- बलरामपुर में जान की गुहार लगाने आई युवती के रेप का मामला

- मुख्य सचिव से मांगी रिपोर्ट, आर्थिक मदद पर भी किया जवाब-तलब

LUCKNOW: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूपी पुलिस को प्रेम विवाह के मामले में गैरकानूनी कार्यवाही के लिए गंभीर रूप से दोषी ठहराते हुए मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर तीन माह में जवाब तलब किया है। आयोग ने माना है कि बलरामपुर जिले में एक नवविवाहित जोड़े के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ है। इसमें गलत तरीके से हिरासत, बलात्कार, झूठी निंदा और आरोपी सब इंस्पेक्टर के खिलाफ आपराधिक मामले की कार्यवाही शुरू करने में देरी शामिल है। आयोग ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि पीडि़त महिला को पांच लाख, उसके पति को तीन लाख और ससुर को डेढ़ लाख रुपये की आर्थिक मदद क्यों न दी जाए।

वापस लिया जाए आरोप पत्र

आयोग ने इस मामले में यूपी के एडवोकेट जनरल से आरोप पत्र वापस लेने के बाबत कानूनी राय लेने का उल्लेख भी नोटिस में करते हुए कहा कि यदि एडवोकेट जनरल को लगता है कि चार्जशीट गलत दाखिल की गयी तो राज्य सरकार इसे वापस लेने की कवायद करे। साथ ही आरोपी दारोगा के खिलाफ सक्षम न्यायालय से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद आगे की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी जाए और इसकी जांच डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारी से नीचे से न कराई जाए। साथ ही पूरे प्रकरण की जांच कर सही तथ्य पता लगाने को डीआईजी स्तर के एक अधिकारी द्वारा बलरामपुर के विभिन्न स्तरों के पुलिस अधिकारियों की भूमिका की पड़ताल भी की जाए ताकि उनके खिलाफ उचित एक्शन लिया जा सके।

पुलिस से मांगी थी मदद

जांच के दौरान आयोग ने पाया कि बलरामपुर जिले की एक युवती ने अपने प्रेमी के साथ मुंबई जाकर विवाह कर लिया। लड़की के पिता ने इस बाबत अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया जिसके बाद बलरामपुर पुलिस ने नवविवाहित जोड़े को मथुरा थाने पर बुला लिया। इस मामले में कानूनी प्रक्रिया किए बिना पुलिस ने दोनों को अलग-अलग हवालात में दो दिन तक हिरासत में रखा। आरोप है कि इस दौरान आरोपी दरोगा ने युवती का रेप किया। जब युवती ने इसकी शिकायत की तो आरोपी दारोगा के खिलाफ तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गयी। हालांकि बाद में उसे एसपी ने निलंबित कर दिया था। कोर्ट द्वारा दोनों को बालिग मानते हुए साथ रहने का आदेश दिए जाने के बावजूद पुलिस ने युवती को नाबालिग ठहराते हुए उसके पति पर रेप की धारा लगा दी और उसके ससुर को भी गलत फंसा दिया। साथ ही उस पर दारोगा के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लेने का दबाव बनाया गया।