फरवरी में अब तक 7 सुसाइड के मामले आए सामने

यूआईटी के स्टूडेंट ने लगाई फांसी

DEHRADUN:

दून में सुसाइड के मामल बढ़ते ही जा रहे हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी और टेंशन की वजह से युवा मौत को गले लगा रहे हैं। वहीं पैरेंट्स का बच्चों पर ध्यान न देना भी कहीं न कहीं इसकी वजह बन रहा है। आज के समय में बच्चे बड़ों की अनदेखी के कारण एडजस्टमेंट डिस्ऑर्डर के शिकार हो रहे हैं। आंकड़े भी यही बता रहे हैं कि युवा के साथ ही बड़े और बुजुर्ग भी तनाव के कारण अपनी जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। आपको बताते चलें कि राजधानी में अकेले फरवरी में अब तक 7 सुसाइड के मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर जिदंगी से इतने जल्दी हार मानने के पीछे कारण क्या है।

स्टूडेंट ने लगाई फांसी

प्रेमनगर इलाके में क्9 वर्षीय शुभम ने घर में ही चुन्नी के जरिए सुसाइड कर लिया। मृतक यूआईटी में डी फार्मा का स्टूडेंट था। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार शनिवार को प्रेमनगर थाने में पूर्व ब्लॉक प्रमुख चंद्र पाल पुंडीर द्वारा चौकी झाझरा पर सूचना दी कि एक स्टूडेंट शुभम ने अपने घर पर चुन्नी से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने घर वालों के साथ शुभम को नीचे उतारा। पूछताछ में परिजनों ने बताया कि शुभम रिजर्व नेचर का लड़का था और दो-तीन दिनों से गुमसुम था। वह आस पड़ोस की शादियों में भी नहीं जाता था। शुभम के कमरे की गहनता से तलाशी ली गई तो कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। बताया गया कि मृतक यूआईटी में डी फार्मा प्रथम वर्ष में पढ़ रहा था। जिसकी उम्र क्9 वर्ष थी।

फरवरी में सात ने किया सुसाइड

दून पुलिस के आंकडे़ भी डराने लगे हैं। राजधानी में साल ख्0क्म् में 80 मामले सुसाइड के दर्ज किए गए हैं। वहीं साल ख्0क्7 में जनवरी में क् और फरवरी में अब तक 7 मामले सुसाइड के दर्ज हुए। जिनमें ब् महिला, फ् पुरुष हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दून में सुसाइड के मामलों ने एक बार फिर परिजनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। सवाल ये भी है कि इस प्रकार की घटना से कैसे सबक लें। एक्स्प‌र्ट्स का मानना है आज की भागदौड़ जिंदगी में में पैरेंट्स बच्चों के लिए बेहतर सुविधाएं जुटाने और लाइफ स्टाइल को और बेहतर बनाने के फेर में कहीं न कहीं उन्हें वक्त नहीं दे पाते और भावनात्मक जरूरतों की अनदेखी के कारण बच्चे एडजस्टमेंट डिस्ऑर्डर के शिकार हो जाते हैं। एक्स्प‌र्ट्स का मानना है कि उम्र में बदलाव के साथ होने वाले फिजिकल और मेंटल चेंजेज के दौरान बच्चों को भावनात्मक रूप से सपोर्ट की जरूरत होती है। ऐसे वक्त में पैरेंट्स की अनदेखी बच्चों को एडजस्टमेंट डिस्ऑर्डर की ओर ले जाती है। साथ ही बच्चे नासमझ होते हैं उन्हें अच्छा बुरा पता ही नहीं होता।