खंडहर बनी इमारत, अंधेरे में रहने को मजबूर हैं छात्र

ट्रस्ट के चलते इलाहाबाद यूनिविर्सिटी नहीं कराती देखरेख

ट्रस्टी सदस्य भी नहीं लेने आते हॉस्टल का हाल

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: किसी हॉरर मूवी की कल्पना करनी हो तो लोकेशन को लेकर कैसा थॉट आपके दिमाग में आएगा। खंडहर जैसी हवेली। आसपास जंगलनुमा माहौल। हवेली के कमरों में अंधेरा और वहां गिद्ध, चील और चमगादड़ का बसेरा। यह लोकेशन खोजने की जरूरत नहीं है। यह सब कुछ देखने को मिल जाएगा सेंट्रल यूनिवर्सिटी इलाहाबाद के मुस्लिम बोर्डिग हाऊस में। खंडहर में तब्दील होती जा रही इमारत में उज्जवल भविष्य का सपना सजाकर रहते हैं छात्र।

कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा

125 साल पुराने इस हास्टल की इमारतें खंडहर में तब्दील होती जा रही है। यहां के कई छात्र ऐसे ऐसे कमरों में रहने के लिये मजबूर हैं, जहां एक बल्ब जलाने की भी व्यवस्था नहीं है। आये दिन छत से टूटकर गिरने वाले प्लाटर कई छात्रों को घायल कर चुके हैं। किसी बड़े हादसे का अंदेशा हर वक्त बना हुआ है। फिर भी इस ओर ध्यान कोई नहीं देता। चूंकि, मुस्लिम बोर्डिग हाऊस एक बड़े स्पेस में स्थापित है। इसके बाद भी यहां पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था बिल्कुल नहीं है। छात्रों ने जुगाड़ से लाइट की व्यवस्था कर रखी है। यहां शायद ही कोई ऐसा कमरा हो, जहां बिजली के तारों का मकड़जाल न दिखाई दे। इससे हादसे की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। छात्र बताते हैं कि बदबूदार टायलेट और धुप्प अंधेरे के बीच हास्टल में आने वाले नये छात्र कई दिनो तक तो डर के मारे सो भी नहीं पाते।

बाक्स

चंदा जुटाते हैं तब जी पाते हैं

छात्र बताते हैं कि चूंकि यह ट्रस्ट का हास्टल है, इसलिए यूनिवर्सिटी ने हास्टल के डेवलपमेंट से अपनी आंखें मूंद रखी हैं। हास्टल के डेवलपमेंट के नाम पर यूनिवर्सिटी एक पैसा नहीं देती। जीने खाने की व्यवस्था छात्रों को खुद से चंदा जुटाकर करनी पड़ती है। हास्टल में फेसेलिटी के लिये कई बार छात्रों ने मुखर विरोध किया। लेकिन, हर बार नतीजा शून्य ही रहा। छात्रों को यह कहकर टरका दिया जाता है कि ट्रस्ट का हास्टल है। उसे ही डेवलपमेंट के लिये सोचना होगा।

मुस्लिम बोर्डिग हाऊस का परिचय

इस हास्टल की स्थापना अंग्रेजों के शासनकाल में वर्ष 1892 में की गई थी

सिटी के सबसे पुराने हास्टल में एक मुस्लिम बोर्डिग हाऊस की भी अपनी एक अलग पहचान है

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक्स। जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा, सपा सरकार के मंत्री अहमद हसन, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक्स। वीसी महमूदुर रहमान, यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड यूएस के साइंटिस्ट इमरान अंसारी, आईपीएस शफीक अहमद, एक्स। एसपी क्राईम इलाहाबाद इरफान अंसारी, प्रतापगढ़ में मारे गये चर्चित डिप्टी एसपी जियाउल हक जैसी चर्चित हस्तियों की ऐसी लम्बी फेहरिस्त है जो हास्टल के पूर्व अन्त:वासी रहे हैं।

मैं इस हास्टल का एकमात्र सफाईकर्मी बचा हूं। जिसके जिम्मे पूरे हास्टल के साफ सफाई की जिम्मेदारी है। यहां बच्चे पढ़ने के लिये आते हैं। लेकिन उन्हें बहुत से कष्ट सहने पड़ रहे हैं।

मो। ईशा

हास्टल भले ही ट्रस्ट का हो। लेकिन छात्र तो यूनिवर्सिटी के ही रहते हैं। एक साल पहले ट्रस्ट के हास्टल्स की बेहतरी के लिये लाखों रूपये यूनिवर्सिटी ने जारी किया। लेकिन, इसमें से एक रुपया मुस्लिम बोर्डिग को नहीं मिला।

टीपू सुल्तान

रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की मूलभूत आवश्यकतायें हैं। हमें रहने के लिये जर्जर इमारतें दे दी गई हैं। रोटी का जुगाड़ खुद करना पड़ता है। कमरे इस स्थिति में नहीं हैं कि कपड़े और किताबों को सुरक्षित रखा जा सके।

अब्दुल कलाम अंसार

हास्टल में साफ पीने का पानी नहीं आता। इससे छात्र बीमार पड़ते रहते हैं। कमरों में अक्सर पांच दिख जाते हैं। कुछ समय पहले 66 नम्बर कमरे से जहरीला सर्प निकला था। जिसे छात्रों ने ही पकड़कर बाहर किया।

मुहम्मद मजहर खान

बाक्स

वार्डेन को कभी देखा ही नहीं

हास्टल के वार्डेन रिटायर्ड कर्नल एहसान अली और सुपरिटेंडेंट डॉ। इरफान अहमद खान है। हॉस्टल में रहने वाले छात्रों को इनका नाम तक पता नहीं है। उसके बारे में पूछे जाने पर करीब पांच साल से यहां रह रहे एक छात्र ने सिर्फ नाम बताया। उसके पास न तो कांटैक्ट नंबर था और न ही यह किसी को पता था कि वह रहते कहां हैं।