RANCHI: रांची नगर निगम समेत राज्य के सभी शहरी निकायों में सप्लाई वाटर का ऑडिट कराया जाए। ताकि यह पता चल सके कि आपको कितना पानी मिला। कितना पानी रोड पर बह गया। कितना पानी पाइप में रह गया। यह विचार पानी की बर्बादी रोकने व लोगों की जरूरत के हिसाब से पानी सप्लाई करने के विषय पर आयोजित वर्कशॉप में उभर कर सामने आया, जो स्टेट अर्बन डेवलपमेंट एजेंसी(सूडा), ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ लोकल सेल्फ गवर्नमेंट व सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी की ओर से आयोजित किया गया। इसमें एक्सप‌र्ट्स ने शहरों में होनेवाली जलापूर्ति, उसके सदुपयोग, उठाव व आपूर्ति के अनुपात, सप्लाई से आनेवाले राजस्व सहित अन्य पहलुओं पर चर्चा की। उद्घाटन सुडा के निदेशक अमित कुमार ने किया। कार्यशाला में सुडा के अधिकारियों के साथ-साथ सभी नगर निकायों के नगर आयुक्त, मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी, कार्यकारी पदाधिकारी समेत प्रतिनिधि मौजूद थे।

रुकेगी पानी की बर्बादी

अमित कुमार ने कहा कि राज्य सरकार के नगर विकास विभाग ने ओडीएफ , स्वच्छ भारत मिशन व सैनिटेशन के क्षेत्र में बेहतर प्रयास किया है। इसका बेहतर नतीजा भी देखने को मिला है। राज्य में एनर्जी का भी ऑडिट हो चुका है वैसे अब हमें जल संरक्षण को देखते हुए जलापूर्ति का ऑडिट करने की जरूरत है।

नागपुर में हो चुका है ऑडिट

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के तकनीकी विशेषज्ञ राजीव कुमार ने बताया कि महाराष्ट्र के नागपुर में वाटर अडिट के बाद जलापूर्ति का शत-प्रतिशत सदुपयोग हो रहा है। सप्लाई, लीकेज, इलीगल कनेक्शन के साथ-साथ पानी के उठाव के अनुपात में कितना प्रतिशत पानी लोगों के पास पहुंचता है इसका व्यौरा ऑडिट से ही मिलेगा और इसके साथ-साथ वाटर मीटर भी अनिवार्य होना चाहिए। विशेषज्ञों ने बताया कि यदि शत प्रतिशत पानी कनेक्शनधारी नागरिकों के घर तक पहुंचेगा तो राजस्व में भी बढ़ोतरी होगी।

नॉन रेवेन्यू वाटर ज्यादा

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि झारखंड के शहरों में भी नॉन रेवेन्यू वाटर की मात्रा ज्यादा है, जिसे कम करने की जरूरत है। इसलिए जरूरी है कि वाटर ऑडिट किया जाए और उसके हिसाब से पानी बचाव के साथ-साथ जलापूर्ति में होनेवाले खर्च में भी कटौती होगी।