भारत में सभी पोर्न वेबसाइट्स को प्रतिबंधित करने का आदेश देने से इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एच.एल. दत्तू ने कहा कि ये अंतरिम आदेश इस कोर्ट द्वारा नहीं दिया जा सकता। ऐसा होने पर कल कोई भी व्यस्क भरतीय नागरिक आ कर कोर्ट से शिकायत कर सकता है कि वो मैं HL Dattu बालिग है और कोर्ट उसे अपने कमरे के भीतर पोर्न देखने से कैसे रोक सकती हैं? वास्तव में यह संविधान के आर्टिकल 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।

हालांकि कोर्ट ने ऐसा भी कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और इसमें कुछ नियंत्रित करने वाले कदम उठाए जाने चाहिए। इसके चलते उसने केंद्र इस मसले पर विचार करने के लिए भी कहा। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस बारे में विस्तृत प्रमाण जुटाने के लिए 4 हफ्ते का वक्त दिया है। और इसे गंभरता और समझदारी से देखने के लिए कहा है।

बहरहाल फिल्हाल इस मामले पर कोई फैसला लिया जाना संभव नहीं लगता। क्योंकि ये तो सच है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद- 21 के तहत लोगों को व्यक्तिगत आजादी हासिल है। इस अधिकार के तहत उनको अपनी रूचि के अनुसार बगैर दूसरों को हानि पहुचाए जीवनयापन का अधिकार मिलता है।

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