ट्यूमर की सबसे ख़तरनाक अवस्था वह होती है, जब वह पूरे शरीर में फैलना शुरू करता है.

अमरीका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों ने ऐसे नैनो पार्टिकल यानी अति सूक्ष्म अणु बनाए हैं, जो रक्त प्रवाह में बने रहते हैं और बाहर से आने वाली कैंसर की कोशिकाओं के संपर्क में आने पर उन्हें नष्ट कर देते हैं.

इस शोध की शुरुआती जांच में कहा गया कि इसके प्रभाव "नाटकीय" हैं लेकिन अभी "बहुत सारा काम किए जाने की ज़रूरत" है.

कैंसर का पता चलने के बाद ज़िंदा रहने की संभावना में सबसे महत्वपूर्ण यह तथ्य होता है कि कहीं ट्यूमर मेटास्टेटिक कैंसर में तो नहीं बदल गया है.

मुख्य शोधकर्ता प्रोफ़ेसर माइकल किंग कहते हैं, "कैंसर से होने वाली क़रीब 90 फ़ीसद मौतें मेटास्टेसिस की वजह से होती हैं."

नाटकीय असर

कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोध दल ने इस समस्या से निजात पाने के लिए एक नया तरीका आज़माया.

उन्होंने कैंसर ख़त्म करने वाला, ट्रेल, नाम का प्रोटीन- जिसे पहले ही कैंसर प्रयोगों में इस्तेमाल किया जा चुका है- और अन्य चिपकने वाले प्रोटीनों को एक सूक्ष्म गोले या नैनोपार्टिकल से चिपकाया.

जब इन गोलों को ख़ून में डाला गया, तो वे सफ़ेद रक्त कोशिकाओं से चिपक गए.

प्रयोगों से पता चला कि उछलते-कूदते रक्त में सफ़ेद रक्त कोशिकाएं उन ट्यूमर कोशिकाओं से टकरातीं थीं, जो मुख्य ट्यूमर से टूटकर फैलने की कोशिश कर रहे हैं.

नेशनल अकेडमी ऑफ़ साइंस की कार्यवाही में शामिल रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रेल प्रोटीन के संपर्क में आने से ट्यूमर कोशिकाएं ख़त्म हो गईं.

प्रोफ़ेसर किंग ने बीबीसी को बताया, "ये आँकड़े नाटकीय प्रभाव प्रदर्शित कर रहे है. यह कैंसर कोशिकाओं की संख्या में मामूली बदलाव नहीं है. दरअसल इंसान और चूहे के रक्त में ये परिणाम सचमुच असाधारण हैं. दो घंटे के रक्त प्रवाह के बाद ट्यूमर कोशिकाएं विघटित हो गईं."

रेडियोथेरेपी से पहले

प्रोफ़ेसर किंग का मानना है कि नैनोपार्टिकल्स को सर्जरी या रेडियोथेरेपी से पहले इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे मुख्य ट्यूमर से ट्यूमर कोशिकाओं को निकाला जा सकता है.

इसे बहुत आक्रामक ट्यूमर वाले मरीज़ों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि ट्यूमर का फैलाव रोका जा सके.

हालांकि इंसानों पर जांच से पहले चूहों और बड़े जानवरों पर काफ़ी अधिक सुरक्षा जांच की ज़रूरत पड़ेगी.

अभी तक के सबूतों से लगता है कि इस पद्धति का प्रतिरोधी तंत्र पर कोई शुरुआती असर नहीं है और यह रक्त कोशिकाओं या रक्त धमनियों की परत को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाता.

मगर प्रोफ़ेसर किंग चेतावनी देते हैं, "अभी बहुत काम किया जाना बाक़ी है. मरीज़ को इसका लाभ मिलने से पहले कई महत्वपूर्ण खोजें होनी बाक़ी हैं."

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