क्या आपको पता है कि एप्पल के चेयरमैन और एक्स सीईओ Steve Jobs का इंडिया से कनेक्शन काफी स्ट्रांग रहा है. 1973 में स्टीव अपने कालेज की पढ़ाई ड्राप करके इंडिया आ गए थे. वे यहां नीम कैरोली बाबा से मिलने आए थे और इससे पहले कि वे उनसे मिल पाते बाबा की डेथ हो गई. स्टीव वापस अमेरिका लौट गए और बाद में उन्होने एप्पल कम्प्यूटर्स की शुरूआत की.
बात 70 के दशक की थी जब स्टीव जाब्स ने हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पोर्टलैंड के रीड कालेज में दाखिला लिया था. वहां वे खर्च चलाने के लिये वे कोक की बाटल बेंचते थे और उससे खाना खाते थे. रीड के अपने अनुभवों को स्टीव ने कुछ यूं बयां किया था- “मेरे पास रहने के लिये कोई कमरा नहीं था और मैं एक दोस्त के घर में फ्लोर पर सोता था. कोक की बाटल को 5 सेंट में बेच कर मैं अपने और मेरे दोस्त के लिये खाने खरीदता था और संडे को पैसे बचाने के लिये कई मील पैदल चल कर हरे कृष्णा मन्दिर में खाना खाता था.” इस सब के बीच वे इस कदर बोर हुए कि उन्होने फर्स्ट सेमेस्टर के बाद ही कालेज ड्राप कर दिया और अपने फ्रेंड Dan Kottke के साथ इंडिया चले आए. स्टीव उस समय हिप्पी विचारधारा से प्रेरित थे.
स्टीव्स इंडिया शान्ति की तलाश में आए थे. यहां आकर उन्होने जो अव्यवस्था और गरीबी देखी उससे उनका मन काफी व्याकुल हो गया. स्टीव्स जिन नीम कैरोली बाबा से मिलने आए थे उनकी पहले ही डेथ हो गई थी और ऐसे में उनका इंडिया आने का एक्सपीरिएंस और बुरा हो गया. नीम कैरोली बाबा के उन दिनों अमेरिका में कुछ फालोअर्स थे और अपने कुछ दोस्तों से स्टीव्स ने उनके और इंडिया के बारे में सुना था. स्टीव्स ने इंडिया की जो स्प्रिचुअल इमेज बनाई थी यहां आकर वह उन्हे पूरी तरह से बदली हुई नजर आई. इंडिया को याद कर वे कहते हैं कि इंडिया "intense and disturbing" है. हालाकि इस दौरान वे बौद्ध धर्म से काफी इंस्पायर हुए और उन्होने अपना मुंडन करा लिया.
स्टीव यह जान गए थे कि समस्याओं से बचा नहीं जा सकता है और इनका मुकाबला करके ही इन्हे डिफीट किया जा सकता है. अपनी इंडिया जर्नी के दौरान उनकी सोच तेजी से बदली. इंडिया से वापस आने के बाद के अनुभव के बारे में वे कहते हैं, “हमें कोई ऐसी जगह नहीं मिल सकती जहां हम ज्ञान प्राप्त करने के लिये एक महीने के लिये चले जाएं और फिर हमारी पूरी जिन्दगी बदल जाए. मैने जिन्दगी में पहली बार यह महसूस किया कि थामस एडीशन दुनिया की भलाई के लिये जो कर गए वह कार्लमार्कस् और नीम करोली बाबा दोनों के कुल कामों को से भी ज्यादा था.”
अमेरिका वापस जाकर स्टीव ने वही किया जो वे करना चाहते थे. अपनी कंपनी में उन्होने दुनिया की कई नायाब चीजें बनाई. उन्होने अपने प्रोडक्ट्स को हमेशा हाई क्वालिटी का रखा और इसी वजह से मंहगे दामों के चलते वे इंडिया में कभी अपनी बड़ी मार्केट नहीं बना सके. इंडिया की बुरी छवि हमेशा उनके मन में रही और यही वजह थी आईपैड, कम्प्यूर्स और मोबाइल और आईपाड जैसे प्रोडक्ट्स को इंडियन मिडिलक्लास की रेंज में वे कभी नहीं ला पाए. मार्केट एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस तरीके से नोकिया, ब्लैकबेरी, आईबीएम, माइक्रोसाफ्ट और ऐसी कई कम्पनियों के लिये एप्पल ने इंडिया में इजी मार्केट तैयार कर दी.
2006 में यह भी खबर आई कि एप्पल बैंग्लोर में 3 हजार एम्प्लाइज की एक सपोर्ट टीम तैयार करेगी और इसके लिये 30 लोगों को नौकरी पर भी रख लिया गया है. मगर बाद में ऐसा नहीं हो सका. स्टीव ने बिजनेस वीक को दिये अपने इंटरव्यू में यहां तक कहा कि उन्हे इंडियन्स की वर्क क्वालिटी इंप्रेस नहीं करती. बिजनेस वीक में छपे उनके लिखा गया था “India isn’t as inexpensive as it used to be......The turnover is high, and the competition for good people is strong”. उनके मुताबिक ‘वे यही काम किसी और जगह आसानी से कर सकते हैं’.
स्टीव के इंडिया कनेक्शन की चर्चाएं हमेशा मीडिया में रहीं है और इनमें हमेशा यह कहा जाता रहा है कि इंडिया को लेकर स्टीव प्रीजुडिस थे. फर्स्ट पोस्ट में आर जगन्नाथन उनके बारे में लिखते हैं कि इंडिया शायद स्टीव का ब्लाइंड स्पाट था. स्टीव ने दूसरे बिलिनायर्स की तरह कभी भी चैरिटी वर्क में बढ़ चढ़ कर हिस्सा नहीं लिया. जाब ने वही किया जो उन्हे अच्छा लगा और जब भी कोई प्रोडक्ट बनाया लोगों का दिल ही जीता.
1973 के बाद से स्टीव और इंडिया की कैमेस्ट्री कभी नहीं बनी. स्टीव ने जहां एक ओर मार्केट में अपनी एक पहचान बनाई तो वहीं दूसरी ओर इंडिया ने सारी दुनिया के लिये एक बड़ी मार्केट. इनकी आपस में ज्यादा नहीं बनी हो पर दोनों ने ही सारी दुनिया के सामने खुद को एक मजबूत खिलाड़ी साबित किया है.