मगर, क्या गलती सिर्फ इन बच्चों की है? पॉवर बाइक्स दिलवाने वाले पेरेंट्स की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। जिन स्कूलों की पार्किंग में ये बाइक्स पार्क होती हैं, क्या उन स्कूलों की कोई जिम्मेदारी नहीं? ट्रैफिक रूल्स को फॉलो कराने की जिम्मेदारी रखने वालों को नहीं दिखता है कि कैसे ये यूथ बाइक्स की वजह से अपनी जान गवां रहे हैं. 

Parents हैं responsible

स्टूडेंट्स को पॉवर बाइक्स कोई और नहीं बल्कि उनके पेरेंट्स ही दिलवाते हैं। बिना लाइसेंस और हेलमेट के उनके हाथों में पॉवर बाइक्स थमा देते हैं। बच्चों की जान खतरे में देखकर स्कूलों ने इसका विरोध भी किया। मगर, पेरेंट्स हैं कि मानते ही नहीं। लगता है उन्हें जैसे अपने बच्चों की जिंदगी प्यारी ही नहीं। मैथाडिस्ट हाईस्कूल की प्रिंसिपल कैब्रल के मुताबिक दो साल पहले स्टूडेंट्स स्कूल में बाइक लाने पर रोक लगाई थी। पेरेंट्स ने इसका जबरदस्त विरोध किया। जयपुरिया स्कूल की एक्टिंग प्रिंसिपल मोपाली मेहरोत्रा के मुताबिक बच्चों को स्कूल में बाइक लाने पर मना करने पर पेरेंट्स दबाव डालते हैं। पेरेंट्स का कहना है कि स्टूडेंट्स को स्कूल से कोचिंग जाना पड़ता है इसलिए बाइक जरूरी है.

Only for class 11-12

पेरेंट्स के प्रेशर को देखते हुए स्कूल्स ने सिर्फ क्लास-11 और क्लास-12 के बच्चों को ही बाइक लाने की परमीशन दी है। हाईस्कूल और बिलो क्लास-10 स्टूडेंट्स को बाइक लाने की इजाजत नहीं है। हडसन स्कूल में जब स्टूडेंट्स के बाइक लाने पर रोक लगाई गई थी, तो बच्चे स्कूल के आसपास स्थित घरों और शॉप्स में बाइक खड़ी कर देते थे। छुïट्टी के बाद इन्हीं बाइक्स से फर्राटा भरते हुए कोचिंग और घर को निकल पड़ते हैं।

लाइसेंस का काम हमारा नहीं

क्या स्टूडेंट्स को बाइक लाने से रोकना ही स्कूल्स की जिम्मेदारी है? इस सवाल के जवाब में मैथाडिस्ट की प्रिंसिपल कैब्रल बताती हैं कि ट्रैफिक पुलिस के साथ मीटिंग के बाद स्टाफ मेम्बर्स बाइक लाने वाले बच्चों का हेलमेट चेक करते हैं। लाइसेंस चेकिंग की जिम्मेदारी पुलिस ने ली है। जयपुरिया में भी यही व्यवस्था है। वहां बच्चों को सिर्फ हेलमेट के लिए टोका जाता है।

नहीं दिखा असर

स्कूल्स मैनेजमेंट कोई भी तर्क दे, हकीकत यही है कि बच्चों पर सख्ती बेअसर है। न तो वो पॉवर बाइक लाना बंद कर रहे हैं, न ही पेरेंट्स उन्हें रोक रहे हैं। हडसन, जयपुरिया, शीलिंग हाउस, इंटरनेशनल स्कूल के बाहर पॉवर बाइक्स पर निकलते स्टूडेंट्स कुछ यही इशारा करते हैं। ज्यादातर स्कूल्स का यही कहना है कि स्कूल के अंदर ही स्टूडेंट्स की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी उनकी है। स्कूल गेट के बाहर पेरेंट्स या स्टूडेंट्स खुद सेफ्टी के लिए जिम्मेदार हैं. सेफ्टी को लेकर सिर्फ ब्वॉयज ही नहीं गल्र्स भी काफी लापरवाह हैं। हेलमेट सेफ्टी के लिए जरूरी है ये जानते हुए भी उसे लगाना पसंद नहीं करती। कोई ब्यूटी में खलल की वजह से तो कोई हेलमेट लगाने से कम्फर्ट फील नहीं करती। कड़े नियमों की जरूरतभले ही गल्र्स रोड पर हेलमेट लगाकर चलना पसंद नहीं करती हों, लेकिन वो हेलमेट                की अहमियत को अच्छी तरह से जानती हैं। आदत से मजबूर गल्र्स को हेलमेट पहनाने के लिए हार्ड एंड फास्ट रूल की जरूरत है.