हृदय के जिन मरीजों में जीन संबंधी ऐसे बदलाव होते हैं, उनमें दिल के दौरे का खतरा 38 फ़ीसदी बढ़ जाता है. ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन का कहना है कि इस अध्ययन से सीधे तौर पर तनाव के कारण हृदय संबंधी बीमारियों का ख़तरा बढ़ने का प्रमाण और पुख्ता होता है.

ड्यूक यूनीवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन की एक टीम ने मानव जीनोम के उस डीएनए का अध्ययन किया, जो तनाव से जुड़ा होता है. उन्होंने पाया कि जीन में परिवर्तन होने पर दिल के मरीज़ों में दौरा पड़ने या मौत का ख़तरा 38 फ़ीसदी बढ़ जाता है.

इस तथ्य पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने सात साल तक अध्ययन किया. उनके नतीजों के आधार पर कहा जा सकता है कि तनाव से दूरी बनाकर, तकनीक और ड्रग थेरेपी के ज़रिए दिल के दौरे से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है.

ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन से जुड़े निदेशक डॉक्टर रेडफ़ोर्ट विलियम्स ने कहा कि यह अध्ययन जेनेटिक विभिन्नता के आधार पर वैसे लोगों की पहचान करने की दिशा में पहला कदम है, जिनमें दिल संबंधी बीमारी का ख़तरा रहता है.

जिनोटाइप

डॉक्टर विलियम्स ने बीबीसी को बताया कि हमने जिनोटाइप के आधार पर ऐसे लोगों की पहचान करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है, जिनमें हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं.

उन्होंने कहा कि इससे दिल की बीमारी के लिए अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग दवाएं दी जा सकेंगी.

शोधकर्ताओं ने कहा कि जीन में होने वाले बदलावों की पहचान करने से शुरुआत में ही दिल की बीमारी के जोखिम वाले लोगों का इलाज शुरू किया जा सकता है.

अध्ययन में शामिल किए गए 6,000 दिल के मरीज़ों में से 10 फ़ीसदी पुरुषों और तीन फ़ीसदी महिलाओं में भावनात्मक तनाव से ग़लत तरीक़े से निपटने के कारण जीन में बदलाव देखा गया.

इस अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन के असोसिएट मेडिकल डायरेक्टर प्रोफ़ेसर जेरेमी पीयरसन ने कहा कि इससे तनाव के कारण दिल संबंधी बीमारियों के ख़तरे बढ़ने के प्रमाण और प्रभावी हुए हैं.

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