1. खुशबू सिंह ट्रेन से पटना से बक्सर जा रही थी। वह जहां बैठी थी, सामने 45 वर्षीय एक शख्स बीवी के साथ बैठा था। वह खुशबू व उसकी दोस्त को ऐसे देख रहा था, जैसे उसने अपनी लाइफ में कभी लड़की देखी ही न हो।

2. गया की रश्मि पटना के एक कोचिंग में इंजीनियरिंग की तैयारी करती है। वह रोज सुबह पैसेंजर ट्रेन से आती है और शाम को वापस चली जाती है। इस दौरान उसे डेली ही ऐसी बेशर्म नजरों से दो-चार होना पड़ता है।

घूरती नजरों से होती हैं दो-चार

गलती हमारी भी है कि हमने यह सब होने ही क्यों दिया, जैसे यह कोई क्राइम नहीं, उसका कुदरती हक हो। पर, अब सहना बंद कीजिए। आपको खुद ही इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी।

चाहकर भी नहीं भूल सकती

मॉर्निंग वाक पर जाओ या स्कूल-कॉलेज, अकेली हों या फ्रेंड्स के साथ, सुनसान सड़क पर चल रही हों या बिजी चौराहे पर। एक पल के लिए भी वह स्त्री होना नहीं भूलती। यूं कहें वह चाहकर भी नहीं भूल सकती। लुच्चे-लफंगों की घूरती नजरें अनचाहा अहसास करा जाती हैं कि एक अच्छी पर्सनैलिटी से अधिक बस एक देह मात्र है। मन-मस्तिष्क से पहले लिंग मात्र है। ऐसे भी सदियों से स्त्री की पहचान उसकी देह से ही होती रही है। स्त्री के अस्तित्व को शरीर की सीमाओं से अलग होने में जाने और कितने बरस लग जाएंगे।

वो घूरे, तो अपनी बला से

पटना वीमेंस कॉलेज की स्टूडेंट स्टेफी का कहना है कि अट्रैक्शन से बचना आसान नहीं है। यूं ही किसी को देख लिए तो अलग बात है, पर टकटकी लगाकर घूरता रहे, तो सच में अनईजी फील होता है। कांपटीटिव एग्जाम्स की तैयारी कर रही श्वेता सिहं का मानना है कि गल्र्स या लेडीज को घूरना हमेशा से ही पुरुषों की आदत में शुमार रहा है। यह विश्व भर के पुरुषों का मनोविज्ञान है। वहीं, पुरुषों का मानना है कि सुन्दर स्त्री को देखने के आकर्षण से लोग खुद को रोक नहीं पाते हैं। यदि साथ में कोई लेडीज है भी, फिर भी दूसरी महिला को घूरने में संकोच नहीं करते। एक निजी इंस्टीट्यूट में बतौर कंप्यूटर फैकल्टी अमित सिंह का कहना है कि खूबसूरत लड़की को देखना बुरा नहीं, हां बस बुरी नजर से न देखी जाए। दूसरी ओर, लेडीज भी पुरुषों की इस घूरती नजरों की इतनी अभ्यस्त हो चुकी होती हैं कि कहीं ना कहीं उनका दिल यह मान लेता है कि इसका कोई सॉल्यूशन है ही नहीं। शायद इसी कारण मैक्सिमम गल्र्स या लेडीज इसका विरोध नहीं करती। डीएवी बोर्ड कॉलोनी की स्टूडेंट किश श्रेया ने बताया कि हमलोग तो ऐसा रोज ही फील करते हैं। इतना ध्यान देने लगे, तो हर जगह झगड़ा ही हो जाए।

स्पेसिफिक पार्ट पर रहती है नजर

यूरोपियन जर्नल ऑफ सोशल साइकोलॉजी में पब्लिश्ड एक रिपोर्ट के मुताबिक महिला व पुरुषों का मस्तिष्क, एक पुरुष को एक पर्सनैलिटी के रूप में देखता व जांचता है, जबकि एक स्त्री को शरीर मात्र के रूप में देखता है। इस रिसर्च में पाया गया कि पुरुष, स्त्री के शरीर के किसी स्पेसिफिक पार्ट, अधिकांशत: सीने पर अपनी नजरें गड़ाते हैं। शोध प्रमुख व असिस्टेंट प्रोफेसर साराह गर्वेस के अनुसार लेडीज को एक वस्तु की तरह देखा जाता है। वैसे पुरुषों की इस मेंटैलिटी को तो समझा जा सकता है, पर एक लेडी भी दूसरी लेडी की खुद से तुलना करते हुए, कई मर्तबा उसे मात्र शरीर रूप में देखती है। उनके अनुसार इस मनोविज्ञान के पीछे प्राकृतिक बनावट नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारण उत्तरदायी हैं।

जैसे कमोडिटी बन गई है लेडीज

एक निजी कंपनी में काम कर रही अनामिका झा का कहना है कि मीडिया, विज्ञापन, टीवी व पोर्न सामग्री भी महिलाओं के इस 'वस्तुकरण' के लिए बड़े स्तर पर रिस्पांसिबल हैं। कुछ पुरुष लेडीज को इसलिए घूरते हैं कि उन्हें लगता है कि समाने वाली उसे देखे या पलटकर कहीं मुस्कुरा दे। वैसे भी विश्व भर में कई रिसर्च से यह स्पष्ट हो चुका है कि पुरुष स्त्रियों को घूरते समय उनके शरीर का आकलन व अश्लील कल्पनाएं करते हैं। लेडीज का मानना है कि अगर कोई अट्रैक्टिव पर्सन मिल गया, तो उसे देखती जरूर हैं, पर ऐसी घूरती नजरों से नहीं।

सबसे ज्यादा टीन एजर्स को प्रॉब्लम

पाटलिपुत्रा कॉलोनी की मिली सरकार ने कहा कि घूरना बेशर्म आदत है, अपराध है। यह ईव टीजिंग का ही एक रूप है। आप गु्रप में हों, तो घूरने का जवाब घूर कर या फिर पलटकर तल्ख शब्दों में दे सकती हैं। यदि आप अकेली हैं और सुनसान इलाका है, तो इस तरह जवाब देना आपके लिए खतरनाक भी हो सकता है। स्कूल टीचर सारिका सिंह कहती हैं कि ऐसी बेशर्म नजरों से सबसे अधिक परेशान होती हैं टीनएजर्स। आस-पड़ोस में, चौक-चौराहे पर, घर-बाजार आते-जाते कुछ मनचलों का तो यह डेली रूटीन होता है। वे हमेशा अपने शिकार पर निगाह रखते हैं। स्कूल आने-जाने वाली स्टूडेंट्स को तो हमेशा ही यह फेस करना पड़ता है।

Experts views

ऐसी हरकत सिर्फ अनपढ़ या लफुए ही नहीं करते हैं, पढ़े-लिखे लोग भी बेशर्म नजरों से देखते हैं। देश की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी डीयू में भी अक्सर गल्र्स को ऐसी हरकत से दो-चार होना पड़ता है। घर में अच्छे संस्कार नहीं मिलने पर ही लड़के ऐसा करते हैं। जिनकी फैमिली में ऐसा कुछ होता है, उसी घर के बच्चे ऐसा करते हैं। जिस फैमिली में लेडीज को रेस्पेक्ट नहीं मिलता है, वहां के लोगों में ऐसी प्रवृति अधिक होती है। ऐसे में पेरेंटिंग बहुत जरूरी है। बच्चों की फ्रेंडशिप पर भी नजर रखने की जरूरत है। यह एक लन्र्ड बिहेवियर होता है, जो समाज, दोस्तों और फैमिली से ही मिलता है। फीमेल को डोमिनेट करने के लिए भी मेल ऐसा करते हैं। यूं कहें यह मर्दानगी दिखाने का एक तरीका है। वैसे टीवी, इंटरनेट भी इसका बहुत बड़ा कारण है।

- डॉ प्रतिभा सिंह, साइकोलॉजिस्ट

Voices of Patna

कई बार ऐसा हुआ है। ट्रेन हो या बस या फिर पैदल चल रहे हों। कुछ चीप टाइप के लोग ऐसे गंदे से घूरते हैं, जैसे लगता है कभी लड़की देखी ही नहीं है। ईव टीजिंग से बहुत डर लगता है, कई लोग तो पीछा भी करते हैं।

Sharfa Naaz Malik

कई बार तो घर से निकलते वक्त अचानक से लगता है, जैसे कोई घूर रहा है। घूरते-घूरते तो वो पीछे ही पड़ जाता है। ऐसे लोगों से बचने के लिए किसी के घर में या किसी दुकान पर छिपना पड़ता है।  

Komal Rani

sanjeet.narayan@inext.co.in