शरीयत अदालतें नही हैं कानूनी

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में रहने वाले वकील विश्व लोचन मदान की पेटीशन पर यह निर्णय दिया कि शरीयत अदालतें कानूनी नही हैं इसलिए लोगों को इन अदालतों के फतवों को मानना जरूरी नही है. इस वकील ने दारुल कजा और दारुल इफ्ता नामक संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे समानांतर अदालतों को चैलेंज किया है. मदान ने दलील दी कि शरीयत अदालतों को मुस्लिमों के के मूल अधिकारों का फतवों द्वारा हनन नही किया जाना चाहिए. पेटीशनर ने बताया कि यह शरिया अदालतें देश में 60 जिलों में कार्यरत हैं और हाल ही में एक लड़की को अपने पति को छोड़कर अपने ससुर के साथ रहना पड़ा जिसने उसका रेप किया था.

ना पड़े दो लोगों के मामले में

इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी धर्म को किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों के हनन करने की इजाजत नही है. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि शरियत अदालतें कोई फतवा तभी जारी कर सकती हैं जब कोई अपनी इच्छा से इन अदालतों के पास जाए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह फतवे भी कानूनी रूप से गलत नही होंगे.

शरीयत अदालतें दें राय

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शरीयत अदालतों को सुझाव देने का अधिकार है और यह कानूनी रुप से ठीक भी है. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सभी फतवे बेतुके नही होते हैं और अगर दो मुस्लिम समुदाय को बिलॉंग करने वाले लोग शरिया अदालतों के द्वारा आपसी झगड़ों का समाधान चाहते हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है. हालांकि कोर्ट ने कहा कि शरियत अदालतें लोगों के अपनी इच्छा से उनके पास आने पर ही समाधान दें.

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