स्ट्रीट डॉग्स से शहर को निजात दिलाने पर नगर निगम नहीं दे रहा ध्यान

-हर रोज हो रहीं डॉग बाइट की घटनाएं

VARANASI : नगर निगम की भी क्या खूब कहें। सालों बाद उसे याद आया कि पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। बिना रजिस्ट्रेशन वाले कुत्तों को नगर निगम सीमा में रहने का राइट नहीं है। वह पब्लिक के लिए खतरनाक हो सकते हैं। उसने फरमान जारी कर दिया कि 15 जनवरी तक डॉग ओनर्स डॉग्स का रजिस्ट्रेशन और वैक्सिनेशन जरूर करा लें। ऐसा न कराने पर पालतू कुत्तों को पकड़कर काजीहाउस भेज दिया जाएगा। लेकिन उसे रोड पर बेलगाम घूमने वाले स्ट्रीट डॉग्स के बारे में कोई ख्याल ही नहीं आया। ऐसे में हालत ये है कि स्ट्रीट डॉग्स डेली कई लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं।

जारी कर दिया है नोटिस

नगर निगम ने पालतू कुत्तों को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए डॉग ओनर्स को नोटिस दे दी है। उसका मानना है कि सिटी में डॉग बाइट्स की बढ़ती घटनाओं के पीछे पालतू कुत्ते असल वजह हैं। प्रॉपर वैक्सिनेशन न होने से इनके सम्पर्क में रहने वाले इंसान को तमाम बीमारियां होने की संभावना रहती है। नगर निगम के सालों तक सोने का नतीजा यह है कि सिर्फ 300 डॉग्स का रजिस्ट्रेशन है। जबकि सिटी में दस हजार से अधिक पेट डॉग्स हैं। कड़ाई न करने की वजह से लोग रजिस्ट्रेशन को सीरियसली नहीं लेते हैं। जबकि इसकी फीस हर साल सिर्फ 20 रुपये है।

लोगों में मची है खलबली

नगर निगम के इस फरमान से डॉग्स ओनर्स परेशान हैं। उनसे यह तो कह दिया गया कि जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं होगा उन डॉग्स को पकड़कर काजी हाउस में डाल दिया जाएगा। लेकिन नगर निगम की ओर से यह जानकारी नहीं दी गयी है कि रजिस्ट्रेशन किस तरह से होगा। साथ ही वैक्सिनेशन के लिए क्या करना होगा इस बारे में भी सही जानकारी नहीं दी गयी है। सिर्फ एक पखवारे में लगभग दस हजार डॉग्स का रजिस्ट्रेशन कैसे होगा? निगम ने इसके लिए भी कोई योजना नहीं बनायी गयी है।

स्ट्रीट डॉग्स पर नहीं है कोई ध्यान

नगर निगम ने पालतू कुत्तों के बारे में तो फरमान जारी कर दिया लेकिन स्ट्रीट डॉग्स पर उसका कोई ध्यान नहीं है। सिटी में इनकी संख्या पांच लाख है। शहर का ऐसा कोई कोना नहीं होगा जहां इनकी मौजूदगी न हो। पुराने मोहल्लों से लेकर नई बसी कालोनियों तक में इनका कब्जा है। चलते-फिरते रोड से लेकर सूनसान गली में इनकी आबादी है। नगर निगम इनकी आबादी पर कंट्रोल पाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा है। इन्हें शहर से दूर करने के लिए भी कोई प्लैन नहीं बनाया गया है। छुट्टा पशुओं को पकड़ने के लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है लेकिन कुत्तों को पकड़ने के लिए कोई अभियान नहीं चलता है।

बड़ी मुसीबत हैं शहर के लिए

स्ट्रीट डॉग्स इस शहर के लिए बड़ी मुसीबत हैं। डेली लगभग दो दर्जन घटनाएं डॉग बाइट की होती हैं। इनमें से आधा दर्जन मामले मंडलीय हॉस्पिटल में पहुंचते हैं। अन्य लोग प्राइवेट हॉस्पिटल में जाकर एंटी रैबीज डोज लेते हैं। स्ट्रीट डॉग्स के सबसे अधिक शिकार बच्चे होते हैं। कभी ग्राउंड में खेलते हुए तो कभी स्कूल जाते हैं। बेखौफ कुत्ते बड़ों को भी नहीं बख्शते हैं। एक बार कुत्ता काटने के बाद एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने में दस हजार रुपये तक खर्च हो जाते हैं। जान जाने का डर अलग से बना रहता है।

NGO ने बनाया था प्लैन

स्ट्रीट डॉग्स पर लगाम लगाने का सबसे अच्छा तरीका उनकी नसबंदी करना होता है। साउथ के एक एनजीओ ने शहर में काम करने का मन बनाया था। उसने नगर निगम से इस बाबत बात भी की लेकिन प्लैन को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। सिटी एरिया में दर्जनों ऐसे कुत्ते हैं जो पागल हो चुके हैं। ये इंसानों और जानवरों को अपना शिकार बना रहे हैं। इनके काटने से गंभीर परिणाम की आशंका रहती है। इनके सम्पर्क में आने से सामान्य कुत्ते पागल हो रहे हैं। मजबूरन पब्लिक को इनसे निजात पाने का तरीका खोजना पड़ता है।

फेल हो चुकी है कवायद

नगर निगम ने कुत्तों से तो नहीं लेकिन बंदरों से शहर के लोगों को निजात दिलाने की कोशिश जरूर की। उसने मथुरा की एजेंसी को इसके लिए नियुक्त किया था। उसने कुछ दिन काम किया। कुछ बंदरों को पकड़कर मिर्जापुर के जंगल में भेज दिया। नगर निगम से सहयोग न मिलने का आरोप लगाते हुए एजेंसी ने बीच में काम छोड़ दिया। बंदर जस का तस इस शहर के लिए मुसीबत बने हुए हैं।

धार्मिक मान्यता आती है आड़े

जानवरों के खिलाफ कुछ भी करने में धार्मिक भावना आड़े आती है। धार्मिक नगरी काशी में जानवर भी पूजे जाते हैं। हर किसी को पूजने के पीछे धार्मिक मान्यता होती है। जब भी किसी जानवर के खिलाफ कार्रवाई होती है तो विरोध के स्वर फूटने लगते हैं। कई बार परेशानी खड़ी करने वाले जानवरों से भी शहर को मुक्त कराने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। इस वजह से भी कंसर्निग डिपार्टमेंट जानवरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहता है।