- दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के रिएलिटी चेक में महिला शौचालय भी निकले फेल

- किसी भी सुलभ शौचालय में नहीं दिखा सेनेटरी पैड वेंडिंग या डिस्पोजल मशीन

सिल्वर स्क्रीन पर अक्षय कुमार की फिल्म पैड मैन भले लोगों का ध्यान उस सब्जेक्ट पर आकर्षित करा रही है, जो घर-घर की कहानी है लेकिन जिस पर चार समाज में चर्चा तक नहीं होती। लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी घर के बाहर में लेडीज कई बार सिर्फ इसलिए मुसीबत में पड़ जाती हैं क्योंकि उन्हें अपनी मंथली नेचुरल प्रॉब्लम के दौरान सपोर्ट नहीं मिल पाता। अब तक लेडीज के लिए मार्केट प्लेस में टायलेट की कमी का मुद्दा ही चर्चित रहा है। लेकिन सच्चाई ये भी है पीरियड्स के दौरान उनके लिए सुलभ शौचालयों में भी पैड सुलभ नहीं है। ये कड़वी सच्चाई है बनारस की।

आई नेक्स्ट कर रहा तफ्तीश

पैड मैन मूवी के बाद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पाया कि ग‌र्ल्स कॉलेजेज और हॉस्टल में पैड वेंडिंग मशीन नदारद हैं। वेंडिंग मशीन और डिस्पोजल मशीनों की तलाश में हमने जब पब्लिक टॉयलेट्स की तरफ रूख किया तो वहां भी कमोबेश यही स्थिति नजर आई। सीधे तौर पर कहे तो सेनेटरी पैड के लिए किसी भी सुलभ शौचालय में कोई प्रॉपर इंतजाम नहीं है। पीरियड्स के दौरान मार्केट प्लेस में मौजूद महिलाओं और टूरिस्ट को अक्सर भी इसकी जरूरत पड़ जाती है। यदि उनके पास बैग में पैड नहीं तो उन्हें सीधे दुकान से खरीदना पड़ता है, जो आपात स्थिति में उनके लिए ज्यादा शर्मनाक हो जाता है। ऐसे में यदि सुलभ शौचालय में उनकी जरूरत पूरी हो जाए तो उसे बेहद आसानी हो सकती है। पब्लिक टायलेट में जाने वाली महिलाओं के लिए यूज्ड सेनेटरी पैड को डिस्पोज करना बड़ी समस्या होती है। इसके लिए भी वहां कोई इंतजाम नहीं।

करीब 225 है टॉयलेट

शहर में जापानी संस्था जायका, सुलभ इंटरनेशनल तथा अन्य एजेंसियों के सहयोग से 200 से ज्यादा पब्लिक टॉयलेट बनाए हैं। अधिकांश में लेडीज के लिए भी शौचालय की सुविधा है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इनमें एक भी टायलेट ऐसा नहंी है जहां पैड वेंडिंग या डिस्पोजल मशीन मौजूद हो।

कभी सोचा ही नहीं गया

टॉयलेट बनाने वाली संस्था जायका के अधिकारियों का कहना है कि संस्था की ओर से बनवाए गये शहर के 140 टॉयलेट में वो सभी व्यवस्था है। जिसकी जरुरत होती है। यहां बिजली, पानी, फैंसी लाइट्स के अलावा चिल्ड्रेन व दिव्यांगों पर विशेष फोकस रहता है। लेकिन सेनेटरी पैड वेंडिग मशीन व इंसीनिरेटर के विषय पर कभी सोचा ही नहीं गया।

सुलभ के पास नहीं फंड

वहीं सुलभ के अधिकारियों की माने तो उनका काम सिर्फ टायलेट मेंटेनेंस का है। उनके पास इतना फंड नहीं है कि टायलेट्स में सेनेटरी पैड के लिए व्यवस्था किया जाए। यहां आपको बता दें कि सुलभ के दिल्ली स्थित मुख्यालय में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से पैड बनाना भी सिखाया जाता है।

हर टॉयलेट में डस्टबिन रखा रहता है। इसके सिवाय और कोई व्यवस्था नहंी हो सकती। जायका के टॉयलेट प्रोजेक्ट में कही भी सेनेटरी पैड वेंडिग मशीन या इंसीनिरेटर लगाना शामिल नहीं है।

लोकेश, एग्जिक्यूटिव इंजीनियर, जायका

सुलभ तो चाहता है कि उनके देखरेख में चल रहे शौचालयों में लेडीज के लिए इस तरह की व्यवस्था हो, लेकिन हमारे पास इतना फंड नहीं है। यदि नगर निगम या शासन सहयोग करे तो ये संभव है।

वीएन चतुर्वेदी, एडवाइजर, सुलभ इंटरनेशनल

एक नजर

225 के करीब पब्लिक टॉयलेट है शहर में।

153 टायलेट है जायका के प्रोजक्ट में

175 टायलेट की देखरेख करता है सुलभ इंटरनेशनल इसमें 140 जायका का।

50 टॉयलेट की देखरेख अन्य संस्थाएं करती है।