- साजिश रचने के लिये एंड्रॉयड एॅप से लेकर पर्सनल चैट रूम्स का कर रहे इस्तेमाल

- सुराग लगा पाने में सिक्योरिटी एजेंसियां नाकाम, नहीं सूझ रहा मॉडस ऑपरेंडाइ को क्रैक करने का तरीका

pankaj.awasthi@inext.co.in

LUCKNOW : अब तक मोबाइल सर्विलांस की मदद से आतंकवादियों पर नजर रखने वाली सिक्योरिटी एजेंसियों के लिये बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। सिक्योरिटी एजेंसियों के तौर-तरीकों से निपटने के लिये आतंकियों ने इसका तोड़ निकाल लिया है। पूर्व में अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे आतंकियों की जगह ज्यों ही पढ़े लिखे और टेक सेवी आतंकियों ने ली है, इसका साफ असर दिखने लगा है। हाल ही में मुंबई में दबोचे गए आईएसआईएस आतंकी अबु जैद से जो खुलासा हुआ है, उसने सिक्योरिटी एजेंसियों को हैरान कर दिया है। दरअसल, आतंकियों ने अब अपने साथियों और स्लीपिंग मॉड्यूल्स से संपर्क साधने और साजिश रचने के लिये नई तकनीकों का इस्तेमाल करना शुरू किया है। जिसे क्रैक कर पाना सिक्योरिटी एजेंसियों के लिये टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

स्मार्ट फोन को बनाया हथियार

आईजी एटीएस असीम अरुण ने बताया कि आतंकियों ने अपने साथियों व स्लीपिंग मॉड्यूल्स से संपर्क करने के लिये स्मार्ट फोन को हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया है। गिरफ्त में आए आईएसआईएस आतंकी अबु जैद ने पूछताछ में खुलासा किया कि वह अपने साथियों के साथ मोबाइल एॅप के जरिए कनेक्ट था। उसने बताया कि फोन से बात करने से वे लोग सिक्योरिटी एजेंसियों के राडार पर आ सकते थे। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें इस बारे में विस्तार से बताया गया था। इसी वजह से वे लोग बातचीत के लिये वॉयस कॉल की जगह एंड्रॉयड एॅप का इस्तेमाल करते थे। चूंकि, एंड्रॉयड एॅप में निगरानी का तोड़ सिक्योरिटी एजेंसियां निकाल नहीं सकी हैं, इसलिए यह सबसे सेफ तरीका माना जाता है।

पर्सनल चैटरूम्स भी हैं मुफीद

एंड्रॉयड एॅप के जरिए साथियों से बातचीत व साजिश रचने के साथ ही आतंकी कुछ दूसरे तरीके भी आजमा रहे हैं। एएसपी एटीएस दिनेश यादव ने बताया कि कई मामलों में आतंकियों की अरेस्टिंग में खुलासा हुआ है कि वे आपस में बातचीत के लिये व्हॉट्सएॅप, फेसबुल मैसेंजर सरीखे सोशल चैटरूम्स की तरह डेवलप किये गए पर्सनल चैटरूम्स का भी इस्तेमाल करते हैं। यह चैटरूम्स को सिर्फ इनके लोग ही लॉगइन कर सकते हैं। यही वजह है कि इन चैटरूम्स के बारे में सिक्योरिटी एजेंसियों को सुराग लगा पाना बेहद मुश्किल होता है।

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कैसे करते हैं डाउनलोड

आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही एंड्रॉयड एॅप और पर्सनल चैटरूम्स न तो प्ले स्टोर पर मौजूद हैं और न ही एॅप स्टोर पर। दरअसल, आईएसआईएस सरीखे आतंकी संगठन पहले फेसबुक के जरिए भोले-भाले युवाओं को बरगलाते हैं। जब वे उनके मुताबिक पूरी तरह से कट्टर हो जाते हैं और उनके बताए अनुसार मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं तो ऐसे युवाओं को ई-मेल के जरिए इन एॅपलीकेशन या चैटरूम एॅप को डाउनलोड करने के लिये लिंक भेजा जाता है। इस लिंक पर क्लिक कर वह शख्स सीधे उसे अपने मोबाइल फोन या कंप्यूटर सिस्टम पर इसे डाउनलोड कर उनके संपर्क में आ जाता है। आतंकियों की इस नई तकनीक को क्रैक करने में सिक्योरिटी एजेंसियां अभी नाकाम साबित हो रही हैं।