इस मामले की अगली सुनवाई 19 फ़रवरी को होनी है.

इस बम हमले में तत्कालीन युवा कांग्रेस अध्यक्ष मनिंदरजीत सिंह बिट्टा को निशाना बनाया गया था.

हमले में बिट्टा तो गंभीर चोटों के साथ बच गए थे मगर उनके नौ सुरक्षाकर्मी मारे गए थे और 25 अन्य घायल हुए थे.

देवेंदर पाल सिंह भुल्लर को 10 सितंबर, 1993 के दिन दिल्ली में हुए एक विस्फोट के लिए वर्ष 2001 में एक टाडा अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद अप्रैल, 2013 में सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने  भुल्लर की दया याचिका को खारिज कर दिया था और उनकी मौत की सज़ा को कम करने से इनकार भी कर दिया था.

इस आदेश के बाद देवेंदर पाल सिंह भुल्लर की पत्नी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने पति का 'मानसिक रूप से असुंतलित' बताते हुए एक क्यूरेटिव पेटिशन (याचिका) दायर की थी.

उपचार

वर्ष 2011 से भुल्लर का दिल्ली के एक मनोचिकित्सा संस्थान में  इलाज चल रहा है.

उनके वकील केटीएस तुलसी ने अदालत से उनकी मानसिक हालत के आधार पर मौत की सज़ा माफ़ करने की मांग की थी.

इसी क्यूरेटिव पेटिशन पर सुनवाई के दौरान अदालत ने फ़ैसला किया है कि इसकी सुनवाई एक अदालत में ही होगी.

भारत में पिछले कई दिनों से मौत की सज़ा दिए जाने पर बहस जारी रही है.

कुछ दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने 15  दोषियों की मौत की सज़ा को उम्र क़ैद में बदलने का आदेश दिया था.

इनकी दया याचिकाओं के मामले राष्ट्रपति के सामने बहुत समय से लंबित पड़े हुए थे.

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2004 से 2012 तक भारत में किसी मुजरिम को फ़ांसी नहीं दी गई थी.

लेकिन नवंबर 2012 में मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब और फिर फ़रवरी 2013 में संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को फांसी दी गई थी.

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