मुझे ‘इंडिपेंडेंट इंडियन सिनेमा का फेस’ कहा जाता है और ये एक ऐसा टैग है जो मुझे पसंद है. इंडिपेंडेंट सिनेमा के आइडियल्स को लेकर लोगों के  मिले-जुले खयाल हैं: इस तरह के सिनेमा के बारे में हर चीज को कॉमर्शियल नॉम्र्स के अगेंस्ट जाने की जरूरत नहीं है. फिर भी, मुझे ये करना पसंद है और ये मुझे पूरी ताकत लगाने के लिए पुश करता है. ऐसा नहीं है कि मैं अनकंवेंशनल फिल्में जानबूझकर करता हूं, चाहे ये देव डी हो, ओय लकी लकी, मनोरमा सिक्स फीट अंडर या एक चालीस की लोकल हो. मैं कोई फिल्म तभी करता हूं जब मैं स्टोरी और कैरेक्टर को लेकर एक्साइटेड होता हूं.


इंसान जो सपना देखता है उसे पूरा करने के लिए पैशनेट होना चाहिए. मैं एक रीयल कैरेक्टर प्ले करना चाहूंगा जो मुश्किलों से जूझता है और हीरो बन जाता है.


मेरा हमेशा ये मानना है कि इंसान को रिस्क लेना चाहिए और दूरी तय करनी चाहिए. मैं फिल्मी हीरो का रोल प्ले करने वाला कट आउट नहीं हूं. मैं एक हीरो की तरह लगता भी नहीं हूं, सच कहूं तो जब छोटा था तो सोचता था कि सीधे हॉलीवुड में जाऊंगा, बॉलीवुड में ट्राई करने की जहमत भी नहीं उठाऊंगा. बाद में मुझे रियलाइज हुआ कि बॉलीवुड में हर चीज सही थी-ये मेरा घर था, मेरी फैमिली यहां थी, ये वो लैंग्वेज थी जिसमें मैं काम करने में कम्फर्टेबल था. इसलिए मैं अपनी कंट्री और कल्चर में जगह बनाने की कोशिश कर रहा हूं.


कई लोग आज चलन को तोडऩे की कोशिश कर रहे हैं. ओरिजिनल बनने से मत डरिए. रिस्क लीजिए... फैसला कीजिए.

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