-10वीं पंचवर्षीय योजना का हिसाब न होने से खफा होकर की कार्यवाही

-एयू एडमिनिस्ट्रेशन को लगाई कड़ी फटकार, कड़ी कार्यवाही के लिए तैयार रहने की चेतावनी

ALLAHABAD: सेंट्रल यूनिवर्सिटी इलाहाबाद की कार्यशैली पर हमेशा ही सवालिया निशान लगते रहे हैं। लोकल लेवल पर होने वाली अनियमितताओं पर भले ही चुप्पी साधे जाने की आदत पड़ गई हो। लेकिन अबकी बार यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन को कड़ा सबक दिया है। यूजीसी ने यूनिवर्सिटी के अफसरों को सबक सिखाने के लिए ग्रांट ही रोक दी है। इससे हड़कम्प मचा हुआ है।

नियमों के विपरीत किया आचरण

गौरतलब है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को पंचवर्षीय योजना के तहत करोड़ों का बजट आवंटित किया जाता है। योजना की शुरुआत में ही मांग के अनुसार एक बार बजट एप्रुव्ड हो जाता है। जिसके बाद प्रत्येक वर्ष धन आवंटित किया जाता है। इसी क्रम में यूजीसी ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) की ग्रांट रोक दी है। जिससे अफसरों के बीच हड़कम्प मचा हुआ है। यूजीसी ने ऐसा यूनिवर्सिटी द्वारा नियमों के विपरीत किए गए आचरण के लिए किया है।

अफसरों को भी हड़काया

फिलहाल यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े सोर्सेस ग्रांट रोकने की कई वजहें बता रहे हैं। बताया जा रहा है कि यूजीसी ने 10 वीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) के बीच जो धन दिया था। उसका हिसाब मांगा गया था। कई बार मांगे जाने के बाद भी यूनिवर्सिटी के अफसर यूटिलाइज किए गए पैसे का हिसाब देने में आनाकानी करते रहे। इससे मजबूर होकर यूजीसी को 12वीं पंचवर्षीय योजना का पैसा रोकना पड़ा है। इसके लिए ऑफिसर्स को कड़ी फटकार भी लगाई गई है और अग्रिम कार्यवाही की भी चेतावनी दी गई है।

सैलरी पर मंडरा रहा खतरा

पैसा रोके जाने से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का डेवलपमेंट भी रुक गया है। यह स्थिति कब तक रहेगी। इसके बारे में कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। बता दें कि यूजीसी बजट का आवंटन दो प्रकार से करती है। इसमें एक प्लान और दूसरा नॉन प्लान का पैसा होता है। प्लान मद में विकास कार्य समेत दूसरे खर्चे शामिल होते हैं। जबकि, नॉन प्लान में टीचर्स व इम्पलाईज की सैलरी के पैसे समेत दूसरे वित्तीय खर्चे शामिल हैं। जानकारों को फ्यूचर में नॉन प्लान का पैसा रोके जाने का भी अंदेशा है। उनका कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो यूनिवर्सिटी और कॉलेज के टीचर्स व इम्पलाईज की सैलरी का भुगतान नहीं हो पाएगा। जानकार बता रहे हैं कि यूनिवर्सिटी ने नवम्बर माह की सैलरी ही जैसे तैसे जुगाड़ करके दी है। दिसम्बर की सैलरी के लिए कयासबाजी का सिलसिला जारी है।

हिसाब न देने पर लगा प्रश्न चिन्ह

यूजीसी को पैसे का हिसाब न दिए जाने से जो बखेड़ा खड़ा हुआ है। उसके बारे में बताया जा रहा है कि यह पूर्व में कार्यरत रहे अफसरों की करतूतों का परिणाम है। यदि उन्होंने सही ढंग से काम किया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता। इसका दंश वर्तमान में कार्यरत अधिकारियों को भोगना पड़ रहा है। फिलहाल तो अफसर यूजीसी की नाराजगी को देखते हुए जल्द से जल्द फाइलों का बंडल निपटाने में दिन रात एक किए हैं। बावजूद इसके यह बड़ा सवाल है कि आखिर वह कौन सी वजहें थीं, जिसके चलते अधिकारी यूजीसी को हिसाब देने से बच रहे हैं। वह भी तब जब यूनिवर्सिटी में समय समय पर घपले घोटाले के आरोप भी लगते रहे हैं।

यूजीसी ने केवल प्लान मद का पैसा रोका है। नॉन प्लान का पैसा नहीं रोका गया है। जहां तक सैलरी भुगतान की बात है तो यूनिवर्सिटी में कई सारी दिक्कते हैं। फिलहाल तो मुझे नहीं लगता कि फ्यूचर में सैलरी में कोई दिक्कत आ सकती है।

एके कनौजिया, फाइनेंस ऑफिसर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी