यूनियन फंड में थे 37 लाख

स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन के दौरान कॉलेज के हर रजिस्टर्ड रेगुलर स्टूडेंट से वोटिंग के लिए फीस वसूली जाती है। नवंबर में भी इलेक्शन के दौरान हर स्टूडेंट्स से 50 रुपए वसूले गए। इससे इलेक्शन के खर्चे, ओथ सेरेमनी, छात्रसंघ भवन की मेंटीनेंस समेत स्टूडेंट्स के वेलफेयर के तहत होने वाले खर्चे वहन किए जाते हैं। इस फंड में करीब 37,000 लाख रुपए जमा थे। बता दें कि गत नवंबर में ही इलेक्शन के दौरान करीब 17 लाख जमा किए गए थे।

स्टेशनरी में करीब 63 हजार

इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव्ज ने स्टेशनरी के मद में भी जमकर बंदरबांट की है। स्टेशनरी के अधीन हर रिपे्रजेंटेटिव्ज को उनके नाम के लेटर पैड के अलावा अन्य डॉक्यूमेंट्स और सामग्री के लिए चेक काटे गए हैं। इस मद के लिए अब तक 63 हजार रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं।

‘कलर’ में घुल गए हजारों

पांच साल बाद जब स्टूडेंट्स यूनियन की बिल्डिंग दोबारा खोली गई तो उसके रंगरोगन की भी जरूरत महसूस की गई। इसका ठेका भी कॉलेज की बजाय इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव्ज ने अपने जिम्मे ले लिया और इसमें हेर-फेर किया। बिल्डिंग के रंगरोगन में करीब 41 हजार से भी ज्यादा रुपए खर्च किए जा चुके हैं। सभी पेमेंट चेक से किए गए हैं।

‘राजशाही’ ओथ सेरेमनी

बीसीबी में इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव्ज की ओथ सेरेमनी तीन बार हुई। पहले प्रेसीडेंट की, दूसरी बार में जनरल सेक्रेट्री, वाइस प्रेसीडेंट के साथ सभी संकाय प्रतिनिधियों की और तीसरी बार में पुस्कालय मंत्री की। जिसमें 3 दिसंबर को ओथ सेरेमनी राजशाही अंदाज में की गई। इसमें जनरल सेक्रेट्री हृदेश यादव और वाइस प्रेसीडेंट विनोद जोशी के साथ संकाय प्रतिनिधियों ने शपथ ली थी। असल में इलेक्टेड मेंबर्स सत्तापक्ष के यंग ब्रिगेड से जुड़े थे, इसलिए सेरेमनी राजनीतिक रंग में रंगी रही। सत्तापक्ष से संबंध रखने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शिरकत की। इनमें करीब 5 लाख से भी ज्यादा का खर्चा दिखा गया है, जिसका हिसाब अभी साफ नहीं हो पाया है।

अब तक 19 लाख स्वाहा

एक अनुमान के मुताबिक स्टूडेंट्स यूनियन फंड में से अब करीब 19 लाख रुपए चट हो चुके हैं। कुछ मद हैं जिनके खर्चे क्लियर हो चुके हैं और चेक द्वारा पेमेंट किया जा रहा है। वहीं कुछ खर्चों के पेमेंट का पूरी तरह से खुलासा नहीं हो पाया है। इसके अलावा, हजारों रुपयों की रकम रोजमर्रा की छोटी-मोटी खर्चों के लिए एकमुश्त निकाली जा चुकी है। सोर्सेज की मानें तो 31 मार्च से पहले इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव्ज बचे हुए फंड में से लाखों और रुपए खर्च करने की तैयारी में हैं। लेकिन सेटिंग न होने से बात नहीं बन पा रही है।

कमीशनखोरी में वारे न्यारे

सोर्सेज की मानें तो जिन-जिन मदों में खर्च दिखाया गया है, वो जरूरत से ज्यादा है। अधिकांश रुपए स्टूडेंट्स यूनियन के रिप्रेजेंटेटिव्ज की कमीशनखोरी में खर्च हो गए। सोर्सेज की मानें तो रिप्रेजेंटेटिव्ज ने अपने रसूख और दबंगई के बल पर दुकानदारों से ओवर-एस्टिमेट का बिल बनवाया लिया। वैट समेत जितना रियल खर्च हुआ है वह दुकानदार को पेमेंट कर बाकी के बचे रुपयों को आपस में बांट लिया गया।

यूं होता है कमाई का खेल

किसी भी खर्चे के लिए स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसीडेंट और जनरल सेक्रेट्री प्रपोजल और एस्टिमेट रखते हैं। उसके बाद वे सामान खरीदकर एडमिनिस्ट्रेशन को बिल प्रोवाइड करा देते हैं। इसके लिए टेंडर नहीं होता है। पेमेंट के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल और स्टूडेंट्स यूनियन के डायरेक्टर के साइन से चेक काटा जाता है। जिसके बाद पेमेंट होता है।

कॉलेज की भूमिका पर भी सवाल

इस पूरे खेल में कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। कॉलेज को प्रपोजल के समय ही ओवर एस्टिमेट को लेकर सवाल उठाने चाहिए थे। लेकिन बिना क्रॉस चेक किए बिल का पेमेंट करा देना कॉलेज की भूमिका पर सवाल खड़े करता है।

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