नहीं मिलते कैंडीडेट

शहर में मौजूद तीन मुख्य राजनीतिक पार्टियों के छात्र संगठन है। इसके साथ ही कैंपस में छात्र संघर्ष मोर्चा और अन्य संगठन हैं, लेकिन साल भर काम करने के बाद भी ये छात्र संगठन अपने संगठन से ऐसे पांच लोगों को भी सेलेक्ट नहीं कर पाते हैं जो कि एक-एक पद पर चुनाव लडऩे के काबिल हो। बड़ा सवाल उठता है कि आखिर क्यों छात्र संगठन नामांकन से पहले अपना पैनल घोषित नहीं करते हैं? आखिर क्यों जाति बिरादरी के नाम पर पैनल को डिजायन किया जाता है? क्या जाति और बिरादरी के बेस पर होने वाला इलेक्शन स्टूडेंट्स के साथ इंसाफ कर पाएगा?

कोई नहीं देता साथ

कैंपस में एक छात्र संगठन ऐसा भी है जो कि भ्रष्टाचार का विरोध कर रहा है। पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि महामंत्री पद पर इसी संगठन में से एक छात्र को किसी पार्टी का साथ मिलेगा, लेकिन भारी समर्थन होने के बाद भी उस कैंडीडेट को किसी भी पार्टी ने अपने साथ शामिल नहीं किया। इस संगठन ने फेसबुक पर भी यूनिवर्सिटी के भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। इसके साथ ही इस गुट ने जातिविहीन इलेक्शन लडऩे की ठानी है। शायद इसी लिए पार्टियों ने इनके साथ ऐसा सलूक किया।

तो हार पक्की

कुछ ऐसा ही किस्सा एक अन्य प्रत्याशी के साथ है। उस प्रत्याशी ने पुराने आदर्शवादी छात्र नेताओं से सलाह की और पूछा कि किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाए। उसे एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में मौजूद भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की सलाह दी गई। तो उसने कहा कि, मैंने इसकी बात की थी, लेकिन मेरे सीनियर छात्रों ने इसको मुद्दा न बनाने को कहा, बोले कि यहीं से तो कमाई होती है। अगर भ्रष्टाचार का विरोध किया तो न ही पार्टी साथ देगी। ये हालात शर्मसार करने वाले हैं। जहां पर भ्रष्टाचार का विरोध करने पर प्रत्याशियों को चुनाव हरवाने तक की रणनीति गढ़ ली जाती है।

हमने सभी को जगह दी

एबीवीपी कार्यालय पर प्रेस कांफ्रेंस में संगठन ने अपना पैनल घोषित किया। एबीवीपी ने अध्यक्ष पद पर जाट, उपाध्यक्ष पद पर जनरल त्यागी छात्रा, महामंत्री पद पर पूरब के ठाकुर, संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष पद पर पंडित प्रत्याशी उतारे हैं। कुछ ऐसे ही समीकरण एनएसयूआई के रहे, जिसमें जनरल, एससी, एसटी, ओबीसी और माइनोरिटी को पैनल में जगह दी गई है। संगठन का कहना है कि सभी वर्गो को पैनल में जगह दी गई है, लेकिन कोई ये नहीं बता पाया कि वो किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेगा और इन प्रत्याशियों ने आज तक छात्र हित में ऐसा क्या किया है कि उनको वोट दी जाए। सपा छात्र सभा का पैनल भी घोषित हो चुका है। इन स्टूडेंट्स में से एक दो को छोड़ दिया जाए तो बाकी कभी किसी विरोध प्रदर्शन में नजर नहीं आए।

ये निकले मौकापरस्त

पिछले साल एबीवीपी का दामन थाम कर अध्यक्ष बने संजीव कुमार, जीतने के बाद सपा में शामिल हो गए। अब सपा ने उनको भाव नहीं दिया तो उन्होंने कुछ दलित छात्रों के साथ मिलकर कैंपस के मृत प्राय छात्र संघर्ष मोर्चा को फिर से जिंदा किया और अपना पैनल घोषित कर दिया। पैनल में एक गुर्जर विनीत शामिल है, वो भी इसलिए क्योंकि विनीत को सपा ने किनारे कर दिया था, तो विनीत सपा के गुर्जर वोट काटने का काम करेंगे। इसके अलावा मोर्चा में अधिकतर दलित ही हैं। इन कैंडीडेट्स से जब मुद्दों के बारे में पूछा गया तो कोई कुछ नहीं बोल पाया।

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