जल्लाद बाप ने ढाए सितम
विनय पिण्डरा के बलरामपुर का रहने वाला है। पिता राजाराम यादव दूध का कारोबार करते हैं। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। छोटा भाई 11 साल का है। शराब का लती पिता विनय को अपने कारोबार में शामिल करना चाहता था। विनय ने पॉयलट बनने का सपना सजोया था सो पढ़ाई में मन लगाता था। गांव के स्कूल से क्लास सेवेंथ तक की पढ़ाई की। आगे पढऩे की कोशिश करता रहा। बाप ने उसे गाय-भैसों की जिम्मेदारी सौंप दी। कभी विरोध करता तो बेइंतहा यातनाएं मिलती थीं। मां नगीना देवी बीच-बचाव करतीं तो उन्हें भी लात-घूंसे पड़ते थे। दो साल पहले जाड़े की एक शाम पिता ने लोहे के राड से विनय की खूब पिटायी की। उसके हाथ की हड्डी टूट गयी। उसी दिन विनय ने घर छोडऩे का फैसला कर लिया और निकल पड़ा अपना सपना पूरा करने।
नहीं लिये खैरात के रुपये
घर छोडऩे के बाद विनय कैंट स्टेशन पहुंचा। वहां दो जून की रोटी के लिए कई छोटे-मोटे काम किये। तरस खाकर कोई ऐसे ही रुपये देता तो वह इनकार कर देता। कुछ लोगों ने मुम्बई में ठौर तलाशने की सलाह दी। विनय ने टे्रनों में गुटखा बेचकर कुछ रुपये जमा किये और मुम्बई पहुंच गया। बाल मन का पानी का बुलबुला था कि सलमान खान के पास नौकरी मिल जाएगी। बंगले पर मिलने की कोशिश की तो सिक्योरिटी गार्ड ने भगा दिया। वहां मौजूद बनारस की तीन लड़कियां गरिमा, प्रीति, शालू ने सहारा दिया। वापस भेजने के लिए टे्रन का टिकट कटाया था लेकिन ट्रेन छूट गयी। अपने साथ हॉस्टल में रख नहीं सकती थीं तो रात भर के लिए पुलिस के संरक्षण में दिया। पुलिस वालों ने चाइल्ड लाइन के हवाले कर दिया। जानकारी होने पर पिता छुड़ाकर घर ले आये। एक बार फिर से यातनाओं का दौर शुरू हो गया। छह महीने पहले उसने फिर से घर छोड़ दिया। एक बार फिर कैंट स्टेशन आ गया।
तराश रहा अपने सपने
अपना सपना पूरा करने के लिए विनय अखबार बेचने लगा। उसने कई होटल्स और लोकल कस्टमर्स बनाए हैं। डेली सौ न्यूज पेपर्स बेचता है। पढ़ाई करने के लिए अन्नपूर्णा नगर में कमरा किराये पर लिया है। मकान मालिक ने उसके संघर्ष को देखते हुए कई रियायत दे रखी है। विनय ने इंग्लिशिया लाइन स्थित स्कूल में एडमिशन भी ले लिया है। यहां भी टीचरों का प्यार मिल रहा है। सिगरा के स्विमिंग कोच ने फ्री स्विमिंग सिखाने की पेशकश की है। इतना ही नहीं, विनय ने इंग्लिश स्ट्रॉन्ग करने के लिए सिगरा स्थित एक कोचिंग में एडमिशन लेने पहुंचा। सेंटर की डायरेक्टर को जब उसके बारे में पता चला तो उसके लगन को देखते हुए उन्होंने फ्री में एडमिशन दे दिया। आज वह डेली भोर में तीन बजे कैंट सेंटर से न्यूज पेपर लेकर बांटता है। आठ बजे लौटता है। कमरे में खाना बनाता है फिर स्कूल चला जाता है। इन दिनों स्कूल बंद है तो घर पर पढ़ाई करता है। शाम चार बजे से स्विमिंग सीखता है और पांच बजे से स्पीकिंग कोर्स करता है। रात का खाना बनाने व खाने के बाद अगले दिन की तैयारी में नींद के आगोश में चला जाता है।
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यह समाज का दायित्व बनता है कि ऐसे बच्चों को सहारा दे। हर किसी को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार होता है। इसे कोई छीन नहीं सकता है।
अनिल सिंह, बिजनेसमैन
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यह विडम्बना है कि एक बच्चा पढ़-लिखकर अपनी जिंदगी बनाना चाहता है लेकिन फैमिली सपोर्ट नहीं कर रही है। लोकल एडमिनिस्टे्रशन को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।
शिव नारायण पाण्डेय, बिजनेसमैन
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एक बच्चे के अकेले संघर्ष में उसके भटक जाने की संभावना काफी अधिक होती है। विनय को गार्जियन का साथ मिलना चाहिए। एडमिनिस्ट्रेशन को उन पर दबाव बनाना चाहिए।
सुशील यादव, सोशल एक्टिविस्ट
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सामाजिक संस्था का उद्देश्य जरूरतमंद की मदद करना है। इसके लिए उसे हर स्तर पर तैयार रहना चाहिए। कई बार हमारी संस्था अभावग्र्रस्त बच्चों को गोद लेकर उनकी मदद करती है।
अंजली अग्र्रवाल, डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन (इनरव्हील क्लब)
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खुद मेहनत के बल पर कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाले बच्चों की मदद के कई तरीके हैं। संस्था के कुछ मेम्बर्स उनकी पढ़ाई का खर्च उठा सकते हैं। उन्हें उनके मुताबिक काम भी दिलाया जा सकता है।
मीनाक्षी अग्र्रवाल, फाउंडर, जेसीआई काशी दर्पण
Report by: Devendra Singh