें से मात्र 200 दुकानें ही रजिस्टर्ड हैं। बाकी व्यापारियों का कहना है कि उनका व्यापार 20 लाख से कम हैं। ऐसे में वह बेवजह रजिस्ट्रेशन क्यों कराएंगे। क्योंकि, जीएसटी में ऐसे व्यापारियों को रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य नहीं है, लेकिन यही व्यापारी जीएसटी देने वाले दुकानदारों के राह में रोड़ा पैदा कर रहे हैं। चूंकि यह सारा माल चोरी छिपे बिना टैक्स के मंगाते हैं।

रजिस्टर्ड दुकान से ही सरकारी विभाग करें खरीदारी

रजिस्टर्ड व्यापारियों का कहना है कि सरकार को यह नया नियम लागू करना चाहिए कि सरकारी विभाग फाइल और अन्य सामान रजिस्टर्ड दुकानों से ही खरीदें। ताकि, टैक्स चोरी को बढ़ावा न मिले। यदि, ऐसा हो गया तो व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और सरकारी राजस्व को भी नुकसान नहीं होगा। अभिभावक भी भविष्य में होने वाली परेशानियों से बच सकेंगे। बरेली में स्टेशनरी का कारोबार लगभग 9 करोड़ रुपए महीने का है।

दिल्ली से बिना बिल के आ रहे स्टेशनरी पर रोक लगनी चाहिए। ऐसे लोग ही बिना रसीद के स्टेशनरी देते हैं। जिससे कस्टमर्स का रूझान रजिस्टर्ड दुकानों की ओर नहीं रहता है।

राजेश जसोरिया, अध्यक्ष, स्टेशनरी मर्केट एसोिसएशन बरेली

स्टेशनरी पर एक सामान जीएसटी होनी चाहिए थी। चार कैटेगरी में जीएसटी बंटने से काफी दिक्कत होती है। कई बार तो अभिभावक बिना रसीद के स्टेशनरी मांगते हैं।

राजा गौतम, ओनर, बुक सेंटर

एक तरफ रोजगार और एजुकेशन को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है। निशुल्क ट्रेनिंग सेंटर खोले गए हैं। दूसरी ओर स्टेशनरी पर जीएसटी लगा कर एजुकेशन को महंगा किया जा रहा है।

अशोक कुमार, पेरेंट्स

बच्चों के पढ़ाई-लिखाई से जुड़े चीजें टैक्स फ्री होनी चाहिए। मुझे अपने बच्चे के लिए ड्रेस और स्टेशनरी के लिए 7 हजार रुपए खर्च करने पड़े। घर के बजट में कटौती कर रुपयों की व्यवस्था करनी पड़ी।

पूनम सिंह, पेरेंट्स