एंजियोप्लास्टी कराने वाले मरीजों को करना पड़ रहा दिक्कतों का सामना

सेंट्रल गवर्नमेंट ने निर्धारित कर दी सीमा, अब लाखों के स्टेंट लगाना होगा असंभव

ALLAHABAD: सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा दिल की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले स्टेंट के दाम कम करते ही इसकी क्राइसिस शुरू हो गई है। मरीजों को इससे दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। स्टेंट बनाने वाली कंपनियों ने रिलेबलिंग के नाम पर इन्हें वापस मंगा लिया है। ऐसे में कई मरीजों की एंजियोप्लास्टी टाल दी गई है। हालांकि, हॉस्पिटल्स इससे इंकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि गवर्नमेंट की गाइड लाइन के मुताबिक मरीजों को कम दाम में स्टेंट लगाए जा रहे हैं। किसी मरीज को अभी तक वापस नही लौटाया गया है।

नही लगेगा 31 हजार से महंगा

सरकार ने हाल ही में स्टेंट्स की कीमतें 85 फीसदी तक कम कर दी हैं। नए आदेश में कहा गया है कि किसी भी सरकारी या निजी हॉस्पिटल में मरीजों को अधिकतम 31 हजार रुपए की कीमत के ही स्टेंट लगाए जाएंगे। जबकि, अभी तक दिल के मरीजों को 45 हजार से लेकर दो लाख रुपए तक के स्टेंट लगाए जाते थे। विदेशी कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले स्टेंट की कीमत भारतीय स्टेंट से कहीं ज्यादा होती है। फिलहाल सरकार के इस आदेश से उन मरीजों को फायदा हुआ है जो पैसों के अभाव में अभी तक स्टेंट लगवाने की हिम्मत नही कर पा रहे थे। डॉक्टर्स का कहना है कि स्टेंट की कीमत क्वालिटी के हिसाब से लगाई जाती हैं। इनकी लाइफ और मेटल दोनों बेहतर होते हैं।

अभी लगेगा टाइम, करिए इंतजार

जानकारी के मुताबिक स्टेंट मार्केट में अवेलेबल नही होते हैं। जिन हॉस्पिटल्स में हृदय रोगों से जुड़ी सर्जरी होती है, वहां कंपनियां इनकी सीधी सप्लाई करती हैं। केंद्र सरकार द्वारा कीमतें फिक्स कर देने के बाद कंपनियों ने महंगे स्टेंट वापस मंगा लिए हैं और अब इन्हें रिलेबलिंग के अलावा नाम और कंपोजिशन बदलकर मार्केट में उतारा जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि सस्ता होने के बाद मरीजों को फ‌र्स्ट जनरेशन के स्टेंट लगाए जाएंगे। सेकंड और थर्ड जनरेशन के स्टेंट इतने कम दामों में लगाना आसान नही होगा। कुछ हॉस्पिटल्स ने सस्ते स्टेंट लगाना भी शुरू कर दियाहै। उधर, ऑफिशियल्स का तर्क है कि क्वालिटी के नाम पर कंपनियां मरीजों को लूटती हैं, जबकि सस्ते और महंगे में बहुत ज्यादा फर्क नही होता है। बता दें कि इलाहाबाद में हर माह सौ से डेढ़ सौ स्टेंट लगाए जाते हैं। कभी मरीजों की संख्या अधिक भी हो जाती है। जिले में यह सुविधा केवल प्राइवेट सेटअप में ही मौजूद है। स्वरूपरानी नेहरू हॉस्पिटल में अभी स्टेंट लगाने की सुविधा नही है।

एक नजर

कोरोनरी स्टेंट एक ट्यूब के जैसी डिवाइस होती है, जिसे ब्लॉकेज होने पर आर्टरी में लगाया जाता है, ताकि हार्ट को पूरी तरह खून की सप्लाई मिलती रहे।

सर्जरी के जरिए स्टेंट को आर्टरी के उस हिस्से में लगाया जाता है, जहां कोलेस्ट्रॉल जमने से ब्लड सप्लाई नहीं हो पाती है और हार्ट अटैक का खतरा रहता है।

बेयर मेटल स्टेंट (BMS) नॉर्मल स्टेंट होता है। जबकि खास तरह के ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट (DES) पर मेडिसिन लगी होती है। इसलिए उसकी कॉस्ट थोड़ी ज्यादा होती है।

मेटल स्टेंट 7,260 रुपए में मिलेंगे। खुले बाजार में इसकी कीमत 30-75 हजार रुपए है।

ड्रग-एलुटिंग स्टेंट 29,600 रुपए में मिलेंगे। खुले बाजार में इसकी कीमत 40 हजार से 2 लाख रुपए तक है।

मार्केट में स्टेंट नही मिलते हैं। कंपनियां सीधे इन्हें हॉस्पिटल्स को सप्लाई करती हैं। वहां पर मरीज अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से महंगा या सस्ता स्टेंट लगवाता है। दाम कम होने के बाद क्राइसिस होना संभव है।

परमजीत सिंह,

महासचिव, इलाहाबाद ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन

गवर्नमेंट सेटअप में यह सुविधा नही है। प्राइवेट हॉस्पिटल्स में स्टेंट लगाया जाता है। कंपनियां महंगे स्टेंट वापस मंगवाकर उन्हें नए तरीके से बाजार में उतारने की प्लानिंग में है।

डॉ। पीयूष सक्सेना,

कार्डियोलॉजी विभाग, एसआरएन हॉस्पिटल

मरीजों को थोड़ी परेशानी तो होगी। लेकिन, इसका यह मतलब नही कि मरीजों को वापस किया जा रहा है। उन्हें 31 हजार की सीमा के अंदर क्वालिटी का स्टेंट लगाया जा रहा है। वैसे स्टेंट की क्वालिटी जितनी अच्छी होती है, उसकी कीमत भी उतनी अधिक होगी।

-डॉ। नीरज अग्रवाल,

डायरेक्टर, वात्सल्य हॉस्पिटल

अगर कोई मरीज शिकायत करता है कि उसे स्टेंट नही लगाया जा रहा है तो संबंधित हॉस्पिटल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अभी तक ऐसी शिकायत नही मिली है।

-केजी गुप्ता,

असिस्टेंट ड्रग कमिश्नर, इलाहाबाद मंडल