अधिकारियों का कहना है कि हादसा काबुल के वज़ीर अक़बर ख़ान इलाके के एक रेस्तरां में हुआ जो विदेशी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है. इस इलाके में कई विदेशी दूतावास और संस्थाएं भी स्थित हैं.

मरने वालों में अफ़ग़ानी और विदेशी लोग, दोनों ही शामिल थे. मृतकों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के अफ़ग़ानिस्तान प्रमुख वादेल अब्दल्लाह भी हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि हमले में उसके तीन कर्मचारी भी मारे गए हैं.

तालिबान ने ली ज़िम्मेदारी

चरमपंथी संगठन तालिबान ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है. संगठन का कहना था कि वो जानबूझ कर विदेशी अधिकारियों को निशाना बना रहा है.

हमला शुक्रवार शाम को हुआ जिस वक्त टेवर्ना डु लिबान रेस्तरां में काफ़ी भीड़ होती है.

अफ़ग़ानिस्तान के उप गृह मंत्री मोहम्मद अयूब सालंगी का कहना था कि कड़ी सुरक्षा वाले रेस्तरां के दरवाज़े के बाहर आत्मघाती हमलावर ने धमाका किया. इसके बाद दो बंदूकधारी रेस्तरां में घुस गए और वहां लोगों पर ''अंधाधुध गोलियां'' चलाईं.

सुरक्षाबलों ने वारदात की जगह पहुंचने के बाद इन बंदूकधारियों को मार दिया. उप गृह मंत्री के मुताबिक मृतकों में चार महिलाएं भी थीं.

संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी लापता

बीबीसी के महफ़ूज़ ज़ुबैद का कहना है कि उन्होंने कम से कम दो किलोमीटर दूर से धमाके और गोलीबारी की आवाज़ सुनी. ज़ुबैद का कहना था कि गोलीबारी लगभग 10 मिनट तक चली.

अफ़ग़ानिस्तान:आत्मघाती हमले में 15 की मौत

कई घंटों के बाद काबुल में मौजूद संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा था कि उसके चार कर्मचारी लापता हैं. संगठन का कहना था कि हमले के वक्त ये लोग उस इलाके में मौजूद हो सकते थे.

संगठन के प्रवक्ता एरी गाइटानिस ने एएफ़पी समाचार एजेंसी को बताया, "संयुक्त राष्ट्र अपने कर्मचारियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा है."

अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है. नेटो सुरक्षा बल का आखिरी जत्था इस साल के आखिर में वहां से वापस चला जाएगा जिसके बाद देश की  सुरक्षा का ज़िम्मा अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के हाथों में होगा.

अमरीका अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ाई पर ज़ोर डाल रहा है कि वो उस  समझौते पर दस्तख़त कर दें जिसके तहत नेटो बलों की वापसी के बाद भी वहां कुछ अमरीकी सैनिक रह सकेंगे.

इस सप्ताह तालिबान ने बीबीसी के जॉन सिम्पसन को बताया था कि अफ़ग़ानिस्तान के काफ़ी इलाकों में एक बार  फिर संगठन का कब्ज़ा हो गया है और तालिबान को यक़ीन है कि पश्चिमी सुरक्षा बलों के वापस लौटने के बाद वो फिर से सत्ता में आ जाएंगे.

लेकिन बीबीसी संवाददाता का कहना था कि मौजूदा हालात में तालिबान की सत्ता में वापसी की बात पर यक़ीन करना मुश्किल है. लेकिन साल 1996 में तालिबान का काबुल पर नियंत्रण भी अप्रत्याशित था और अगर अप्रैल में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एक कमज़ोर और भ्रष्ट राष्ट्रपति का चुनाव होता है, तो उस हालात में तालिबान फिर से मज़बूत हो सकता है.

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