सेठ का अय्याश बेटा नहीं समझता था पैसे का मोल

बहुत पुरानी बात है एक सेठ था. उसके एक बेटा और एक बेटी थी. उसका कारोबार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. कारोबार के भविष्य को लेकर वह बहुत चिंतित रहता था क्योंकि उसका बेटा बहुत नालायक था. उसका कारोबार में बिलकुल मन नहीं लगता था. वह हमेशा अय्याशी में पैसे उड़ाता रहता था. धनी सेठ का बेटा होने की वजह से उसे बाजार से आसानी से कर्ज मिल जाता. इकलौता होने की वजह से उसकी मां उसका कर्ज चुका देती थी. सेठ अपने बेटे को लेकर हमेशा सोचता रहता था लेकिन कारोबार में व्यस्त रहने के कारण उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता था. उधर लड़का दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था.

रात का खाना तभी जब एक रुपया कमा कर लाओ

एक बार कर्ज ज्यादा हो गया तो सेठानी कर्ज नहीं चुका पाई. कर्जा वसूलने के लिए साहूकार सेठ के पास गया. तब पहली बार सेठ को पता चला कि वह उसके नाम पर बाजार से पैसे भी उठाने लगा है. सेठ ने साहूकार का कर्जा चुकाया. सेठ ने पूरे शहर में मुनादी करवा दी कि उसके बेटे को कोई कर्ज देगा तो सेठ उनका कर्ज नहीं चुकाएगा. साथ ही सेठ ने बेटे के सामने शर्त रखी की उसे रात का खाना तभी मिलेगा जब वह कम से कम एक रुपया कमा कर सेठ के हाथ में रखेगा. शहर में अब उसे कोई कर्ज देने वाला नहीं था. काम कभी किया नहीं था सो घूमघाम का घर लौट आया. बेटे को मायूस देख मां ने उसे चुपके से एक रुपया का सिक्का दे दिया.

मां का दिया सिक्का कुएं के पानी में डूब गया

शाम को सेठ आया तो उसने खाने से पहले बेटे से एक रुपया मांगा. बेटे से सिक्का पिता के हाथ में पकड़ा दिया. सेठ ने वह सिक्का कुएं में डाल दिया और पत्नी से कहा, 'इसे खाना दे दो.' सेठ ने अगले दिन सुबह अपनी पत्नी से कहा, 'कल शाम दुकान पर एक आदमी तुम्हारी मां के यहां से आया था. कह रहा था उनकी तबियत बहुत खराब है. मैंने व्यवस्था कर दी है तुम आज ही चली जाओ.' सेठानी ने तुरंत सामान बांधा और मायके चली गई. सेठ का बेटा दिन भर तफरी करने के बाद शाम को मायूस बैठा तो उसकी बहन को उस पर दया आ गई, सो उसने उसे एक रुपया दे दिया. रात को सेठ ने खाने से पहले उससे रुपया मांगा तो उसने पिता के हाथ में सिक्का पकड़ा दिया.

बहन का दिया सिक्का कुएं के पानी में डूब गया

सेठ ने सिक्का लिया और कुएं में डाल दिया और बेटी से कहा, 'इसे खाना दे दो.' अगले दिन सुबह उठते ही उसने बेटी से कहा, 'तुम्हारी नानी की तबियत ज्यादा खराब लगती है. तुम्हारी मां ने तुम्हें भी वहां कामकाज देखने के लिए बुलाया है. मैंने व्यवस्था कर दी है नानी के यहां चली जाओ.' वह भी तुरंत सामान बांध कर चली गई. दिन भर तफरी के बाद शाम को भूख से व्याकुल सेठ के बेटे को आज सिक्का देने वाला कोई नहीं था. रात को सेठ ने उससे सिक्का मांगा तो वह गिड़गिड़ाने लगा लेकिन सेठ नहीं पसीजा. उसने कहा, 'आज भूखे रहो, कल कमाकर एक रुपया देना तो खाना मिलेगा.'

जैसे-जैसे दिन ढलता वह भूख से बेचैन हो उठता

भूख से व्याकुल अगले दिन सेठ का बेटा दिन भर बाजार में काम की खोज में घूमता रहा. उसके कपड़े-लत्ते और चेहरा-मोहरा देखकर ही किसी ने उसे काम नहीं दिया. किसी ने दिया भी तो वह कर नहीं पाया क्योंकि अपनी जिंदगी में उसने कभी कोई काम किया ही नहीं था. जैसे-जैसे दिन ढलता वह भूख से बेचैन होता जा रहा था. शाम को थका-हारा रुआंसा होकर वह घर की जा रहा था कि रास्ते में एक गोदाम के पास अनाज से भरी बैलगाड़ी खड़ी थी और कुछ लोग अनाज की बोरी ढोकर गोदाम में रख रहे थे. वह दौड़कर आढ़ती के पास गया और काम मांगा तो उसने उसे भी काम पर लगा दिया. रात हो रही थी और आढ़ती को जल्दी थी. बोरी पीठ पर रखी ही थी कि उसने गिरा दी. आढ़ती ने उसे दो झापड़ मारा और गाली देकर भगा दिया. सेठ का बेटा जानता था कि यहां से गए तो आज फिर खाना नहीं मिलेगा.

अरे ये क्या! यह सिक्का कुएं में डूबने से बच गया

उसने रो-रोकर आढ़ती से कहा, 'मुझे एक मौका और दे दो नहीं तो मुझे आज भी खाना नहीं मिलेगा.' आढ़ती को उस पर दया आ गई. अब उसनेसावधानी से बोरी उठाई और गोदाम में रख दिया. काम खत्म करने के बाद आढ़ती ने उसे एक रुपया दिया. रात को वह घर पहुंचा तो सेठ उसका इंतजार कर रहा था. सेठ ने देखा वह पसीने से तर था, उसका मुंह लाल था और पैर कांप रहे थे. उसने कांपते पसीने से भीगी हथेलियां सेठ के सामने खोल दीं सेठ ने वह एक रुपया का सिक्का उठा लिया. सेठ कुएं की ओर जाने लगा तो बेटा चिल्लाया, 'पिताजी, खाना दो या मत दो पर यह पैसा कुएं में मत डालना. इसे मैंने बहुत मुसीबत और मेहनत से कमाया है.' सेठ की तरकीब काम आई और बेटा रुपया और मेहनत दोनों का मोल समझ चुका था. अब उसके कारोबार का भविष्य सुरक्षित था.