अनुसूचित जनजाति में की शादी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट एक अनोखा मामला सामने आया है। अग्रवाल परिवार में जन्मीं एक महिला ने शादी एक अनुसूचित जनजाति के पुरुष से कर ली थी। शादी के बाद महिला ने अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र बनाने के लिए आवेदन कर दिया। कुछ दिनों में ही महिला को बुलंदशहर के जिलाधिकारी कार्यालय से अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया गया।
नई जाति से नौकरी हासिल की
इसके बाद महिला ने जाति के आधार पर 1993 में केंद्रीय विद्यालय में नौकरी पा ली थी। खास बात तो यह है कि महिला ने अपनी इस नई जाति को आधार बना प्रमोशन में इसका भरपूर इस्तेमाल किया। देखते ही देखते कुछ वर्षों में महिला केंद्रीय विद्यालय में वाइस प्रिंसिपल भी बन गई। ऐसे में कुछ लोगों ने महिला की जालसाजी को लेकर उसके खिलाफ शिकायत कर दी।
महिला के खिलाफ दर्ज कराई गई
शिकायत में जाति को आधार बनाकर फायदा उठाने की बात आई थी। इसके बाद इसकी जांच शुरू हुई और स्कूल ऑथोरिटी ने जांच में शिकायत को सही पाया तो महिला के जाति के प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया। महिला ने स्कूल के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट में फैसला उसके खिलाफ आया लेकिन उसकी नियुक्ति को रद्द नहीं किया।
महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की
इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में महिला के जाति के प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया। कोर्ट ने विद्यालय में महिला के बेहतर काम के रिकॉर्ड को देखते हुए उसको नौकरी से बर्खास्त नहीं किया। इसकी जगह पर उसको अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है। कोर्ट का कहना था कि महिला ने इस मामले में कोई भी तथ्य नहीं छुपाया है।
जाति जन्म से निर्धारित होती है
वहीं कोर्ट ने इस पूरे मामले में कहा कि महिलाओं की जाति भी जन्म से निर्धारित होती है। किसी दूसरी जाति में शादी कर लेने से जाति नहीं बदल जाती है। महिला का जन्म अग्रवाल परिवार में हुआ है। इसलिए अनुसूचित में शादी करने से उसकी जाति नहीं बदलती है। ऐसे में लड़कियों की कोई जाति नहीं होती ऐसा कहने वाले समझ जाएं कि उनकी जाति जन्म से ही होती है।
रबड़मैन या फिर बिना हड्डी का, यहां देखें और बताएं क्या कहेंगे जसप्रीत सिंह कालरा को
National News inextlive from India News Desk