सही है क्यूरेटिव पिटीशन और डेथ वारंट

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि क्यूरेटिव पिटीशन पर किया गया फैसला सही है। डेथ वारंट के लिए भी कोर्ट ने कहा, इसमें कोई चूक नहीं है। इसी बीच महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भी याकूब की दया याचिका खारिज कर दी है। दरसल याकूब के वकील ने कोर्ट में दलील दी थी कि याकूब की दया याचिका को खारिज करने या आगे भेजने के बारे में राज्यपाल की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गयी है। जिस पर अटॉर्नी जनरल ने दलील दी कि जब यह तय है कि मौत की सजा पर अमल होना है तो वह किस तारीख पर हो इससका कोई महत्व नहीं है। उनका ये भी कहना था कि ऐसा नहीं है कि दोषी को न्यायिक प्रक्रिया के इस्तेमाल का पूरा मौका नहीं मिला। डेथ वारंट की तारीख का मुद्दा केवल टालमटोल करने का तरीका है। इस मामले पर जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में जस्टिस प्रफुल्ल सी पंत और जस्टिस अमिताव राय की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी।

राष्ट्रपति को फिर भेजी दया याचिका

इस बीच याकूब मेमन ने आज फिर राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी है। 2014 में भी याकूब के भाई ने भी दया याचिका दी थी, जिसे राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था। इससे पहले मंगलवार को सुनवाई में जस्टिस कूरियन और जस्टिस दवे की राय अलग-अलग होने के चलते सुप्रीम कोर्ट ने मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया था। इस सुनवाई के दौरान जस्टिस दवे ने कहा कि याकूब की याचिका में कोई आधार नहीं है। वहीं जस्टिस कूरियन ने फांसी पर स्टे लगाते हुए क्यूरेटिव पिटीशन को आधार बनाकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट से याकूब की क्यूरेटिव पिटीशन में गंभीर चूक हुई है और तकनीकी खामी की वजह से किसी की जिंदगी को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।

इस संबंध में याकूब ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे फांसी नहीं दी जा सकती, क्योंकि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट गैरकानूनी है। याकूब के मुताबिक, उसकी पुर्नविचार याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी कर दिया गया, जबकि उसकी क्यूरेटिव याचिका कोर्ट में पेंडिंग थी। ऐसे में डेथ वारंट जारी करना गैरकानूनी है। बहरहाल अब सारे संशय दूर हो गए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि याकूब को फांसी देने में कोई अड़चन नहीं है। याकूब की फांसी को लेकर देश के बड़े वर्ग में दो दल बन गए थे और बहस चल रही थी।

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