क्राइटेरिया कर रहा था फुलफिल
फस्र्ट स्टेज में रांची नगर निगम सिटी में जेनरल सिटी बसों को चला रहा है। इसके बाद लो फ्लोर बसों के लिए टेंडर निकला था, जिसमें अशोक लीलैैंड ने क्वालिफाई किया था। इसने अपनी लो फ्लोर बस का जो मॉडल और फीचर दिया है, वह नगर निगम के क्राइटेरिया के अनुरूप था। ऐसे में  कंपनी को फाइनलाइज कर लिया गया था, लेकिन तीन महीने बीतने के बाद भी लो-फ्लोर बसों का कोई पता नहीं है।

नगर विकास विभाग में है फाइल
रांची नगर निगम का कहना है कि लो फ्लोर बसों की खरीद के लिए अशोक लीलैंड कंपनी का टेंडर फाइनल किया गया है। लेकिन बसों की खरीद से पहले झारखंड नगर विकास विभाग को फाइल भेजी गई है। वहां से ओके होते ही बसों की खरीद हो जाएगी। लेकिन कब तक इसका जवाब रांची नगर निगम नहीं दे रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब लो फ्लोर बसों की खरीद के लिए टेंडर निकल गया। कंपनी को फाइनल कर लिया गया। ऐसे में क्या यह बिना नगर विकास विभाग की इजाजत से हुआ। अगर नहीं तो बसों की खरीदारी क्यों नहीं हो रही है।

योजनाएं जमीं पर आतीं तो आसान हो जाता सफर  
अगर रांची में लो फ्लोर एसी बसें चलती तो अपनी सिटी देश के उन गिनी-चुनी सिटीज में शामिल हो जाएगी, जिसमें सिटी के लोगों के लिए नगर निगम के द्वारा लो फ्लोर एसी बसें चलाई जाती हैं। जेएनयूआरएम योजना के तहत देश की कुछ सेलेक्टेड सिटी को ही लो फ्लोर बसें चलाने के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट ने फंड दिया है। इन बसों के चलने से एक तरफ जहां सिटी की ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार आती है। वहीं ट्रैफिक जाम से निपटने में हेल्प मिलती है। इसके साथ ही दूसरी तरफ प्राइवेट व्हीकल्स की अपेक्षा पŽिलक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बढ़ावा मिलता, जिससे सिटी की सड़कों से ट्रैफिक का बोझ कम होता। लेकिन इसे रांची नगर निगम की लापरवाही या नगर विकास विभाग का उदासीन रवैया कहें, जिससे रांची के लोगों को लो फ्लोर बसों में बैठने का सपना अभी तक साकार नहीं हो पाया है।